Thursday, February 18, 2016

13-समसामयिक विवेचना तीसरा दशक

गांव के जीवन में एक बदलाव साफ़ नजर आने लगा था कि अशिक्षा के कारण जड़ता की स्थिति कुछ कुछ कम हो रही थी। गांव में संचार साधनों का तो पूरी तरह से अभाव था लेकिन राजनीतिक व् सामाजिक चेतना का प्रभाव व् प्रसार किसी न किसी माध्यम से गांव में प्रवेश करने लगा था। कुछ तो अशिक्षा के कारण और कुछ संचार व् आवागमन के साधन न होने के कारण आम ग्रामीण की जानकारी का दायरा बहुत सीमित था। अपने देश और दुनिया के बारे में जानकारी बहुत कम थी आम ग्रामवासी को बस इतना ही जानकारी थी कि भारत का राज्य सात समुन्दर पार बैठे अंग्रेज राजा के हाथ में है तथा दिल्ली में बैठा लाटसाहब भारत में उसके काम को देखता है। ये अज्ञान जहाँ एक तरफ उनकी बहुत बड़ी कमजोरी थी लेकिन दूसरी तरफ उनकी सरलता व् आत्मसंतुष्टि का बहुत बड़ा कारण भी था। जनमानस में परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। जिला मुख्यालय, नजदीक के बड़े कस्बों में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस व् आर्यसमाज जैसी सामाजिक व् धार्मिक संस्थाओं द्वारा अनेक कार्यक्रम, जलसे सत्संग व् रैलियां आदि प्रायोजित किये जा रहे थे। कुछ ग्रामीण इन कार्यक्रमों में भाग भी लेने लगे थे और कुछ इन संस्थाओं के सक्रिय सदस्य बन गए थे। इन्हीं में से कुछ आगे बढ़कर इन संस्थाओं के साथ जुड़ गए तथा उनका पूरा जीवन उद्देश्य ही बदल गया। इन्होने अपना पूरा जीवन ही देश की आजादी को प्राप्त करने तथा एक नए भविष्य का निर्माण करने के लिए समर्पित कर दिया। इन्हीं सक्रिय लोगों के द्वारा देश में चल रहे राजनीतिक व् सांस्कृतिक घटनाक्रमों की जानकारी दूर देहात में दी जा रही थी तथा इसका व्यापक असर भी हो रहा था।
गांधीजी १९१८

दांडी यात्रा १९३०
गांधीजी तत्कालीन भारतीय राजनीति में एक अंधड़ की तरह छा गए थे। उनका उत्थान जनमानस के लिए एक शीतल व् सुखद वायु के झोंके की तरह था। उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व एवं संदेशों ने लोक मानस को बेहद आंदोलित कर दिया था तथा एक नई व् विशिष्ट राजनीतिक चेतना उत्पन्न कर दी थी। जैसे जैसे इस नयी राजनीतिक चेतना का विस्तार सुदूर ग्रामीण अंचलों में फ़ैल रहा था लोगो की सोच का दायरा भी व्यापक होता जा रहा था। लोगों की अन्धविश्वास व् स्वार्थ से ग्रसित जड़ मानसिकता में नयी तरंगे उठ रही थी। आजादी अमूल्य है तथा इसे प्राप्त करने के लिए कोई भी त्याग व् कुरबानी कम है ये भावना निरंतर बढ़ती जा रही थी। साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों की पवित्रता बनाये रखना तथा हर हालत में सत्य का अनुसरण, इसका मर्म लोग समझने लगे थे। गांधीजी का सत्य व् अहिंसा पर आधारित आंदोलन लोगों को व्यवहारिक व् आजादी प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय लगने लगा था। 
लोगों में दमन का डर तथा उससे उत्पन्न बेबसी लगातार कम होने लगी थी। वैसे भी ये शाश्वत सत्य है की जब व्यक्ति सत्य के मार्ग पर अडिग होता है तो किसी भी प्रकार का डर या शंका का स्थान उसके जीवन में नहीं रहता। अब तक आम आदमी के फर्ज का दायरा बेहद सीमित था। केवल धन अर्जन करना व् अपने परिवार का पालन पोषण करना ही आम आदमी का मुख्य उद्देश्य था। लेकिन अब फर्ज के दायरे में राष्ट्र व् समाज के प्रति अपने दायित्व का भी प्रमुख स्थान हो गया। सामाजिक जीवन के इस बदलाव ने, बाद के वर्षों में, संयुक्त प्रान्त के इस अपेक्षाकृत पिछड़े पश्चिमांचल में भी अनेक स्वतंत्रता सेनानी पैदा किये। स्वतंत्रता सेनानियों की इस पौध ने विकसित होकर देश की आजादी के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभायी।  
धार्मिक चेतना एवं धार्मिक विश्वासों में भी इस समय काफी सकारात्मक परिवर्तन हुए। लोगों के धार्मिक आचरण में भय से उत्पन अन्धविश्वास व् कुरीतियों का स्थान निरंतर काम होने लगा। धर्म का वास्तविक स्वरुप क्या है, उसका जीवन में क्या स्थान है इस विषय में लोग और अधिक समझदार व् जागरूक होने लगे। धर्म का वास्तविक उद्देश्य सत्य के प्रति निष्ठा तथा अपने व् समाज के प्रति मानवीय कर्तव्यों का पालन ही है, ये भावना विकसित हुयी। भारतीय सामाजिक जीवन में यह बदलाव बहुत ही सकारात्मक था तथा इसने आगे चलकर आजादी प्राप्त करने तथा नव राष्ट्र निर्माण में बहुत योगदान किया।

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