tag:blogger.com,1999:blog-64960804027503956882024-03-13T19:33:14.235-07:00झरोखेAmit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-19334509612920526712023-09-23T09:44:00.001-07:002023-09-23T18:33:04.537-07:00मेहनतकश और ईमानदार लोग"पापा, आप इस ठेले वाले के पास हॉर्न क्यों नहीं बजा रहे हो?"<div><br></div><div>"मेरी छोटी बेटी, जो अब इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष की छात्रा है, ने मेरी ओर देख कर थोड़ा परेशान होकर पूछा।"</div><div><br></div><div>आज सुबह उनका और उनके रिश्ते के भाई का प्रोग्राम था कि वे मेरे साथ मेरे ऑफिस चलेंगे और वहां बैडमिंटन खेलेंगे, घोड़े देखेंगे, और मौका मिला तो घोड़ों के ऊपर बैठकर फोटो भी खिचवाएंगे।</div><div><br></div><div>मेरा ऑफिस दिल्ली के बाहरी क्षेत्र में पड़ता है, जहां एकदम खुला और हरा भरा कैंपस है, जिसमें मोर और अनेकों प्रकार के पक्षी आदि खुले एरिया में विचरण करते रहते हैं। वहीं कैंपस में ही इंडोर बैडमिंटन कोर्ट और घुड़साल भी है जहां पर बेहतरीन घोड़े हैं।<br></div><div><br></div><div>सुबह 9.30 पर घर से अपनी SUV गाड़ी से हम तीनों लोग निकले। </div><div>अब नजफगढ़ से बहादुरगढ़ जाने वाली सड़क पर गाड़ी चल रही थी। पिछले छह महीने से यह चार किलोमीटर का रास्ता एक सजा की तरह हो गया है।</div><div><br></div><div>सड़क के साइड में, गहरे सीवर का काम कछुवे की सरकारी गति से चल रहा है और एक तरफ की पूरी सड़क बंद होने के चलते पूरा ट्रैफिक एक साइड से ही चलता है।</div><div><br></div><div>आज सुबह भी ट्रैफिक थोड़ा ज्यादा था, बच्चे बेसब्र हो रहे थे और मेरी गाड़ी के सामने एक ठेले/रिक्शा वाला ढेर सारा सामान अपने ठेले पर लादे हुए धीरे धीरे चल रहा था।</div><div><br></div><div>पतला दुबला सा अधेड़ सी उम्र का वो व्यक्ति पसीने में तरबतर अपनी पूरी शक्ति के साथ ठेले को पैडल से चलाने में लगा था।</div><div><br></div><div>दूसरी तरफ से गाड़ियों का रेला और इधर से मेरी गाड़ी के आगे बेचारा ठेले वाला। काफी देर तक ऐसे ही चलता रहा मगर मुझे आगे निकलने का रास्ता नहीं मिला और न ही मैंने उस रिक्शा वाले को हॉर्न दिया।</div><div><br></div><div>दोनों बच्चे परेशान होने लगे थे और मेरी बेटी बोली, 'पापा, आप हॉर्न क्यों नहीं बजा रहे हो? वो कच्चे में कर लेगा अपनी रिक्शा को।</div><div><br></div><div>मैंने गंभीर होकर उसको बोला की नहीं, बेटा, इस सड़क पर पहला हक उसका है।</div><div><br></div><div>बेटी ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा कि वह कैसे?</div><div><br></div><div>मैंने कहा कि वह आदमी अपनी पूरी कोशिश कर रहा है अपनी गाड़ी को चलाने के लिए। उसे भी पता है कि उसके पीछे गाड़ी आ रही है। गाड़ी का क्या है, वह तो कहीं भी ओवरटेक कर लेगी, गड्ढों से भी निकल जाएगी, खराब रास्ते से भी आगे निकल सकती है, मगर अगर मैं उसको हॉर्न दूंगा तो वह और अतिरिक्त कोशिश कर सकता है मुझे रास्ता देने के लिए, यह भी संभावना है कि वह खराब रास्ते पर अपनी रिक्शा डाल ले, जहां से उसको निकलना और मुश्किल हो।</div><div><br></div><div>ये मेहनतकश और ईमानदार लोग हैं, यही वास्तविक भारत है। अपने परिवार के भरण पोषण के लिए वो अथक मेहनत करते हैं और अपना खून पसीना बहाते हैं।</div><div><br></div><div>कितने लोग गलत काम करते हैं, जीवन में पैसे कमाने के लिए शॉर्टकट अपनाते हैं, मगर उसने ऐसा नहीं किया। उसने मेहनत को अपने जीवन के लिए चुना। </div><div>"इस सड़क पर गाड़ी से ज्यादा हक उनका है।"</div><div><br></div><div>मैं अक्सर रिक्शा वालों को, पैदल चलने वाले लोगों को, बुजुर्ग लोगों को रास्ता देने के लिए अपनी गाड़ी रोक लेता हूँ।</div><div><br></div><div>बेटी को आज जीवन का बड़ा सबक मिला था। वह प्यार और आदर के साथ मेरी ओर देख रही थी।</div><div><br></div><div>उसके पापा का यह रूप पहली बार उसको पता चला था।</div><div><br></div><div>शायद एक अनमोल सबक आज जीवन भर के लिए उसको मिल गया था। मेहनतकश और ईमानदार लोग किसी भी समाज में महत्वपूर्ण होते हैं। उन्हें सम्मान और सहानुभूति का हक होता है, और हमें उनके प्रति आदर दिखाना चाहिए। देश की तरक्की में उनका भी उतना ही योगदान है जितना किसी और का।"</div><div>©Dr Amit Tyagi </div>Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-72594538596187721812020-12-06T17:48:00.003-08:002020-12-06T17:54:35.289-08:00हरि_इच्छा_बिन_हिले_न_पत्ता<p> #<span style="font-size: medium;"><b>हरि_इच्छा_बिन_हिले_न_पत्ता</b></span></p><p><br /></p><h3 style="text-align: justify;"><b><span style="font-family: courier;">जीवन में कई बार कुछ ऐसा घटता है जो हमेशा के लिए आपकी सोच को बदल देता है; दिशा बदल देता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ उस दिन हुआ था।</span></b></h3><p><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></p><span><span><b><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">अगर मेरी याददाश्त ठीक है तो वह 20 या 21 मई 2001 का एक खुशनुमा दिन था। मैं, मेरे पिताजी और मेरा छोटा भाई; तीनों बद्रीनाथ धाम पर मंदिर के ठीक सामने खड़े थे। कुछ ही सप्ताह पूर्व मैंने अपनी पहली गाड़ी🚗 (मारुति 800) खरीदी थी और हम लोगों ने गाड़ी खरीदते ही पहाड़ों 🏔️🏔️ पर जाने का प्लान बनाया था।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">मेरा बचपन एक ऐसे परिवार 👩👩👧👧में बीता जिसमें महिलाएं बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और इसके उलट पुरुष एकदम नास्तिक। तो बचपन बेहद धार्मिक माहौल में गुज़रा मगर बड़ा होते-होते ईश्वर के अस्तित्व पर संदेह उत्पन्न होने लगा। बाद में एमबीबीएस में चयन के बाद तो मृत शरीरों पर चीरफाड करते हुए मैं लगभग पूरी तरह से नास्तिक हो चुका था। तब मैं ईश्वर, भूत-प्रेत, आत्मा इन सबके अस्तित्व को नकारने लगा था। रात को शर्त लगाकर हम लोग डिसेक्शन हॉल में घुस जाते थे जहाँ पर मृत शरीर टेबल पर चिरनिद्रा में आराम फरमा रहे होते थे। उस वक्त ईश्वरीय स्वरूप को नकारना मेरे लिए आधुनिकता प्रदर्शन और आदतों में शुमार हो चुका था।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">सन 2001 में बद्रीनाथ जाने वाला रास्ता, खासकर जोशीमठ से आगे बद्रीनाथ धाम तक बेहद खराब हुआ करता था। जोशीमठ से शुरू होकर बद्रीनाथ धाम तक उस वक्त एक गेट सिस्टम हुआ करता था जिसमें हर 6 घंटे के बाद एक साइड से ट्रैफिक छोड़ा जाता था जबकि दूसरी साइड से ट्रैफिक को बिल्कुल बंद कर दिया जाता था। पूरा रास्ता बहुत खराब, कीचड़ और पत्थरों से भरा था और अक्सर सड़क पर भूस्खलन हुआ करते थे। ऐसे में मारुति 800🚗 से बद्रीनाथ जाना कोई बहुत बुद्धिमानी भरा निर्णय नहीं था। मगर शुरू से ही थोड़ा डेयरिंग रहा हूँ तो बिना किसी दूसरे विचार के हम लोग निकल पड़े थे।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">हम लोगों को बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने के बाद #माणा गांव देखते हुए लौटकर गोविंदघाट में एक रात रुक कर अगले दिन #फूलों_की_घाटी 🌿🌱जाना था। इसी कारण हम लोग रात जोशीमठ में रुके और सुबह जब जोशीमठ साइड से गेट खुले तो हम लोग बद्रीनाथ धाम की तरफ चल पड़े थे। रास्ता बहुत खराब था और हम लोग जैसे-तैसे करके बद्रीनाथ धाम तक पहुंचने में सफल हो गए। इस वक्त हम तीनों बद्रीनाथ धाम के मुख्य मंदिर 🛕के सामने खड़े सामने लगी लंबी कतार को देखकर परेशान थे। इसी वजह से यह तय किया कि पहले माणा गांव हो आते हैं और उसके बाद आकर वापसी में दर्शन कर लेंगे। फिर हम मंदिर से माणा गांव की तरफ चल पड़े।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">आज ही हमें दर्शनोपरांत गोविंदघाट पहुंचना था जहाँ से अगले दिन हमें #घघरिया के लिए 16 किलोमीटर की ट्रैकिंग 🚶♂️🚶♂️करनी थी। माणा से लौटते-लौटते हमें लगभग 3:00 बज गये थे। हम एक बार फिर से बद्रीनाथ धाम मंदिर के सामने खड़े होकर पहले से भी अधिक श्रद्धालुओं की कतार को मायूसी से देख रहे थे। दर्शन तो शुरू हो चुके थे मगर श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ गयी थी।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">थोड़ा इंतजार करने के बाद</i><br /><i style="font-family: times; text-align: justify;">पिताजी ने कहा- “चलो यहीं से मंदिर को प्रणाम करते हैं और गोविंदघाट चलते हैं अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।”</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">मैंने और मेरे छोटे भाई ने एक दूसरे की तरफ देखा और थोड़ा असमंजस की स्थिति में बोले- “इतनी दूर आने के बाद बिना दर्शन किये जाना ठीक नहीं होगा।”</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">पिताजी ने कहा- “ईश्वर तो कण-कण में विद्यमान है; जरूरत है उसे पहचानने की।”</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">फिर लगभग निर्णायक तरीके से बोले- “हम फिर आएंगे, अभी चलते हैं।”</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">तीनों ने वहीं से मंदिर को प्रणाम 🙏 किया और श्री बद्री विशाल जी से फिर आने का वायदा करके गाड़ी लेकर गोविंदघाट की ओर चल दिए।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">मैं थोड़ा निराश था मगर चूंकि आज रात रुकने का इंतजाम गोविंदघाट में था तो जाने को आवश्यक समझते हुए चुप रहा। बद्रीनाथ धाम से लगभग आठ-दस किलोमीटर के बाद बेहद खराब सड़क का टुकड़ा शुरू हो जाता था जो कच्चे पहाड़ होने के कारण भूस्खलन के लिए कुख्यात रहा है। कच्चे पहाड़ों की भुरभुरी ढलानों पर लाखों-करोड़ों छोटे से लेकर विशालकाय पत्थर ऐसे टिके हैं कि लगता है अब गिरे और तब गिरे। हर साल न जाने कितने लोग सड़क के इस हिस्से से गुजरते हुए इन पत्थरों के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">हम लोग धीरे-धीरे उस खराब और खतरनाक भाग से गाड़ी निकाल ही रहे थे कि गाड़ी से लगभग 50-60 मीटर आगे गड़-गड़-गड़ की आवाज़ के साथ ऊपर पहाड़ 🏔️से बड़े-बड़े पत्थर नीचे आने लगे। हम लोग एकदम सकते में आ गए। अगर थोड़ा भी आगे होते तो गाड़ी के साथ नदी और घाटी में समा गए होते।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">बड़ा डरावना मंजर था। हम लोगों से कुल पचास-सौ मीटर की दूरी पर सड़क पर #य्ये_भारी_भारी पत्थर ऊपर से नीचे लुढ़क कर रास्ते को पूरी तरह से बंद कर चुके थे। गाडी से नीचे उतरे तो टाँगें काँप रही थी।</i><br /><i style="font-family: times; text-align: justify;">लगभग तीस मीटर की सड़क पूरी तरह पत्थरों से ब्लॉक हो चुकी थी। आगे जाने का ज़रा सा भी रास्ता नहीं बचा था। उस वक्त मोबाइल फोन होते नहीं थे तो किसी को सूचना भी नहीं दे सकते थे। थोड़ी देर सकते की हालत में खड़े हम लोग इन बदली हुई परिस्थितियों में आगे की प्लानिंग पर विचार कर रहे थे। आगे जाने का रास्ता तो बंद हो चुका था और गाड़ी को पीछे मोड़ना भी बेहद खतरनाक था। ऊपर से पत्थरों के गाड़ी पर गिरने का डर। कोई और चारा न होने के कारण गाड़ी को इसी स्थिति में लगभग 500 मीटर बैक गियर में डालकर हटाया और किसी तरह मोड़कर हम लोग वापिस बद्रीनाथ धाम की तरफ चल पड़े। कहीं ना कहीं हम तीनों के मन में यह बात बार-बार आ रही थी कि बद्रीधाम आ कर भी दर्शन न कर पाने की वजह से ही ऐसा हुआ है।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">वापिस बद्रीनाथ धाम पहुंचकर वहां पुलिस चैक पोस्ट पर इस भूस्खलन और सड़क के बंद होने के बारे में जानकारी दी जिसकी उनको पहले ही दूसरी तरफ से खबर लग चुकी थी। चैक पोस्ट पर ही हमने रात्रि विश्राम के बारे में कुछ व्यवस्था करने की गुजारिश की। उन दिनों बदरीनाथ धाम में रहने की बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं हुआ करती थी। सिर्फ कुछ धर्मशालाएं ही रहने का एकमात्र ऑप्शन थी इसलिए हमने उन्हीं में से एक धर्मशाला में रात्रि विश्राम के लिए कमरा बुक कर लिया। हमें यह बताया गया कि कल दोपहर बाद तक ही रास्ता साफ हो पायेगा। तो अब हमारे पास भरपूर वक्त था। इसको ईश्वरीय इच्छा मानते हुए पापा ने हम लोगों से अगले दिन सुबह की आरती में सम्मिलित होने के लिए बोला। फिर दिन भर के थके हुए होने के कारण हल्का-फुल्का खाकर हम लोग सो गए।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">आज भी जब मैं इस यात्रा के बारे में कभी विचार करता हूँ तो यह सोचकर ही सिहर उठता हूँ कि क्या कोई ऐसा दूसरा भी होगा जो बद्रीनाथ धाम जाकर भी श्रीहरि के दर्शन किए बिना वहां से वापस आ जाए। खैर उन दिनों विचार शृंखला ऐसी ही हुआ करती थी।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><span style="background-color: white;"><span style="font-size: large;"><i style="font-family: times; text-align: justify;">अगले दिन सुबह 4:30 बजे उठ कर मैं और भाई दोनों श्री बद्रीनारायण जी के मंदिर🛕 में पहुंच गए। गर्भगृह में उस वक्त हमारे अलावा सिर्फ दो-तीन ही और लोग थे। थोड़ी ही देर में आरती शुरू होने वाली थी। बड़ा ही आध्यात्मिक, दिव्य और अलौकिक वातावरण था। मैं भी अभिभूत था और श्रद्धा और भक्ति के इस माहौल में मेरी आँखें बंद होने लगी थी। पूजा खत्म होने के बाद भी मैं आंखे बंद किये खोया हुआ था कि किसी का हाथ मुझे अपने सर पर महसूस हुआ। आँखें खोली तो सामने मुख्य पुजारी जी आरती की थाली लिए खड़े थे। मुझे लगा; धीमे से उनके मुंह से आवाज़ निकली कि भगवान से मिलने आये थे और बिना दर्शन के जा रहे थे। श्री बद्रीनारायण का आशीर्वाद तेरे ऊपर है और उन्होंने ही तुझे यहाँ दर्शन के लिए वापिस बुलाया है। </i><br /><i style="font-family: times; text-align: justify;">मैं भौंचक सा खड़ा था और वो मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। मैंने जिंदगी में पहली बार किसी को साष्टांग प्रणाम किया होगा। पुजारी जी ने आशीर्वाद के साथ पूजा का प्रसाद भी दिया।</i><br /></span></span><div style="text-align: justify;"><span style="background-color: white; font-family: times; font-style: italic;"><span style="font-size: large;"><br /></span></span></div><i style="background-color: white; font-family: times; text-align: justify;"><span style="font-size: large;">मेरे जीवन की यही वो घटना थी जिसके कारण मैं नास्तिकता से आस्तिकता की तरफ मुड़ा, जब मैंने भगवान के अस्तित्व को बचपन के बाद पुनः स्वीकार किया। ईश्वरीय शक्ति पर मेरी श्रद्धा तभी से अटूट हो गयी। उसके बाद 2001 से लेकर अभी तक कई बार बद्रीनाथ धाम जा चुका हूँ और हर बार जाकर #मेरे_आराध्य से अपनी उस भूल की क्षमा मांगता हूँ। </span></i><br /><div style="background-color: #b6d7a8; font-size: large; text-align: justify;"><span style="font-family: times; font-style: italic;"><br /></span></div></b></span></span><p style="text-align: justify;"><i style="font-family: times;"><span style="background-color: #b6d7a8; font-size: medium;"><b>अगले दिन 2:00 बजे के आसपास बद्रीनाथ धाम से वाहनों 🚕🚙को जोशीमठ की तरफ रवाना किया गया और हम लोग उस दिन गोविंदघाट पहुंचकर रात्रि विश्राम किए और अगले दिन घघरिया की तरफ अगले पड़ाव की ओर चल पड़े। </b></span></i></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p><span style="font-size: large;"><b><u>अस्तु मैं खुद को ऐसा व्यक्ति मानता हूँ जिसे उसकी यात्राओं की वजह से ईश्वरीय शक्ति में विश्वास हुआ और तब से लेकर आज तक की अपनी हर यात्रा में मैं ईश्वरीय स्वरूप को अनुभव करता हूँ।</u></b></span></p><p><span style="font-size: large;"><b><u><br /></u></b></span></p><p><span style="font-size: large;"><b><u>-डॉ. अमित त्यागी</u></b></span></p>Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com33tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-7190911740335049092020-05-09T01:01:00.004-07:002020-05-09T01:01:52.845-07:00वो कौन थी। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><u><span style="color: #990000;">वो कौन थी??</span></u></b><br />
<div style="text-align: justify;">
<b>(2017 की वो रहस्यमय घटना)</b></div>
<b><br /></b>
<b>रात के लगभग डेढ़ बजे द्वारका की सुनसान सड़कों पर मेरी गाड़ी सौ से ऊपर की गति से घर की तरफ दौड़ रही थी। गाड़ी खुद ही ड्राइव कर रहा था। रात की ड्राइविंग मुझे बिल्कुल पसंद नहीं पर आज मेदांता अस्पताल गुड़गांव में भर्ती अपने एक दोस्त से मिलने गया था। आज का पूरा दिन ही बेहद थकान भरा था। सुबह 10 बजे से शाम 6:00 बजे तक ड्यूटी पर ढेर सारे मरीज देखकर कर 40 किलोमीटर दूर स्थित मेदांता अस्पताल जाना और वहां से वापिस आने में बेहद थकान भी हो गयी थी और नींद भी आ रही थी। गाड़ी स्पीड से सेक्टर 9 द्वारका मेट्रो स्टेशन के पास से निकल रही थी थोड़ा रास्ते का कन्फ्यूजन हुआ लगता था। रेड लाइट से थोड़ा सा पहले ही उस बड़े से पेड़ के नीचे से निकलते हुए मुझे गाड़ी में एक अजीब सा अहसास हुआ और ऐसा लगा कि एक साया तेजी से गाड़ी की तरफ लपका और उसी के साथ एक अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुशबू गाड़ी के अंदर भर गई। गाड़ी की पिछली सीट से डॉली मेरी धर्मपत्नी जी की तेज आवाज आई कि गाड़ी धीरे चलाओ इतना तेज क्यों चला रहे हो। मैंने गाड़ी की रफ्तार थोड़ी कम की और रेड लाइट क्रॉस करने लगा। आंखे बोझिल होने के बावजूद न जाने किस ताकत के वशीभूत होकर मैंने अपनी पूरी ताकत के साथ गाड़ी में ब्रेक लगाए, मगर उसके बावजूद पोचनपुर गांव की तरफ से आने वाला वह ट्रक मेरी गाड़ी के अगले बम्पर को बुरी तरह से डैमेज करता हुआ निकल गया। मेरी नींद एकदम से गायब हो गई और संभावित भीषण एक्सीडेंट की सोच कर शरीर कंपकंपा गया। इतनी भी हिम्मत नहीं हुई कि उतर कर देखता कि गाड़ी को कितना नुकसान हुआ है। धीरे-धीरे गाड़ी चलाते हुए लगभग 10 मिनट बाद घर पहुंचा। दिमाग एकदम शून्यता की स्थिति में था। गाड़ी पार्क की और लिफ्ट से छठी मंजिल पर स्थित अपने घर पर पहुंचकर मैंने घंटी बजाई। दरवाजा खुला तो सामने ही धर्म पत्नी जी थोड़ा गुस्से में खड़ी थी और बोली इतनी देर आज आपने कहां लगा दी। और मैं अवाक और भौंचक्का खड़ा हुआ उनके चेहरे की तरफ देख रहा था। </b><br />
<b>फिर गाड़ी की पिछली सीट से वो आवाज किसकी थी??</b><br />
<b>शरीर की ताकत खत्म हो चुकी थी। किसी तरह घिसटता हुआ ही बिस्तर तक पहुंचा और गिर पड़ा और सिर्फ ये सुनाई दिया कि क्या हुआ आपको, तबियत तो ठीक है न। मैं गिरते ही गहरी नींद में चला गया।</b><br />
<b>©डॉ अमित त्यागी</b><br />
<b>(2017 की मेरे साथ घटित सच्ची घटना पर आधारित)</b></div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-57330207979217259912018-12-15T08:40:00.001-08:002018-12-15T08:56:19.935-08:00बर्फीले रेगिस्तान की वो यात्रा दास्तान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br>
<div class="mail-message expanded" id="m62246908994994172" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
<div class="mail-message-header spacer" style="height: 109px;">
</div>
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<div class="clear">
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<div dir="auto">
<u><b>बर्फीले रेगिस्तान की यात्रा दास्तान</b></u></div>
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<b><u><br></u></b></div>
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<b><u>पार्ट 1-कल्पा</u></b></div>
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कल्पा, होटल एप्पल पाई के मालिक अमन ने सुबह नाश्ते पर स्वागत करते हुए कहा कि "सर अगर आप आज ही पिन वैली पहुंचना चाहते हैं तो जल्दी ही कल्पा से निकलना होगा"। सुबह के सात बजे थे और हम लोग अमन के साथ गर्म चाय की चुस्कियां ले रहे थे। कुमारसेन स्थित एस एस बी ऑफिसर्स मैस से चलने के बाद हम लोग दोपहर लगभग 2 बजे कल्पा पहुंच गए थे। न जाने कल्पा में क्या आकर्षण है, ये मुझे बार बार अपने पास खींच लाता है। किन्नर कैलाश की बर्फ से ढकी हुई चोटियां और तलहटी में बसा एक पहाड़ी कस्बा कल्पा जो अपनी खूबसूरती और सेव के बागानों के लिए देश विदेश में प्रसिद्ध है, किसी का भी मन मोह लेता है। रुकने का इंतजाम होटल एप्पल पाई में था तो निश्चिंत थे। मैंने और सोमवीर ने यह निर्धारित किया कि पहले रोघी गांव सुसाइड पॉइंट घूम कर आ जाते हैं उसके बाद ही होटल चलेंगे। <div dir="auto">
कल का रात्रि प्रवास एस एस बी की ऑफिसर्स मेस कुमारसेन में मेरे मित्र कमांडेंट साहब और डॉ वर्मा के सानिध्य में बेहद आरामदायक गुजरा था, जिसने दिल्ली से कुमारसेन तक के सड़क मार्ग की सारी थकान दूर कर दी थी। हम दोनों एकदम तरोताजा थे। कल्पा को पार करते हुए हम लोग सीधे रोघी गांव की और चल दिये। खूबसूरत रोघी एक बड़ा गांव है जो कि कल्पा से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर अधिकतर घर पुरानी किन्नौर पहाड़ी शैली के आधार पर ही बने हैं। आजकल कई गांव वालों ने अपने घरों को परिवर्तित कर होम स्टे का रूप दे दिया है। रोघी गांव में एक काफी पुराना मंदिर है जो सैलानियों के बीच काफी प्रसिद्ध है। लकड़ी की दीवारों वाले इस मंदिर में दीवारों और दरवाजों पर खूबसूरत नक्काशियां की गई हैं। मंदिर के दर्शन करने के बाद हम लोगों ने पास ही स्थित होम स्टे में चाय पी और कल्पा की और चल दिये। रास्ते में ही सुसाइड पॉइंट आता है जो कि एक बेहद खतरनाक मोड़ पर, एक बिल्कुल सीधी खड़ी पहाड़ी पर स्थित है। यहां से नीचे झांकने पर आप खुद को सैंकड़ों फ़ीट ऊंची एक सीधी खड़ी डरावनी चट्टान पर खड़ा पाते हैं। नीचे की और देखते ही शरीर में सिहरन और झुरझुरी सी होती है, मगर यही तो इस तरह की साहसिक यात्राओं का रोमांच और मजा है। </div>
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मेरी अधिकतर दुर्गम यात्राओं की शुरुवात फेसबुक से होती है।संभावित तिथि से कुछ महीने पहले मैं एक पोस्ट डालकर सभी मित्रों को यात्रा पर चलने के लिए आमंत्रित करता हूँ। बहुत कम ही लोग इस तरह की यात्राओं के लिए अपनी दिलचस्पी जाहिर करते हैं, और जो लोग दिलचस्पी दिखाते हैं वो हमारे मतलब के या हमारे माइंडसेट के नहीं होते हैं, तो बहुधा आखिरी में सिर्फ दो लोग बचते हैं। मैं खुद और सोमवीर सिंह। मैं पेशे से चिकित्सक हूँ तथा वर्तमान में दिल्ली पुलिस में चीफ मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत हूँ। सोमवीर जी का परिचय अपनी इसी गाथा में आपको आगे दूंगा। </div>
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काफी लंबे वक्त से हम दोनों साथ साथ दुर्गम पहाड़ों में न जाने किस तलाश में भटकते फिर रहे हैं। एक यात्रा खत्म होती है और दूसरी की योजना बनने लगती है।</div>
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सरकारी नौकरी की अपनी विवशताएं होती हैं। बड़ी मुश्किल से 10 दिन की छुट्टी मिली थी। फेसबुक पर किसी भी हमारे मतलब के दोस्त की तरफ से कोई रेस्पांस नहीं था और सोमवीर सिंह अभी भी संशय में थे। यात्रा की निर्धारित तिथि में सिर्फ सात दिन बाकी रह गए थे। हमें दशहरे के दिन प्रस्थान करना था तभी हिमाचल में भारी हिमपात की खबर आ गयी। अमूमन इन दिनों में हिमाचल में हिमपात नहीं होता है मगर जब सभी परिस्थितियां प्रतिकूल हों तो यह भी संभव है। 5000 से ज्यादा यात्री स्पीति और लेह मार्ग पर फंसे थे। प्रशाशन हेलीकॉप्टर द्वारा अपनी पूरी सामर्थ्य से बचाव अभियान में लगा था। खबरें हमारे साथ साथ परिवार के सदस्यों को हमसे ज्यादा डरा रही थी। तीन दिन पहले सोमवीर ने अपनी छुट्टी की खबर दी तो दिल को एक सुकून सा मिला। लंबा विचार विमर्श हुआ और तय किया कि स्पीति चलते हैं। यात्रा मार्ग शिमला की तरफ से होते हुए काजा और अगर संभव हुआ तो मनाली की तरफ से वापसी का तय किया। </div>
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आज यात्रा का दूसरा दिन था। हम लोग सुसाइड पॉइंट पर फोटोग्राफी करते हुए होटल एप्पल पाई की तरफ चल पड़े। शाम के पांच बजने वाले थे और अब थोड़ी थोड़ी थकान भी हो चली थी। थोड़ी देर बाद ही हम होटल पहुंच गए। कमरे के सामने ही विशालकाय किन्नर कैलाश अपनी बांहें फैलाये हमें अपने आगोश में लेने के लिए आतुर था। वाह क्या समा था! सूरज डूब रहा था और डूबते सूरज की लालिमा से किन्नर कैलाश नारंगी रंग से आभावान हो उठा था। </div>
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कल्पा में जियो के अच्छे सिग्नल आते हैं तो परिजनों तक अपनी कुशलक्षेम पहुंचाने के लिए और दोस्तों को जलाने के लिए फेसबुक लाइव शुरू कर दिया। सोमवीर पहली बार ही कल्पा आये थे तो उनकी खुशी देखते ही बन रही थी। थोड़ी देर बाद ही अमन जो कि होटल के मालिक थे आ गए। तीस बत्तीस साल के अमन मस्तमौला, थोड़ा भारी भरकम, बेहद खुशमिजाज और हरफनमौला किस्म के इंसान थे और कविताओं व शायरियों के बेहद शौकीन। रात का खाना और पीना अमन के साथ ही हुआ और हम लोगों ने ढेर सारी बातें की। सुबह जल्दी उठने की हिदायत के साथ हम लोग लगभग ग्यारह बजे सोने के लिए अपने कमरे में चले गए। </div>
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सुबह आठ बजते बजते हम लोग अमन से फिर से मिलने के वायदे के साथ होटल से निकल लिए। रिकोंग पियो में गाड़ी में हवा चैक कराकर गाड़ी की टंकी फुल करा ली। अब अगला पेट्रोल पंप काजा में ही मिलने वाला था।</div>
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आज पूरा दिन हमें नेशनल हाइवे 22 पर ही चलना था। रिकोंग पियो से काजा तक की दूरी लगभग 205 किलोमीटर है और पिन वैली की दूरी लगभग 230 किलोमीटर है। </div>
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पोवारी से निकलते ही सतलज नदी हमारे दाहिनी तरफ आ गयी थी। यह पूरी सड़क खड़े पहाड़ों के बीच से होकर गुजरती है। लगभग 15 किलोमीटर चलने के बाद सतलज को पार कर हम दूसरी तरफ आ गए। यहां से नदी बाएं हाथ चलती है। कोल्ड डेजर्ट की शुरुवात हो चुकी थी।</div>
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यह पूरा इलाका हिमालय का पठार है जहां पर पेड़ पौधे धीरे धीरे ऊंचाई के साथ खत्म होते चले जाते हैं मगर सेव और सब्जियां बहुतायत में होती हैं। किन्नौर विशेषकर नाको और ताबो का सेव विश्वप्रसिद्ध है। लगभग 35 किलोमीटर के बाद पुनः नदी पार करके हम लोग एक छोटे से कस्बे स्पीलो पहुंचे जहां पर बहुत से रेस्टॉरेंट व होम स्टे बने हैं। एक कप चाय के बाद हम लोग पुनः चल दिये। अगली मंजिल थी पूह। </div>
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यहां से पूह तक कि सड़क काफी खराब है और उस पर जगह जगह निर्माण कार्य भी चल रहा है। यह पूरा रास्ता शूटिंग स्टोन के लिए बदनाम है। हमें बताया गया था कि तेज हवा के साथ छोटे छोटे पत्थर अक्सर गाड़ियों से टकराते हैं। इन सूखे पहाड़ों में काला जादू है तभी तो ये मुझे बार बार अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। मेरे मित्र कभी यह नहीं समझ पाते कि मैं बार बार पहाड़ों पर क्यों जाता हूँ। बेचारे नासमझ तो हैं ही साथ ही जलते भी हैं। आखिर बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद।</div>
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रिकोंग पियो से लगभग 70 किलोमीटर के बाद खाब में स्पीति नदी सतलज नदी के साथ संगम बनाती है और फिर दोनों एक होकर बहती हैं। पहले खाब में नाको की तरफ लगभग चार पांच किलोमीटर तक टनल जैसी पहाड़ियों से गुजरना होता था मगर इस बार यह देखकर बेहद निराशा हुई कि सड़क के ऊपर झुकी उन खूबसूरत पहाड़ियों को काटकर सड़क का चौड़ीकरण कार्य चल रहा है। </div>
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इस पूरे रास्ते में स्पीति नदी और घाटी आपके बायीं तरफ ही चलते हैं। </div>
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यांगथांग से सड़क विभाजित हो जाती है और दाहिनी ओर की सड़क नाको की तरफ चली जाती है। हमें इसी रास्ते पर आगे बढ़ना था तो पुराने गाने सुनते, गुनगुनाते व काजू किशमिश खाते हुए हम लोग नाको की तरफ चल दिये। यहीं कहीं पास से एक रास्ता रोपा वैली की तरफ जाता है। जाने का मन तो बहुत हुआ मगर रोपा से पुनः आने का वायदा करके हम लोग निर्धारित मार्ग पर आगे चल पड़े। </div>
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नाको लगभग 3625 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और अपनी झील के लिए प्रसिद्ध है। अगर आप नाको नहीं देखना चाहते हैं तो गांव में प्रवेश से पहले ही नेशनल हाईवे बांयी और को मुड़कर मलिंग नाले की और चला जाता है। </div>
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नाको "रियो पुरग्याल" पर्वत की तलहटी में स्थित मनोहारी गांव है। रियो पुरग्याल की ऊंचाई लगभग 6816 मीटर या 22362 फ़ीट है और यह हिमाचल प्रदेश का सबसे ऊंचा पहाड़ है। इसी कारण नाको में तापमान काफी कम रहता है और यहां के सेव की क्वालिटी बेहद अच्छी है। यहां पर एक बौद्ध मठ भी स्थित है। क्योंकि मैं यहां पहले भी आ चुका था और शाम को पिन वैली जल्दी पहुंचना चाहता था तो मैंने सोमवीर से कहा कि यहां देखने के लिए कुछ विशेष नहीं है, चलो आगे चलते हैं और मुल्तानी मिट्टी के जैसे पहाड़ों पर फोटोग्राफी करते हैं। यह सुनकर सोमवीर ने गाड़ी मलिंग नाले की और बढ़ा दी।</div>
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मलिंग नाले को अगर दोपहर दो बजे से पहले ही पार कर लिया जाए तो उचित रहता है। सड़क बेहद खराब है और 2 बजे के बाद पानी का प्रवाह भी बहुत तेज हो जाता है। यह भूस्खलन संभावित एरिया है और अक्सर बड़े बड़े पत्थर सड़क पर गिरकर मार्ग अवरुद्ध कर देते हैं। राम राम कहते हुए हम लोग सकुशल मलिंग नाले से निकल गए। आज पानी का प्रवाह भी बहुत कम था। </div>
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कुछ किलोमीटर चलने के बाद हम लोग मुल्तानी मिट्टी जैसी पहाड़ियों के पास पहुंच गये और गाड़ी उनके ऊपर ही उतार दी। ये पूरी पहाड़ी देखने में पीली व चिकनी मुल्तानी मिट्टी की बनी लगती हैं। इनकी बनावट इतनी खूबसूरत है कि ऐसा लगता है जैसे किसी शिल्पकार ने इनको तराश कर बनाया हो। अगर इनको ध्यानसे देखें तो इनमें विभिन्न किस्म की आकृतियां नजर आती हैं। फोटोग्राफी करने के बाद हम दोनों जल्दी ही आगे चल दिये।</div>
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नाको से लगभग 20 किलोमीटर बाद चांगो कस्बा आता है और चांगो भी अपने स्वादिष्ट व रसीले सेव के लिए प्रसिद्ध है। चांगो से 13 किलोमीटर के बाद सुमदो चैकपोस्ट है। सुमदो एक मिलिट्री एरिया है और यहां पर आवश्यक रूप से सभी गाड़ियों व उसमें बैठी कुल सवारियों की एंट्री होती है। </div>
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लगभग तीन बजने वाले थे। भूख लग रही थी और ताबो लगभग 28 किलोमीटर दूर था। गाड़ी में रखे ड्राई फ्रूट्स खाते हुए और जूस पीते हुए हम लोग बिना रुके आगे बढ़ते रहे और लगभग 4 बजे ताबो पहुंच गए। यह शहर एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ ताबो गोम्पा के चारों तरफ बसा है। यहां से हमारी आज की मंजिल मुद विलेज, पिन वैली लगभग 65 किलोमीटर दूर थी। हम अंधेरा होने से पहले वहां पहुंचना चाहते थे इसलिए चाय पीने का मन होते हुए भी लोभ त्यागते हुए हम चलते रहे। </div>
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<b><u>पार्ट 2-पिन वैली</u></b></div>
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29 सितंबर 2017 लगभग 12 बजे दिन का वक्त था, मैं अपने पिताजी जो कि लगभग 72 वर्ष के हैं और अपने छोटे भाई अभिषेक के साथ मुद विलेज, पिन वैली के एक कैफ़े में धूप में पड़ी कुर्सियों पर बैठा था। 2016 में जब मैं और पापा काजा जा रहे थे तो ताबो को पार करके बायीं तरफ, नदी के ऊपर बने एक पुल पर पिन वैली नेशनल पार्क लिखा देखकर तभी तय कर लिया था कि अगले साल पिन वैली जरूर आना है और आज पिन वैली के आखिरी गांव मुद विलेज में हम लोग तारा होम स्टे व कैफ़े में बैठे थे।</div>
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पापा पूछ रहे थे कि कुछ खाओगे या फिर सिर्फ चाय लोगे।</div>
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हम दोनों ने खाने के लिए हामी भर दी।</div>
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मैंने परांठा ऑमलेट और चाय का ऑर्डर किया था। होम स्टे की मालकिन खुद किचेन में खाना बना रही थी। बेहद स्वादिष्ट ऑमलेट बना था। गर्म चाय की चुस्कियों के साथ बेहद विनम्र महिला के साथ बातचीत में पता लगा कि यहां पर रुकने का बढ़िया इंतजाम है और ज्यादा महंगा भी नहीं है। हमारा आज का रात्रि विश्राम काजा स्थित सर्किट हाउस में था। इसलिए मन में यह तय कर की अगली बार रुकेंगे, हम वहां से चल दिये थे। </div>
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आज लगभग एक साल बाद 21 अक्टूबर 2018 को मैं और सोमवीर एक बार फिर उसी ओर बढ़े जा रहे थे और मंजिल थी तारा होम स्टे। आज रात्रि विश्राम तारा होम स्टे में ही तय था। हम लोग स्पीति नदी पर पिन वैली की और जाने वाले रास्ते पर मुड़ गए। </div>
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पांच बजने वाले थे और 30 किलोमीटर अभी चलना बाकी था।</div>
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"चलो दिन दिन में ही पहुंच जाएंगे"। मैंने सोमवीर से कहा।</div>
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"जी सर, मैं तो पहुंचते ही पहले नहाऊंगा"।</div>
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"यार दिन में दो बार नहाने की क्या जरूरत है। घुमक्कड़ लोग तो कई कई दिन में नहाते हैं"।</div>
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"सर शाम को गर्म पानी में नहाने से पूरे दिन की थकान उतर जाती है", वो बोला।</div>
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हम लोग संगनम पहुंचने वाले थे। यहां पर PWD का गेस्ट हाउस है। मगर हमें तो मुद गांव रुकना था जो अब 6-7 किलोमीटर बाकी था। </div>
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पिन वैली स्पीति घाटी की पिन नदी और उसकी सहायक नदी पराहिओ के क्षेत्र में फैली है। </div>
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मुद गांव समुद्र तट से लगभग 3850 मीटर अर्थात लगभग 12361 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों में यहां पर भारी हिमपात होता है और अधिकतर इसका संपर्क मुख्य मार्ग से कट जाता है। रात्रि में तापमान बहुधा जीरो से कम रहता है।</div>
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हम लोगों ने सामान उतारकर तारा होम स्टे के अपने कमरे में लगा दिया था। गाड़ी बाहर ही पार्क कर दी गयी थी। अंधेरा हो चला था और बाहर शीत पड़ना शुरू हो चुका था।</div>
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सोमवीर नहाने चला गया और मैंने रजाई में घुसकर चाय मंगा ली। दिल में अजीब सी संतुष्टि थी कि पिछले साल यह सोचकर यहां से गया था कि यहां कभी आकर रुकूँगा। </div>
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"बॉस मेरे लिए चाय नहीं मंगवाई क्या"? सोमवीर ने बाथरूम से बाहर आते हुए पूछा।</div>
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"मंगाई थी यार दोनों मैं ही पी गया" मैने कहा।</div>
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गुस्से में कुछ बड़बड़ाते हुए वो अपने लिए दोबारा चाय बोलने के लिए चला गया।</div>
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मोबाइल उठाकर देखा तो नेटवर्क गायब था। हम दोनों अब तक की खींची गई फोटोग्राफ्स देखने लगे और एक दूसरे को ट्रांसफर करने लगे। </div>
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8 बजे नीचे से खाने का बुलावा आ गया।</div>
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हम लोग नीचे पहुंचे। कमरे में तारा होम स्टे के मालिक सोनम तारा व उनके कुछ परिजन भी बैठे थे। शादी के ढेर सारे कार्ड कमरे में फैले थे जिनको वो लोग गांव के नाम के अनुसार लगा रहे थे। पूछने पर पता चला कि तीन दिन बाद सोनम तारा की बेटी का विवाह है। इनके यहां शादियां एकदम अलग और तिब्बती रीति रिवाजों के साथ होती है। पूरी रात कार्यक्रम चलता है जिसमें सभी लोग आमंत्रित होते हैं। खाने और पीने का भरपूर प्रबंध रहता है। यहां पर शादियां सेव की फसल खत्म होने के बाद ही होती हैं। मन में तो आया कि कह दूं कि हम लोग भी शादी में सम्मिलित होंगे मगर वक्त की कमी और किसी दूसरी जगह रात्रि विश्राम होने के कारण इस ख्याल को जहन से झटक दिया। </div>
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कमरे को गर्म करने के लिए भट्टी का इंतजाम था। बाहर का तापमान माइनस पांच के आसपास रहा होगा।</div>
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खाना साफ सुथरा, सादा और स्वादिष्ट था। दाल और मिक्स सब्जी के साथ पेट पूजा करके व पिन वैली के बारे में सामान्य जानकारी लेकर हम लोग अपने कमरे में लौट आये।</div>
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मुद विलेज पिन वैली का आखिरी गांव है। यहां से आगे पक्की सड़क खत्म हो जाती है और एक कच्ची व बेहद खराब सड़क लगभग 16-17 किलोमीटर आगे तक जाती है जो हमें पिन पार्वती पास के लिए शुरू होने वाली ट्रेकिंग के बेस केम्प तक पहुंचाती है। </div>
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सड़क मार्ग बेहद दुर्गम है और एक अच्छे कुशल ड्राइवर की भी दिल की धड़कने बढ़ाने में सक्षम है। हम लोग सुबह उधर ही जाने के लिए तय करके सो गए।</div>
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सुबह जल्दी आंखे खुल गयी थी और धक्के मार मारकर आराम से सो रहे सोमवीर को भी मैंने उठा दिया। हालांकि वो काफी गुस्सा हुआ पर अगर आप बड़े हो तो क्या फर्क पड़ता है। गर्म पानी उपलब्ध था। नहा धोकर मैने अपना पसंदीदा परांठा ऑमलेट और मक्खन टोस्ट का ऑर्डर कर दिया। </div>
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लगभग साढ़े नौ बजे नाश्ता करके हम लोग आज की यात्रा के लिए एकदम तैयार थे। पहले पिन वैली नेशनल पार्क घूमकर शाम को काजा रुकने का प्लान था।</div>
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मुद विलेज से निकलते ही पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान शुरू हो जाता है। 1987 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। इस उद्यान की ऊंचाई 3500 मीटर से लेकर 6000 मीटर तक है। पिन घाटी राष्ट्रीय उद्यान बर्फ से लकदक ऊंचाई वाले इलाकों व ढीली व अधिक ढलानों वाली पहाड़ियों के कारण हिमालय के कई लुप्तप्रायः प्राणियों जैसे हिमालयन आईबैक्स, हिम तेंदुआ, भरल, उनी खरहा, तिब्बती भेड़िया और हिम मुर्ग सहित अन्य कई पशु व पक्षियों का प्राकर्तिक वास है। </div>
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थोड़ा आगे निकलते ही एक जलधारा मिली जो रात को बिल्कुल जम चुकी थी और अब बर्फ पिंघलना शुरू हुई थी। बर्फ की विभिन्न प्रकार की आकृतियां बेहद दिलकश व खूबसूरत थी और हमारे जैसे घुमक्कडों के लिए फोटोग्राफी की बेहतरीन जगह। </div>
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सड़क मार्ग बहुत खराब हो चला था। गाड़ी व सड़क के किनारों के बीच कई स्थान पर तो बिल्कुल भी जगह नहीं बच पा रही थी। यहां से आगे जाने और वापस आने तक अन्य किसी मनुष्य या गाड़ी के हमे दर्शन नही हुए । यह बात डराने वाली तो थी ही साथ ही बेहद रोमांचकारी भी थी ।</div>
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चारो तरफ पहाड़ की चोटियां बर्फ से ढकी हुई थी। हर मोड़ पर पहाड़ों के रंग बदल रहे थे। पिन नदी हमारे बाए हाथ की ओर बह रही थी। इसी बीच हमे पहाड़ी भेड़िया और पहाड़ी लोमड़ी के कई बार दर्शन हो चुके थे। हम लोग आगे बढ़ते जा रहे थे और जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे सड़क और भी खतरनाक और संकरी होती जा रही थी। </div>
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"सोमवीर अब गाड़ी को मोड़ लो, लगभग 15 किलोमीटर आने के बाद मैंने कहा"।</div>
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"जी सर। अब जैसे ही जगह मिलेगी गाड़ी को मोड़ लूंगा। सड़क तो वैसे भी खत्म हो ही गयी है" । </div>
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लगभग एक किलोमीटर सड़क पर झूलते हुए चलने के बाद गाड़ी को मोडने की जगह मिली थी और हमारी जान में जान आयी थी।</div>
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अगर आप स्पीति वैली की तरफ से पिन पार्वती ट्रेक करना चाहते हैं तो उसकी शुरुआत यहीं से होती है। लगभग 10 दिन में पूरे होने वाले इस ट्रैक को काफी कठिन माना जाता है। इस ट्रैक में आप तीसरे दिन 5319 मीटर की ऊँचाई पर स्थित पिन पार्वती पास को पार करते हुए खीर गंगा होकर कुल्लू स्थित मनिकरण पहुचते हैं।</div>
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गाड़ी से उतरकर बहुत देर तक फोटोग्राफी की। थोड़ी देर हम दोनों लोगो ने ध्यान लगाया और प्रकृति व ईश्वर को धन्यवाद किया। लगभग 12 बजे के आस पास हम लोग मुद गांव की ओर चल पड़े।</div>
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3 घण्टे तक इन स्वर्णिम आभायुक्त वादियों में विचरते हुए हम लोग 3 बजे काजा पहुच गए और तय किया कि किब्बर व चीचम गाँव देखकर होटल में चैक इन करेंगे , हम लोग किब्बर की ओर चल पड़े। रास्ते में क्ये मठ पड़ता है जो अपनी संरचना व वास्तुकला के लिए विख्यात है। </div>
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"सोमवीर क्ये मोनास्ट्री कल देखेंगे आज सीधे किब्बर व चीचम गाँव घूमकर आते हैं" मैंने कहा।</div>
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सोमवीर ने गाड़ी किब्बर की तरफ बढ़ा दी।अब दूर से हमे किब्बर व चीचम गांव नज़र आने लगे थे। </div>
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किब्बर गांव समुद्र तल से लगभग 4250 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पहले किब्बर को सड़क मार्ग से जुड़े दुनिया के सबसे ऊंचे गांव का तमगा हासिल था जो अब कॉमिक गांव के पास है। काजा से किब्बर पहुंचने में हमे लगभग 1 घण्टे का समय लगा। सन 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ करीब 77 परिवार रहते हैं और इसकी कुल जनसंख्या लगभग 366 है। </div>
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किब्बर व चीचम गांव एक बहुत गहरी तंग घाटी ( Canyon) के दो विपरीत किनारों पर स्थित हैं। पहले इन दोनों गांव के बीच आवागमन के लिए सिर्फ एक रोप वे हुआ करता था जिसमें पार करने वाला खुद अपने हाथों से खींच कर ट्राली को आगे बढ़ाता था, मगर अब इन दोनों गांव के बीच में एक पुल बन गया है और इस पुल को एशिया का सबसे ऊंचा पुल माना जाता है। इस पुल के बनने के बाद किब्बर और चीचम होते हुए लोसर जाना बहुत आसान हो गया है और लोसर जाने के लिए अब आपको वापिस काजा आने की जरूरत नहीं पड़ती। </div>
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चीचम गांव Canyon के दूसरी तरफ स्थित एक बेहद खूबसूरत गांव है और लगभग किब्बर जितनी ही ऊंचाई पर स्थित है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 4124 मीटर है। लगभग तीस घरों व 100 लोगों की जनसंख्या वाला चीचम किब्बर की तुलना में काफी छोटा है। </div>
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किब्बर गांव से ही मशहूर परांग ला ट्रेक की शुरुवात होती है, जो एक कठिन ट्रेक में शुमार है। परांग ला दर्रा समुद्रतल से 18800 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और साल में सिर्फ तीन चार महीने के लिए ही खुला होता है। परांग ला ट्रेक स्पीति को लद्दाख स्थित शो मोरीरि लेक से जोड़ता है। इस ट्रैक में लगभग छह दिन लगते हैं।</div>
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यहां से थोड़ा आगे बढ़ने पर अभ्यारण्य शुरू हो जाता है जो कि विभिन्न जंगली जीव जंतुओं विशेषकर हिम तेंदुओं के कारण प्रसिद्ध है।</div>
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किब्बर घूमने के बाद सोमवीर ने गाड़ी सड़क से उतारकर पेरिलुंगबी कैनियन की तरफ मोड़ दी और उसके बिल्कुल किनारे पर जाकर रोक दी। चारों तरफ नीरवता फैली थी और ढलते हुए दिन की लालिमा से पहाड़ भी सिंदूरी हो चले थे। कैनियन के ऊपर हम सिर्फ दो लोग थे। हवा इतनी तेज थी कि मानों हमें उड़ा ले जाने के लिए आतुर हो। कैनियन की सतह पर डरते डरते झांककर देखा तो दोनों सिहर उठे। लगभग 1000 फ़ीट गहरी इस तंग घाटी में नीचे बहुत गहरी नदी बह रही थी। पानी इतनी गहराई में बह रहा था कि उसकी आवाज भी मुश्किल से ऊपर आ रही थी। नदी का नाम ठीक से याद नहीं आ रहा है। शायद "सांबा लांबा नाला" जैसा कुछ था। एकदम सीधी खड़ी चट्टानें और चट्टानों के अंदर दिखाई देती ढेर सारी गुफाएं डर पैदा कर रही थी। फोटोग्राफी के शौकीन सोमवीर ने यहां पर अलग अलग कोणों से फोटोग्राफी का लुत्फ उठाया। </div>
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शाम हो चली थी पांच बजने को थे। हवा बेहद तेज और सर्द थी, जब मैंने सोमवीर से काजा वापिस चलने को कहा। थोड़ी देर बाद हम काजा की और जा रहे थे जहां होटल डेजोर में आज हमें रुकना था। </div>
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<b><u>पार्ट 3-माइनस 18 डिग्री सेंटीग्रेड की वो रात</u></b></div>
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पूरे चार घंटे से मैं बिस्तर में पड़ा करवटें बदल रहा था लेकिन नींद थी कि आंखों से कोसों दूर थी। दिमाग में न जाने कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे। मैं ड्रिंकर तो नहीं हूं पर अक्सर पहाड़ों पर थोड़ी सी पी लेता हूँ। रात भी जॉनी वाकर प्लेटिनम की बोटल् लुभा तो खूब रही थी पर कुछ तो सोमवीर का डर और कुछ इतनी ऊंचाई पर रुके होने के कारण, आज रात सिर्फ एक ही पैग लिया था। शायद यही कारण था वरना सोने में इतनी दिक्कत तो कभी नहीं आती। कल रात कॉमिक का तापमान माइनस 18 डिग्री सेंटीग्रेड रिकॉर्ड किया गया था। उठकर टाइम देखना चाहा तो मोबाइल इतना ठंडा था कि छूने से ही कंपकंपी बंध गयी। एक बजा था, मतलब अगर नींद नहीं आयी तो कम से कम 5 घंटे ऐसे ही करवटें बदलना पड़ेगा, बेहद डरावना ख्याल था खासकर जब आप इतनी ऊंचाई पर हों और अकेले जागना पड़ जाए तो। लेकिन कहते हैं भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। हम दो ही लोग थे मैं और सोमवीर सिंह और हम दो लोग ट्रिपल ऑक्यूपेंसी वाले रूम में रुके थे। जब रूम मिला था तो बड़े खुश थे कि आज तो खुलकर सोने को मिलेगा पर किसको पता था, हर इच्छा पूरी कहाँ होती है। यहां तो इतनी ठंड में बाहर भी नहीं निकल सकते जो टूटते तारे को देखकर विश ही मांग लेते की आज की रात नींद आ जाये । खैर तभी सामने वाले बिस्तर से उनींदी सी आवाज आई, लगा कमरे में ऑक्सीजन की कमी की वजह से मतिभ्रम भी हो चला है जो आवाजे आ रही है क्योंकि सोमवीर को तो अगर बाहर भी डाल आता तो वो तो वहां भी सोया हुआ होता। </div>
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पर नहीं फिर वही आवाज आई इस बार थोड़ा जोर से,<br>"बॉस नींद नहीं आ रही क्या"।<br>वाकई दिल को इतना सुकून शायद कभी नहीं मिला होगा जितना सोमवीर की आवाज को सुनकर मिला।<br>मैंने कहा कि "मुझे तो नहीं आ रही भाई पर तू क्या कर रहा है, सोया नहीं" ?<br>"बॉस मुंह ढकता हूँ तो कम ऑक्सीजन की वजह से सांस ठीक से नहीं आ रही, नाक भी बंद है और बाहर मुंह निकालता हूँ तो लगता है जम जाऊंगा इतनी सर्दी में"।<br>खुशी के मारे मैं बिस्तर से कूदने ही वाला था पर याद आ गया कि बाहर हाड़ कंपकंपाने वाली ठंड है।<br>दिल को अजीब सा सुकून मिला था कि चलो मैं अकेला ही नहीं जो जाग रहा हूँ, इसको भी नींद नहीं आ रही लेकिन अपनी भावनाओं को दबाकर मैने सोमवीर से सहानुभूति दिखाई की यार पिछले चार घंटे से करवटें बदल रहा हूँ पर नींद का नामो निशान नहीं है। गुस्सा भी किया कि या तो बिल्कुल नहीं लेने देना था या 2 पैग और लेने देता तो शायद ये हालात नहीं होते। और हकीकत में मैं 2 पैग और ले भी लिया होता अगर मेरी बेशकीमती बोटल को ये फोड़ने के लिए नहीं उठा लिया होता।<br>अंजान होमस्टे लांगजा 2 विलेज में जिस रात ये चलचित्र मेरे दिमाग में चल रहा था उसके किरदार मैं और सोमवीर सिंह थे जो कि दिल्ली पुलिस के बेहद दबंग पुलिस ऑफिसर माने जाते हैं और मेरी इस तरह की यात्राओं के हमेशा हमसफर रहे हैं। ये उनकी मर्जी के ऊपर है कि मुझे किस तरह संबोधित करते हैं। जब वो अच्छे मूड में होते हैं तो 'सर', थोड़े खड़ूस मूड में 'बॉस' और अगर फोन पर मेरी किसी से चुगली करनी हो तो मेरे से पांच चार साल छोटे होने के बावजूद 'बापू' कहना पसंद करते हैं और मुझे चिढ़ भी सबसे ज्यादा इसी शब्द से है। मेरे छोटे भाई की उम्र का आदमी अगर मुझे बापू कहे, घोर कलयुग है ये तो। क्या कर सकता हूँ अगर आप किसी शब्द से चिढ़ते हैं तो दुनिया उसी शब्द का सबसे ज्यादा उपयोग करती है।<br>आज का दिन बेहद शानदार रहा था। सुबह 8 बजे डेजोर होटल काजा से शानदार नाश्ता करने के बाद हम दोनो लोगों ने क्ये मोनेस्ट्री होते हुए किब्बर गांव, टशी गंग गांव और क्ये मोनेस्ट्री के टॉप पॉइंट से फोटोग्राफी करने का निश्चय किया था। होटल डेजोर काजा के बहुत अच्छे होटल्स में शुमार होता है और उसके मालिक करण एक बेहतरीन होस्ट। पहली रात हम लोगो ने करण के साथ खूब मस्ती और ढेर सारी बातें की थी तो करण से दोस्ती हो गयी थी जिसका नतीजा सुबह बेहतरीन नाश्ते के रूप में सामने आया था। आज मंगलवार था और सोमवीर मंगलवार को व्रत रखते हैं फिर भी उनके लिए नाश्ते में काफी कुछ था। नौ बजते बजते हम दोनों ने फॉर्च्यूनर बाहर निकाली और चल पड़े। हमेशा की तरह ड्राइविंग सीट सोमवीर ने संभाल ली थी। पहला डेस्टिनेशन था क्ये मोनेस्ट्री जिसको कल शाम भी हम चिचेम विलेज जाते हुए छोड़ गए थे। थोड़ी ही देर में हम लोग क्ये मोनेस्ट्री जाने वाली सड़क पर पहुंच गए लेकिन एक बार फिर कल शाम की तरह यह तय किया कि लौटते हुए देखेंगे हम लोग आगे बढ़ गए। बेहतरीन लैंडस्केप बिखरे पड़े थे। कुछ आगे जाकर टशी गंग गांव जाने वाली सड़क पर गाड़ी डाल दी। यहां से आगे ढेर सारे शार्ट कट्स बने हुए हैं जिन पर कम से कम फॉर्च्यूनर को दौड़ लगाने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। रास्ता क्या था कच्ची उबड़ खाबड़ सड़क थी जिसका एक छोर तो हमने पकड़ा हुआ था और दूसरा अनंत की और जा रहा था। थोड़ा आगे जाने पर हमने क्ये मोनेस्ट्री के टॉप व्यू पॉइंट के लिए गाड़ी बिना सड़क के ही मोड़ दी जिसके बारे में आज सुबह ही करण से पता चला था। गाड़ी पहाड़ों के आखिरी छोर पर खड़ी करके हम दोनों पैदल ही आगे बढ़े। बेहद तेज हवा थी कान दर्द करने लगे थे। थोड़ा सा आगे बढ़ते ही पहाड़ खत्म हो गया और हमारे सामने मंत्र मुग्ध करने वाला नजारा था। लगभग हजार फीट गहरी घाटी के सबसे ऊंचे हिस्से पर हम खड़े थे। नीचे क्ये मोनेस्ट्री साफ दिखाई दे रही थी। सोमवीर को फोटोग्राफी का बहुत शौक है उसने तुरंत पोज बनाने शुरू कर दिए। मुझे फोटो खिंचवाने का उतना शौक तो नहीं है बस सोमवीर के फोटो खिंचवाने के बाद उससे दो चार ज्यादा फोटो मैं भी खिंचवा लेता हूँ जिससे यादें बनी रहें। ये पल वाकई यादगार था आप एक कदम बढ़ाएं और हजारों फ़ीट नीचे चिरनिद्रा में आराम फरमाएं। यहां पर ढेर सारी फोटोग्राफी के बाद हम लोग टशी गंग गांव के लिए आगे बढ़ चले।<br>कुछ किलोमीटर के बाद सड़क पर ही बर्फ मिलना शुरू हो गयी थी। कुछ दिन पहले ही यहां भारी बर्फबारी हो कर हटी थी। सामने ढेर सारी बर्फ हो तो हम क्या कोई भी फोटोग्राफी का मोह छोड़ नहीं सकता। आखिर हम लोग घूमने जाते ही क्यों हैं ? अपना नहीं तो कम से कम सोमवीर का तो पक्का पता है कि जब जब उसके पास फेसबुक पर पोस्ट करने के लिए फोटोज का अकाल होने लगता है तब तब उसका फोन आता है कि "बॉस छुट्टी बची हुई हैं कहीं चलना है क्या"।<br>पहाड़ अब ऊंचे नीचे उभारों और कहीं समतल भूक्षेत्र में तब्दील हो चुके थे और आप गाड़ी को सड़क जैसी दिखती लीक पर चलाएं या उससे हटकर कोई फर्क महसूस नहीं हो रहा था। सामने ही याक्स का एक बड़ा झुंड दिखाई दिया करीब 50 के आसपास बच्चे और मम्मी पापा याक्स कुदरत निर्मित इन बेहतरीन चारागाहों में मजे कर रहे थे। हम लोग वापसी में इनके साथ फोटो खिंचाने का सोचकर आगे टशी गंग की तरफ बढ़ गए। 4-5 घरों का गांव टशी गैंग पता नहीं गैंग जैसा तो कुछ दिखा नहीं, गैंग तो अपने वेस्टर्न यू पी में होते हैं, पर था बहुत खूबसूरत। सड़क आगे भी जा रही थी हम थोड़ा रुककर आगे बढ़ चले पर जल्दी ही सड़क बेहद खराब हो गयी और न चाहते हुए भी हमें वापिस लौटना पड़ा। रास्ते में याक्स का रेहड़ फिर मिला तो गाड़ी रोक ली। कई बार अगर आदमी आपकीं बात न समझे तो उसे उसकी नियति पर छोड़ देना चाहिए वही सोमवीर के मामले में मैंने किया। लाख मना करने के बावजूद श्रीमान हीरो के माफिक लाल जैकेट डाल कर याक्स की तरफ बढ़े और लाल रंग की वो खूबसूरत जैकेट जो लड़कियों को उनकी ओर बेहद आकर्षित करती थी एक पापा याक को विकर्षित कर गयी और इनके सड़क से नीचे उतरते ही वो हुंकारते हुए इनकी तरफ दौड़ा। दिल्ली पुलिस के कमांडो न होते तो मुझे उस दिन पक्का अपने डॉक्टर होने का वहीं सबूत देना पड़ता। खैर झेंपा हुआ आदमी कहीं ज्यादा खतरनाक होता है ये उस दिन इन्होंने साबित भी किया। बेसबॉल का बैट निकाल कर इन्होंने अपने हाथ मेें ले लिया। इनकी इस हरकत पर निहत्ते पशु को डराने का मुकदमा अगर सरकार चलाना चाहे तो चला सकती है विटनेस मैं दूंगा। खैर बेसबॉल का बैट इनके हाथ में देखते ही पापा याक् जितने गुस्से से इनकी तरफ आया था उससे भी ज्यादा तेजी से उल्टे पैर भाग गया, फिर तो इन्होंने बच्चे याक्स से खूब दोस्ती की और फ़ोटो भी खिंचाई। मेरा तो अन्डरस्टुड है कि पैक्ट के मुताबिक इनसे कुछ ज्यादा फोटो मैने भी खिंचाकर इनको कृतार्थ किया। 2 बजने को थे और आज के प्रोग्राम के अनुसार हमें कॉमिक होते हुए लांगजा में विश्राम करना था। विनोद वर्मा भाईसाहब के सौजन्य से अभी तक की यात्रा बिना किसी कठिनाई के निर्विघ्न सम्पन्न हो रही थी। विनोद वर्मा जी से मेरी बात एक इत्तिफाक ही था जिसके बाद मेरी उनके दिल्ली स्थित ऑफिस पर एक शानदार मुलाकात हुई। प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी विनोद वर्मा जी होम स्टे ऑफ इंडिया के सह संस्थापक हैं। वो एक बेहतरीन ट्रेवल राइटर, फोटोग्राफर हैं और उन्होंने पहाड़ों के बारे में बहुत कुछ लिखा है और कई मैगजीन्स में उनके फोटोज और आर्टिकल पब्लिश होते रहते हैं। मेरे इस पूरे भ्रमण के दौरान होम स्टे में रात्रि विश्राम का इंतजाम उन्ही के द्वारा किया गया था जो निर्विघ्न चल रहा था और कई मामलों में ये ट्रिप मेरे पिछले सभी अनुभवों से अलग था। ये कम बजट टूर था जिसमें हम इन दुर्गम जगहों पर होटल्स के बजाय होम स्टे को ज्यादा तरजीह दे रहे थे।<br>हम लोग एक बार फिर से क्ये मोनेस्ट्री के सामने से निकल रहे थे और दुर्भाग्यवश मेरी स्पीति की पिछली छह यात्राओं की तरह इस बार फिर यही डिसाइड हुआ कि क्ये मोनेस्ट्री को फिर कभी देखेंगे, हम दोनों 3 बजे काजा पहुंच गए।<br>काजा में सिर्फ एक ही पेट्रोल पंप है इस वजह से टूरिस्ट सीजन में अक्सर बेहद भीड़ रहती है पर किस्मत अच्छी थी बिल्कुल खाली मिला और हम लोगों ने मौके का फायदा उठाते हुए टंकी फुल करा लिया। अब हम कम से कम अगले दो दिन के लिए निश्चिंत हो गए थे।<br>काजा समुद्र तल से लगभग 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से कॉमिक जाने के लिए दो रास्ते हैं एक रास्ता अधिक दुर्गम मगर छोटा है जो हिक्किम गांव होते हुए जाता है।<br>हिक्किम कॉमिक के पास ही स्थित एक अलग गांव है जिसमें विश्व का सबसे ऊंचा डाकघर स्थित है। हमको लांगजा गांव में रुकना था तो निर्णय लिया कि हिक्किम होते हुए जाएंगे व कॉमिक होकर लांगजा निकल जाएंगे।<br>चार बजे के आसपास हम लोग हिक्किम डाकघर की फोटोग्राफी करते हुए कॉमिक पहुंच गए।<br>कॉमिक सड़क मार्ग से जुड़ा विश्व का सबसे ऊंचा गांव है जिसके दावे पर लोग अक्सर संदेह करते रहते हैं। समुद्र तल से लगभग 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस गांव में Tangyud Sa-skya-gong-mig गोम्पा स्थित है जिसको विश्व की कुछ सबसे ऊंची मोनेस्ट्री में से माना जाता है। माना जाता है कि इसको चौदहवीं शताब्दी में बनाया गया था।<br>कभी ये पूरा भूक्षेत्र लहलहाता हुआ समुद्र हुआ करता था जो कालांतर में पहाड़ी रेगिस्तान/पठार में रूपांतरित हो गया। इसके प्रमाण और सामुद्रिक जीवों के जीवाश्म इस क्षेत्र में जगह जगह बिखरे पड़े हैं और अक्सर इस पर शोध चलते रहे हैं। बौद्ध मठ के लामा ने हमको भी कुछ जीवाश्म दिखाए।<br>पांच बजने वाले थे हम लोग कॉमिक से अपने अगले पड़ाव लांगजा 2 के लिए चल दिये। लगभग 20 मिनट बाद हम भगवान बुद्ध की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध गांव लांगजा में खड़े थे।<br>किब्बर की तुलना में लांगजा गांव छोटा है, वहां महज 33-34 घर हैं।<br>समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 4400 मीटर है। हिक्किम की ऊंचाई भी लगभग लांगजा या किब्बर के ही बराबर है। लांगजा में हजार साल से ज्यादा पुराना लांग (बौद्ध) मंदिर है। इसकी बहुत मान्यता है और स्पीति घाटी के सभी देवताओं का केंद्र माना जाता है।<br>आधुनिकता से दूर ये गांव हज़ारों साल पहले बसे होंगे। अभी भी यहां के निवासियों की अपनी संस्कृति को बचाए रखने की कोशिशें साफ दिखाई देती हैं। यहां के लोग बेहद सरल, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ होते हैं।<br>गाड़ी पार्क करने के उपरांत भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ ढेर सारी फोटो खिंचाई और अपने आज के होम स्टे "अंजान होम स्टे" की और बढ़ चले। बाद में पता चला कि होम स्टे के मालिक का नाम अंजान है जो कि लांगजा विलेज की स्थानीय समिति के सदस्य भी हैं। यहां लोगो के झगड़े अधिकतर इनके मुखिया व ग्राम समिति के द्वारा ही सुलझा लिए जाते हैं।<br><br><br>अंजान होम स्टे एक स्पीति स्टाइल में बना खूबसूरत मकान था जिसमें लगभग 3 कमरे होम स्टे की तरह इस्तेमाल किये जा रहे थे। उस दिन किस्मत से कोई बुकिंग नहीं थी तो हम लोगो ने अलग सोने के विचार से ट्रिपल बैड रूम को चयन किया। बदकिस्मती से कुछ दिन पूर्व हुए भारी हिमपात की वजह से काजा से ऊपर के अधिकतर गांवों में सभी टॉयलेट फ्रीज हो चुके थे और इनके पास एकमात्र ऑप्शन स्पीतियन ड्राई पिट्स टॉयलेट उपलब्ध थे। मजबूरी थी थोड़ी न नुकर के बाद कोई चारा न देखते हुए हां कर दी और सामान लगा दिया गया। दिन लगभग छिप चुका था। छाती को चीरने वाली ठंड शुरू हो चुकी थी उसी के साथ अब तक सबसे ऊंचाई पर बिताए जाने वाली रात की भी शुरुवात हो चुकी थी।<br>वैसे तो मैं 7-8 बार लेह लद्दाख गया हूँ और 5-6 बार इससे पहले भी स्पीति आ चुका था पर संभवतः 4400 मीटर की ऊंचाई पर रात बिताने का पहला अनुभव था। ऊंचाई को पार करना और ऊंचाई पर वक्त बिताना या चलना एकदम अलग है। मुझे अभी भी याद है कि 2016 में लेह ट्रिप के दौरान हम लोगो ने खारदुंगला पास पर लगभग 2 घंटे मस्ती की थी। इसके अलावा दयारा बुग्याल पर भी रात्रि विश्राम कर चुका था, बेदिनी बुग्याल भी रात्रि विश्राम किया था परंतु ये सब जगह ऑक्सीजन क्राइसिस एरिया नहीं हैं तो ज्यादा दिक्कत नहीं आती। स्पीति और लेह ऑक्सीजन डेफिसेन्ट एरिया हैं जहां आप अगर उचित अनुकूलन के बिना जाते हैं तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। खैर चिंता की कोई बात नहीं थी क्योंकि डाईमोक्स टेबलेट अपने पास उपलब्ध थी। सौभाग्य से अभी तक की किसी भी यात्रा में इसको खाने की नौबत नहीं आयी थी हां देने की नौबत कई बार आयी थी।<br><br>"बॉस आज आपने बिल्कुल नहीं पीने का वायदा किया था" सोमवीर बोला<br><br>"यार एक पैग तो लेने दे। तुझे तो पता है सिर्फ टूर पर ही थोड़ा बहुत लेता हूँ"<br><br>"नहीं आज नहीं"<br><br>"प्लीज सिर्फ एक"<br><br>"अच्छा ठीक है सिर्फ एक ले लो अगर दूसरा लिया तो बोतल फोड़ दूंगा"<br><br>अंधा क्या चाहे 2 आंखे<br>60 ml का एक पटियाला पैग बनाया और पहुंच गए अंजान भाई के भित्ति ग्रह में जहां अंगीठी से पूरा कमरा गर्म हो रखा था।<br>खाना सादा परंतु बेहद नफासत से बनाया व सर्व किया गया था। छोटी छोटी चीजो का ध्यान रखा जा रहा था। कई तरह के अचार, मक्खन और टेस्टी खाना। शायद उन लोगो को हमारी खुराक का अंदाजा नहीं था।<br>खाने में एक रोटी खाने वाले लोगो के लिए उन्होंने ढेर सारा खाना तैयार किया था। </div>
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"इतना तो हम चार दिन न खा पाएंगे हंसते हुए मैंने कहा"।<br><br>अंजान बोला "सरजी ऐसे तो यहां ज्यादा दिन जिंदा न रह पाओगे"।<br><br>खाना खाने के बाद हम लोग अपने कमरे में लौट आये और सोचकर कि आज जल्दी सोते हैं और कल जल्दी निकलेंगे आखिर कल यहां से सांगला तक की दूरी जो तय करनी थी, हम लोग जल्दी अपने बिस्तरों में घुस गए।<br>4 घंटे की कुलमुलाहट के बाद का घटनाक्रम आप पहले ही पढ़ चुके हैं।<br><br>सोमवीर को जगा हुआ पाकर जितना सुकून मुझे मिला शब्दों में नहीं लिख सकता। वाकई अजीब स्थिति थी। नाक बंद थी और दोनो के सिर में दर्द था। मुंह ढकें तो सांस नहीं आ रही थी और मुंह बाहर निकालें तो ठंड से जम जा रहे थे। दोनो ने बात करना शुरू कर दिया।<br><br>"सर् सुना है हिमालय की कंदराओं में ऐसे ऐसे तांत्रिक और अघोरी बाबा हैं जो तंत्र क्रियाएं करते रहते हैं"। सोमवीर बोला<br><br>"सब बकवास है तंत्र मंत्र कुछ नहीं होता" मैंने कहा।<br>"मैंने तो बॉस यह भी सुना है कि इन रहस्यमयी पहाड़ो में आत्माएं विचरण करती हैं"<br><br>"कम ऑक्सीजन की वजह से तेरा दिमाग खराब हो गया है भाई"।<br>"एक काम कर दो चार भूतनियाँ मेरे कमरे में भेज दे और तू बराबर वाले कमरे में जा वो भी खुला हुआ है" मैंने हंसते हुए उसको हल्का करने लिए कहा।<br><br>"बॉस अगला टूर दक्षिणी भारत का बनाओं पहाड़ों का तो चप्पा चप्पा छान मारा है हमने"।<br>"चुप अभी अगले साल एवरेस्ट बेस कैंप चलना है" मैंने कहा उसके बाद दक्षिणी भारत चलेंगे।<br>"मैं तो नहीं जाऊंगा। अब तो मैं पहले अगले साल गोआ जाऊंगा"।<br>"ठीक है जा मैं किसी और को गोद ले लूंगा जा तेरे बापू की पदवी से त्यागपत्र देता हूँ"।<br>"अच्छा चलो बाद में सोचेंगे उसने डरकर कहा।<br>नहीं अभी फाइनल कर, रात के 2 बजे अगला प्रोग्राम" कहते कहते मेरी आँखें बोझिल हो चली थी<br>उधर से भी कोई जवाब नहीं आया।<br>देखा कोई मुझे हिला रहा था। चौंककर उठा तो सोमवीर बोला<br>"बॉस मुुुुझसे ड्राई पिट में नहीं होगा मैंने आजतक बिना पानी के नहीं किया"।<br>"अबे सुबह हो गयी क्या मैंने आंखे मलते हुए पूछा"।<br>"जी बॉस 7 बजने वाले हैं 8 बजे निकलना है।<br>और मेजबान भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे अभी। बॉस मैं ऐसा करता हूँ गाड़ी में पानी की बोतलें पड़ी हैं न वही इस्तेमाल कर लेता हूँ"।<br>रास्ता दिखा दिया था लड़के ने।<br>कुुुुछ देर बाद पत्थर बनी हुई दो बोतलें लेकर भाईसाहब लौटे।<br>बोतलें जमी हुई थी और हमारी उम्मीदें भी।<br><br>"सर बाथरूम में गर्म पानी रख दिया है" थोड़ी देर बाद बाहर से अंजान की आवाज आई थी। </div>
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दिल को बड़ा सुकून सा मिला था यह सुनकर।<br><br><b><u>पार्ट 4-रक्चम सांगला</u></b></div>
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24 अक्टूबर सुबह 7 बजे सोमवीर ने झिंझोड़ कर बिस्तर से उठाया था। पता नहीं रात 2 बजे नींद आयी थी या 3 बजे। अभी भी सिर में दर्द हो रहा था। बड़ी कशमकश के बाद किसी तरह ड्राई पिट का इस्तेमाल किया गया। नहाने के बारे में तो सोच कर ही डर लग रहा था, सहम कर ब्रश तो कर लिया और फोटो अच्छी आएं इसके लिए चेहरे को भी क्लीन शेव कर लिया गया। रात तय हुआ था कि नाश्ता करके 8 बजे यहां से निकल लेंगे अंजान ने भी सुबह 8 से पहले नाश्ता तैयार करने को हामी भर दी थी। हम दोनों समान पैक करके 8 बजे के आसपास नीचे भूतल पर स्थित गर्म कमरे में नाश्ते के लिए पहुंच गए। </div>
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3 बच्चे, अंजान खुद, उनकी पत्नी और उनकी सासू मां उस वक्त कमरे में मौजूद थी। अंजान की सासू मां लगातार खांसी कर रही थी। पता लगा कि उनकी बहुत पुरानी समस्या है। सोमवीर को ऊपर कमरे में भेज कर मेडिकल किट से स्टेथोस्कोप मंगा कर उनको चैक किया तो एलर्जिक खांसी प्रतीत हुई जिसकी दवाईयां उनको अपने पास से दे दी गयी और भविष्य के लिए सावधानियां और दवाईयां बता दी गयी। जल्द ही नाश्ता हमारे सामने था। पहली बार देखा था तो पूछने पर पता लगा कि तिब्बतन पिज़्ज़ा है। पहली बार ऐसा कुछ खाने के लिए हमारे सामने था खाकर देखा तो थोड़ा कच्चा और स्वादहीन लगा। अंजान से कहा कि इसको थोड़ा और सिकवा दीजिए उसके बाद वो इतना कड़ा हो गया कि खाना ही मुश्किल हो गया। उसके बाद अनजान से कहकर परांठे बनवाये गए और उनको दो तीन कप चाय, ढेर सारा मक्खन और आचार के साथ खत्म करके हम लोग सामान लेकर बाहर खुले में खड़ी अपनी गाड़ी तक पहुंचे। </div>
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अनजान ने रिक्वेस्ट किया था कि उनकी सासू मां और एक लड़की को काजा छोड़ दें जिसे हमने सहर्ष ही स्वीकार भी कर लिया था क्योंकि हमें काजा होते हुए ही जाना था। सामान गाड़ी में भरकर हम सब लोग गाड़ी में बैठ गए। सोमवीर जी हमेशा की तरह ड्राइविंग सीट पर और मैं कंडक्टर सीट पर। </div>
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शैल्फ लिया गाड़ी स्टार्ट हुई पर कुछ सेकंड के बाद ही बंद हो गयी। फिर स्टार्ट किया फिर वही हुआ। लगभग आठ दस बार ऐसा ही होता रहा उसके बाद गाड़ी स्टार्ट होना भी बंद हो गयी। धीरे धीरे गाड़ी का शैल्फ भी लगना बंद हो गया।</div>
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लगभग 9 बजने वाले थे, सूरज धीरे धीरे पहाड़ों के ऊपर बिखरे बादलों से बाहर आने लगा था। तापमान अभी भी माइनस में ही प्रतीत हो रहा था। लोग इकट्ठा होने शुरू हो गए। उन्होंने ही बताया कि गाड़ी का तेल जम गया है तो या तो 2-3 घंटे इंतजार करना पड़ेगा या फिर गाड़ी में नीचे आग लगा कर उसको गर्म करना पड़ेगा। उनमें से एक ने गाड़ी के नीचे झांक कर देखा तो पता चला फॉर्च्यूनर के नीचे पूरे एरिया में फाइबर शीट लगी है इसलिए इसको नीचे से गर्म नही किया जा सकता। बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गयी थी। तभी अंजान ने कहा कि गांव में एक ट्रैक्टर है वो उसको ले कर आता है उससे खिंचवा कर स्टार्ट करने की कोशिश करते हैं। अंजान और सोमवीर दोनो गांव में आगे चले गए और मैं वहीं खड़ा रहा। </div>
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1 घंटे के आसपास ऐसे ही निकल गया लेकिन इन दोनों का कोई पता नहीं था।लगभग 10 बजे के आसपास नीचे एक ट्रैक्टर के स्टार्ट होने की आवाज आई जो जल्दी ही करीब आ गयी। पास आने पर पता चला कि ट्रैक्टर का तेल भी जमा हुआ था तो पहले उसके नीचे स्टोव जला कर उसको पिंघलाया गया फिर वो स्टार्ट हुआ। </div>
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गाड़ी को ट्रैक्टर के पीछे बांध कर भगवान बुद्ध की प्रतिमा के ठीक पीछे ले जाया गया जहां से ढलान शुरू होता था। उसके बाद ट्रैक्टर को थोड़ा स्पीड में डाल कर कोशिश किया तो पहली ही बार में गाड़ी स्टार्ट हो गयी। भगवान को धन्यवाद देते हुए ट्रैक्टर वाले को 500 रुपये दिए और फाइनली 10.30 के आसपास हम वहां से चल पड़े। </div>
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बिना किसी वजह के 500 रुपये और 2.30 घंटे का नुकसान बड़ा ही तकलीफदेह था और दोनो का ही मूड ऑफ हो गया था। पर जब कुदरत ने आपके चारों तरफ इतनी खूबसूरत पेंटिंग्स की हुई हों तो मूड कब तक खराब रहता जल्दी ही दोनो चहकने लगे और आज के प्रोग्राम के बारे में डिस्कस करने लगे। </div>
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अब तक का पूरा प्रोग्राम विनोद वर्मा जी की सहायता से निर्विघ्न चल रहा था। आज इस यात्रा का छठा दिन था और आज का दिन पूरी तरह से अनप्लांड था क्योंकि प्रोग्राम के अनुसार आज हमें कुंजम पास होते हुए बाटल रुकना था परंतु भारी बर्फबारी के कारण कुंजम बंद था और मजबूरी वश हमें उसी रास्ते से वापसी करनी थी जिससे हम यहां पहुंचे थे। यह थोड़ा बोरिंग और बोझिल हो जाता है परंतु और कोई चारा भी नहीं था और आज की रात कहीं रुकने का इंतजाम भी नहीं था। सोचा रास्ते से सिग्नल के मिलते ही विनोद जी को इन्फॉर्म कर देंगे तो कुछ न कुछ हो ही जायेगा। </div>
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कल्पा और सांगला चितकुल में यह वक्त पश्चिमी बंगाल से आये टूरिस्टों की वजह से सबसे प्राइम वक्त होता है जिसमे हर अच्छा बुरा होटल, होमस्टे लगभग पूरा पैक होता है। खैर हम दोनों पुलिस विभाग से संबंधित हैं तो ज्यादा चिंता की बात नहीं थी कहीं न कहीं तो इंतजाम हो ही जाना था। </div>
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ऊंची जगहों पर अक्सर मैंने नोटिस किया है कि वहां पर लोकल ड्राइवर अक्सर बाहर के लोगों को पसंद नहीं करते हैं और गाड़ी को दबाने की कोशिश करते हैं तो लड़ते झगड़ते, जगह जगह सेव की पेटियों के रेट पूछते हम लोग चलते रहे। विनोद जी से भी बात हो गयी थी और उन्होंने सांगला में रुकने का इंतजाम हो जाने का आश्वासन दिया था तो हम निश्चिंत हो गए थे।</div>
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रास्ते में गाड़ी गियु की तरफ मोड़ ली जहां पर एक बौद्ध भिक्षु की ममी रखी हुई है। कहते हैं कि ममी के बाल और नाखून बढ़ रहे हैं मुझे तो उतने ही लगे जितने पिछली 2 बार छोड़कर गया था। </div>
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गियु से भी हम लोग जल्दी चल दिये रास्ते में एक मैकेनिक को लिफ्ट देते हुए लगभग 6 बजे करछम पावर स्टेशन पहुंच गए और सांगला की तरफ जाने वाली सड़क पर मुड़ गए। </div>
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आज के रुकने का इंतजाम नेगी होम स्टे में हो चुका था जो कि एक बेहद खूबसूरत होम स्टे निकला। होम स्टे क्या था यह मकान तो अंदर से एक खूबसूरत महल जैसा था और लगभग पूरी तरह से नक्काशीदार लकड़ियों से बना था। सामने ही सेव और खुबानी के बागान और उसके थोड़ा ही आगे बलखाती सांगला नदी। पदम नेगी जो कि इस होम स्टे के मालिक थे उन्होंने हमारा समान कमरे तक पहुंचाने में हमारी मदद की और खाने के बारे में पूछा। नेगी साहब ने यह भी ताकीद कर दिया कि सिर्फ सादा खाना ही उपलब्ध हो पायेगा।<br>दाल और गाजर गोभी की सब्जी के साथ पदम नेगी जी ने कई तरह के अचार और रोटी जमीन पर बिछे आसनों के सामने लगा कर हम लोगों को खाने के लिए बुला लिया। खाना एकदम घर जैसा व स्वादिष्ट बना था। नेगी जी कहीं न कहीं मन में यह भाव लिए बैठे थे कि वो ठीक से खाने का प्रबंध नहीं कर पाए। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था।<br>सुबह नित्यकर्म से निरवृत्त होकर हम दोनों सेव के बाग में घूमने निकल पड़े। सेव का सीजन लगभग खत्म होने को था और नेगी जी के होम स्टे में सेव की सैंकड़ों पेटियां मंडी जाने के लिए पैक होकर रखी थी। एक बात तो तय थी कि वो सिर्फ शौक के लिए ही होम स्टे चला रहे थे अन्यथा सेव के इतने बड़े बाग के मालिक होने के बाद उनको इसकी जरूरत ही कहाँ थी।<br>आज गाड़ी से ज्यादा सफर नहीं तय करना था। आज का प्रोग्राम 20 किलोमीटर दूर स्थित चितकुल जाकर वापसी में रक्चम या सांगला ही रुकना था। आराम से नाश्ता करके हम लोग नौ बजे के आसपास नेगी जी के विलेज व्यू होम स्टे से निकल पड़े।<br>सांगला की खूबसूरत वादियों को निहारते हुए और फोटोग्राफी करते हुए हम लोग चितकुल की और जा रहे थे।<br>चितकुल किन्नौर जिले का एक बेहद खूबसूरत जनजातीय गांव है जो बासपा नदी के तट पर सांगला से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है और बास्पा घाटी का सबसे ऊँचाई पर स्थित गांव है। समुद्र तट से इसकी ऊंचाई लगभग 3450 मीटर है। यह भारत - तिब्बत सीमा से निकटता में स्थित आखिरी बसे गांव के रूप में भी जाना जाता है।<br>चितकुल मार्ग पर चलते हुए हम लोग रक्चम स्थित ITBP की चैक पोस्ट पर पहुंचे। उसके बराबर में ही ITBP कैम्प का बोर्ड लगा था। मेरे दिमाग में अचानक कुछ विचार आया और मैं गाड़ी से उतरकर चैक पोस्ट पर बैठे जवानों के पास पहुँचा।<br>"हैल्लो! मैं डॉ अमित त्यागी, चीफ मेडिकल ऑफिसर दिल्ली पुलिस" मैंने उनसे कहा।<br>"जयहिंद सर" जवान ने बोला<br>"जयहिंद"<br>"मुझे आज रात के लिए ऑफिसर्स मैस में एकोमोडेशन चाहिए। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?" मैंने अपना आई कार्ड उनके सामने रखते हुए कहा।<br>"सर इसके लिए आपको डिप्टी कमांडेंट साहब से बात करना होगा"।<br>"फिर मेरी उनसे बात कराइये प्लीज"<br>जवान ने सामने रखे इंटरकॉम को उठाकर कमांडेंट साहब को फोन करके मेरे बारे में बताया। उधर से सहमति के बाद फोन मुझे दे दिया।<br>"सर बताइए आपकीं क्या मदद कर सकता हूँ" उधर से एक गंभीर आवाज आई।<br>मैंने अपना परिचय देते हुए कहा " सर मुझे आज रात के लिए ऑफिसर्स मैस में एक कमरा चाहिए"।<br>"इसके लिए मुझे हैड क्वार्टर से अनुमति लेनी होगी" उन्होंने कहा। "आप ऐसा कीजिये पहले चितकुल घूम आईये और लौटते हुए मुझसे बात कीजियेगा, तब तक मैं हैड क्वार्टर को सूचित कर देता हूँ"। डिप्टी कमांडेंट साहब बोले।<br>"ठीक है सर" कहने के साथ ही मैंने फोन रख दिया।<br>हम लोग गाड़ी की एंट्री करने के बाद आगे चल दिये।<br>प्रकर्ति ने इस पूरे क्षेत्र को ही बेपनाह खूबसूरती से नवाजा है चारों और ऊंचे, सफेद वस्त्र पहने पहाड़, नीचे कर्णप्रिय संगीत सुनाती, बलखाती बास्पा नदी, देवदार के हरे भरे वन, सेव से लदे बागीचे हर चीज दर्शनीय है। बास्पा नदी के दाहिने तट पर स्थित इस ग्राम में स्थानीय देवी माथी का मंदिर बना हुआ हैं जो गांव के मूल निवासियों द्वारा माता देवी के रूप में भी जाना जाता है और हिंदू देवी गंगोत्री को समर्पित है, यह मंदिर पर्यटकों और मूल निवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय है।<br>सर्दियों के दौरान, इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है और इसके कारण इस क्षेत्र में रहने वाले लोग निचले हिमाचल के क्षेत्र में जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यहां दिन का तापमान अधिक और रात्रि तापमान बेहद कम रहता है। जिस वजह से सर्दियों में यहां पर लोग ड्राई पिट शौचालयों का उपयोग करते हैं। चितकुल गांव से ही चितकुल पास और गंगोत्री के लिए ट्रेकिंग का आरंभ होता है।<br>चितकुल में ITBP कैम्प भी है। परंतु यह प्रतिबंधित क्षेत्र है और सिर्फ अनुमति लेकर ही वहां से आगे जाया जा सकता है। हमारा आगे जाने का बिल्कुल मन नहीं था इसलिये चितकुल में फोटोग्राफी कर हम लोग वापिस चल पड़े। अगर मुझसे पूछा जाए तो सांगला, रक्चम और चितकुल में मुझे रक्चम सबसे ज्यादा खूबसूरत लगता है। चारों तरफ से बहती पानी की धाराएं और हरियाली मन मोह लेती है। वापिस रक्चम ITBP चैक पोस्ट पर पहुंचने के बाद हम लोगों को खबर मिली कि ऑफिसर्स मैस में आज रात के लिए बुकिंग कन्फर्म हो गयी है।<br>हम दोनों बेहद खुश हुए क्योंकि यह कैम्प इस मार्ग के सबसे खूबसूरत स्थान पर बास्पा नदी के बिल्कुल किनारे पर स्थित है। ITBP, SSB और CRPF के अधिकारी निवास में मुझे कई बार रुकने का मौका मिला है। यह बहुत ही सुरुचिपूर्ण ढंग से बनाये व व्यवस्थित किये गए होते हैं। यहां भी ऑफिसर्स मैस किसी तरह से भी कम नहीं था। बड़े बड़े सोफे, लकड़ी की आरामदेह कुर्सियां, किंग साइज बैड और नर्म मुलायम रजाईयां सब कुछ करीने से लगा हुआ व व्यवस्थित था।<br>दोपहर का लगभग एक बजा था। गर्म गर्म चाय व पकोड़े खाने के बाद मैं और सोमवीर कैम्प से सटकर बहती बास्पा नदी की तरफ चल दिये।<br>धूप निकली थी। हम लोग नदी के किनारे ही पत्थरों पर लेट गए। जल्दी ही हमें नींद आ गयी। चार बजे के आसपास जब ठंडक महसूस हुई तो दोनों की आंखे खुली। सामने ही एक खूबसूरत ग्लेशियर दिखाई दे रहा था। मैंने फेसबुक खोलकर लाइव ओपन कर दिया। सोमवीर कुछ नाराज हो रहा था। वो फोटोग्राफी करना चाहता था जो कि फेसबुक लाइव की वजह से नहीं हो पा रही थी। खैर थोड़ी देर बाद लाइव को बंद करके मैंने फोटोग्राफ खींचने शुरू किए। सोमवीर नदी के बिल्कुल बीच में स्थित एक बड़े पत्थर पर खड़े होकर फ़ोटो खिंचवा रहा था। उसका फोटो सेशन खत्म होने के बाद अब मेरी बारी थी। मैंने अपना मोबाइल सोमवीर को दे दिया।<br>"सर वहां उस पत्थर पर आप मत जाइयेगा, वहां बहुत फिसलन है" उसने कहा।<br>"पागल है क्या" कहते हुए मैं उसी पत्थर की और बढ़ गया।<br>सोमवीर के दो तीन फोटो खींचने के बाद मैं पोज बदलने के लिए मुड़ा तभी<br>"छपाक"<br>"अबे पकड़" मैं जोर से चिल्लाया।<br>मेरा पैर फिसला था और मैं कोट पेंट और जूतों के साथ नदी में गोते लगा रहा था।<br>किस्मत से पत्थर पर पकड़ बन गयी थी और उससे भी बढ़कर सोमवीर फोटो खींचना भूलकर मुझे पकड़ने को दौड़ा था।<br>बाद में दिल को बड़ा सुकून मिला था कि इस लम्हे की कोई फोटो या वीडियो फोन में कैद नहीं हो पाई थी वरना तो वह इस फोटो को दिखा दिखा कर पूरी जिंदगी मेरा मजाक उड़ाता।<br>शाम के पाँच बजे जब तापमान जीरो डिग्री के आसपास हो और आप सूट बूट के साथ बर्फ के पानी में पड़े हो तो दिल और दिमाग पर क्या बीत रही होगी आप समझ लीजिए।<br>बड़ी मुश्किल से कांपते हुए करीब 300 मीटर दूर स्थित कमरे तक पहुँचा और कपड़े उतारकर गर्म पानी में देर तक नहाता रहा तब जाकर शरीर कुछ सामान्य हुआ।<br>बाहर निकलते ही रजाई में घुस गया। </div>
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थोड़ी देर बाद डिप्टी कमांडेंट साहब मिलने के लिए आ गए। लगभग हम उम्र कमांडेंट साहब भी ट्रैकिंग के शौकीन निकले और उन्होंने चितकुल पास व गंगोत्री ट्रेक पर उनके द्वारा किये गए कई बचाव कार्यो की कहानियां सुनाई। रात का खाना हम लोगो ने साथ ही लिया था। बहुत दिन के बाद आज मेरी पसन्दीदा शाही पनीर की सब्जी मिली थी।<br>आज की रात हमारी इस यात्रा की पहाड़ो पर आखरी रात थी। कल हमे हर हालत में चंडीगढ़ पहुंचना था जिससे परसो दोपहर से पहले दिल्ली पहुँचा जा सके। आखिर परसो 27 अक्टूबर को करवा चौथ का त्योहार था और अर्धांगिनी की तरफ से सख्त हिदायत थी कि दोपहर से पहले घर पहुँच जाना है।<br>सुबह का नाश्ता जल्दी लेकर हम लोग कमांडेंट साहब का धन्यवाद करने चले गए और उनको दिल्ली आने का निमंत्रण भी दिया। आज पहाड़ो पर हमारा आखिरी दिन था। रात तक हम लोग चंडीगढ़ और कल दोपहर तक दिल्ली होंगे।</div>
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फिर वही ज़िंदगी की जद्दोजहद फिर वही भाग दौड़ और फिर वही एक दूसरे से गला काट प्रतियोगिता। </div>
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यात्रा कभी खत्म नही होती है। यह तो अनवरत जारी है। जीवन भी एक यात्रा ही है। </div>
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इस भागदौड़ भरी जिंदगी में ज़िंदगी को ढूंढने के लिए मुझे अक्सर पहाड़ों पर आना पड़ता है। यहाँ आकर ही मुझे अपने जीवन की क्षुद्रता का अहसास होता है। </div>
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यहीं पर मुझे मेरे होने का अहसास होता है। </div>
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यहीं पर आकर मुझे ईश्वर के होने का दृढ़ विश्वास होता है।<br>शुभकामनाओं के साथ<br>आपका अमित<br></div>
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Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-5111715250437860342018-12-05T23:37:00.001-08:002018-12-05T23:38:02.131-08:00माइनस 18 डिग्री सेंटीग्रेड की वो रात- स्पीति डायरीज<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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पूरे चार घंटे से मैं बिस्तर में पड़ा करवटें बदल रहा था लेकिन नींद थी कि आंखों से कोसों दूर थी। दिमाग में न जाने कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे। मैं ड्रिंकर तो नहीं हूं पर अक्सर पहाड़ों पर थोड़ी सी पी लेता हूँ। रात भी जॉनी वाकर प्लेटिनम की बोटल् लुभा तो खूब रही थी पर कुछ तो सोमवीर का डर और कुछ इतनी ऊंचाई पर रुके होने के कारण, आज रात सिर्फ एक ही पैग लिया था शायद यही कारण था वरना सोने में इतनी दिक्कत तो कभी नहीं आती। कल रात कॉमिक का तापमान माइनस 18 डिग्री सेंटीग्रेड रिकॉर्ड किया गया था। उठकर टाइम देखना चाहा तो मोबाइल इतना ठंडा था कि छूने से ही कंपकंपी बंध गयी। एक बजा था, मतलब अगर नींद नहीं आयी तो कम से कम 5 घंटे ऐसे ही करवटें बदलना पड़ेगा, बेहद डरावना ख्याल था खासकर जब आप इतनी ऊंचाई पर हों और अकेले जागना पड़ जाए तो। लेकिन कहते हैं भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। हम दो ही लोग थे मैं और सोमवीर सिंह और हम दो लोग ट्रिपल ऑक्यूपेंसी वाले रूम में रुके थे। जब रूम मिला था तो बड़े खुश थे कि आज तो खुलकर सोने को मिलेगा पर किसको पता था, हर इच्छा पूरी कहाँ होती है। यहां तो इतनी ठंड में बाहर भी नहीं निकल सकते जो टूटते तारे को देखकर विश ही मांग लेते की आज की रात नींद आ जाये । खैर तभी सामने वाले बिस्तर से उनींदी सी आवाज आई, लगा कमरे में ऑक्सीजन की कमी की वजह से मतिभ्रम भी हो चला है जो आवाजे आ रही है क्योंकि सोमवीर को तो अगर बाहर भी डाल आता तो वो तो वहां भी सोया हुआ होता पर नहीं फिर वही आवाज आई इस बार थोड़ा जोर से, <br />
बॉस नींद नहीं आ रही क्या। <br />
वाकई दिल को इतना सुकून शायद कभी नहीं मिला होगा जितना सोमवीर की आवाज को सुनकर मिला। <br />
मैंने कहा कि मुझे तो नहीं आ रही भाई पर तू क्या कर रहा है सोया नहीं ?<br />
बॉस मुंह ढकता हूँ तो कम ऑक्सीजन की वजह से सांस ठीक से नहीं आ रही, नाक भी बंद है और बाहर मुंह निकालता हूँ तो लगता है जम जाऊंगा इतनी सर्दी में। <br />
खुशी के मारे मैं बिस्तर से कूदने ही वाला था पर याद आ गया कि बाहर हाड़ कंपकंपाने वाली ठंड है।<br />
दिल को अजीब सा सुकून मिला था कि चलो मैं अकेला ही नहीं जो जाग रहा हूँ, इसको भी नींद नहीं आ रही लेकिन अपनी भावनाओं को दबाकर मैने सोमवीर से सहानुभूति दिखाई की यार पिछले चार घंटे से करवटें बदल रहा हूँ पर नींद का नामो निशान नहीं है। गुस्सा भी किया कि या तो बिल्कुल नहीं लेने देना था या 2 पैग और लेने देता तो शायद ये हालात नहीं होते। और हकीकत में मैं 2 पैग और ले भी लिया होता अगर मेरी बेशकीमती बोटल को ये फोड़ने के लिए नहीं उठा लिया होता। <br />
अंजान होमस्टे लांगजा 2 विलेज में जिस रात ये चलचित्र मेरे दिमाग में चल रहा था उसके किरदार मैं और सोमवीर सिंह थे जो कि दिल्ली पुलिस के बेहद दबंग पुलिस ऑफिसर माने जाते हैं और मेरी इस तरह की यात्राओं के हमेशा हमसफर रहे हैं। ये उनकी मर्जी के ऊपर है कि मुझे किस तरह संबोधित करते हैं। जब वो अच्छे मूड में होते हैं तो सर, थोड़े खड़ूस मूड में बॉस और अगर फोन पर मेरी किसी से चुगली करनी हो तो मेरे से पांच चार साल छोटे होने के बावजूद बापू कहना पसंद करते हैं और मुझे चिढ़ भी सबसे ज्यादा इसी शब्द से है, मेरे छोटे भाई की उम्र का आदमी अगर मुझे बापू कहे घोर कलयुग है ये तो। क्या कर सकता हूँ अगर आप किसी शब्द से चिढ़ते हैं तो दुनिया उसी शब्द का सबसे ज्यादा उपयोग करती है।<br />
आज का दिन बेहद शानदार रहा था। सुबह 8 बजे डेजोर होटल काजा से शानदार नाश्ता करने के बाद हम दोनो लोगों ने Key मोनेस्ट्री होते हुए किब्बर गांव, टशी गंग गांव और Key मोनेस्ट्री के टॉप पॉइंट से फोटोग्राफी करने का निश्चय किया था। होटल डेजोर काजा के बहुत अच्छे होटल्स में शुमार होता है और उसके मालिक करण एक बेहतरीन होस्ट। पहली रात हम लोगो ने करण के साथ खूब मस्ती और ढेर सारी बातें की थी तो करण से दोस्ती हो गयी थी जिसका नतीजा सुबह बेहतरीन नाश्ते के रूप में सामने आया था। आज मंगलवार था और सोमवीर मंगलवार को व्रत रखते हैं फिर भी उनके लिए नाश्ते में काफी कुछ था। नौ बजते बजते हम दोनों ने फॉर्च्यूनर बाहर निकाली और चल पड़े। हमेशा की तरह ड्राइविंग सीट सोमवीर ने संभाल ली थी। पहला डेस्टिनेशन था Key मोनेस्ट्री जिसको कल शाम भी हम चिचेम विलेज जाते हुए छोड़ गए थे। थोड़ी ही देर में हम लोग Key मोनेस्ट्री जाने वाली सड़क पर पहुंच गए लेकिन एक बार फिर कल शाम की तरह यह तय किया कि लौटते हुए देखेंगे हम लोग आगे बढ़ गए। बेहतरीन लैंडस्केप बिखरे पड़े थे। कुछ आगे जाकर टशी गंग गांव जाने वाली सड़क पर गाड़ी डाल दी। यहां से आगे ढेर सारे शार्ट कट्स बने हुए हैं जिन पर कम से कम फॉर्च्यूनर को दौड़ लगाने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। रास्ता क्या था कच्ची उबड़ खाबड़ सड़क थी जिसका एक छोर तो हमने पकड़ा हुआ था और दूसरा अनंत की और जा रहा था। थोड़ा आगे जाने पर हमने गाड़ी Key मोनेस्ट्री के टॉप व्यू पॉइंट के लिए गाड़ी बिना सड़क के ही मोड़ दी जिसके बारे में आज सुबह ही करण से पता चला था। गाड़ी पहाड़ों के आखिरी छोर पर खड़ी करके हम दोनों पैदल ही आगे बढ़े। बेहद तेज हवा थी कान दर्द करने लगे थे। थोड़ा सा आगे बढ़ते ही पहाड़ खत्म हो गया और हमारे सामने मंत्र मुग्ध करने वाला नजारा था। लगभग हजार फीट गहरी घाटी के सबसे ऊंचे हिस्से पर हम खड़े थे। नीचे Key मोनेस्ट्री साफ दिखाई दे रही थी। सोमवीर को फोटोग्राफी का बहुत शौक है उसने तुरंत पोज बनाने शुरू कर दिए। मुझे फोटो खिंचवाने का उतना शौक तो नहीं है बस सोमवीर के फोटो खिंचवाने के बाद उससे दो चार ज्यादा फोटो मैं भी खिंचवा लेता हूँ जिससे यादें बनी रहें। ये पल वाकई यादगार था आप एक कदम बढ़ाएं और हजारों फ़ीट नीचे चिरनिद्रा में आराम फरमाएं। यहां पर ढेर सारी फोटोग्राफी के बाद हम लोग टशी गंग गांव के लिए आगे बढ़ चले। <br />
कुछ किलोमीटर के बाद सड़क पर ही बर्फ मिलना शुरू हो गयी थी। कुछ दिन पहले ही यहां भारी बर्फबारी हो कर हटी थी। सामने ढेर सारी बर्फ हो तो हम क्या कोई भी फोटोग्राफी का मोह छोड़ नहीं सकता। आखिर हम लोग घूमने जाते ही क्यों हैं ? अपना नहीं तो कम से कम सोमवीर का तो पक्का पता है कि जब जब उसके पास फेसबुक पर पोस्ट करने के लिए फोटोज का अकाल होने लगता है तब तब उसका फोन आता है कि बॉस छुट्टी बची हुई हैं कहीं चलना है क्या। <br />
पहाड़ अब ऊंचे नीचे उभारों और कहीं समतल भूक्षेत्र में तब्दील हो चुके थे और आप गाड़ी को सड़क जैसी दिखती लीक पर चलाएं या उससे हटकर कोई फर्क महसूस नहीं हो रहा था। सामने ही याक्स का एक बड़ा झुंड दिखाई दिया करीब 50 के आसपास बच्चे और मम्मी पापा याक्स कुदरत निर्मित इन बेहतरीन चारागाहों में मजे कर रहे थे। हम लोग वापसी में इनके साथ फोटो खिंचाने का सोचकर आगे टशी गंग की तरफ बढ़ गए। 4-5 घरों का गांव टशी गैंग पता नहीं गैंग जैसा तो कुछ दिखा नहीं, गैंग तो अपने वेस्टर्न यू पी में होते हैं, पर था बहुत खूबसूरत। सड़क आगे भी जा रही थी हम थोड़ा रुककर आगे बढ़ चले पर जल्दी ही सड़क बेहद खराब हो गयी और न चाहते हुए भी हमें वापिस लौटना पड़ा। रास्ते में याक्स का रेहड़ फिर मिला तो गाड़ी रोक ली। कई बार अगर आदमी आपकीं बात न समझे तो उसे उसकी नियति पर छोड़ देना चाहिए वही सोमवीर के मामले में मैंने किया। लाख मना करने के बावजूद श्रीमान हीरो के माफिक लाल जैकेट डाल कर याक्स की तरफ बढ़े और लाल रंग की वो खूबसूरत जैकेट जो लड़कियों को उनकी और बेहद आकर्षित करती थी एक पापा याक को विकर्षित कर गयी और इनके सड़क से नीचे उतरते ही वो हुंकारते हुए इनकी तरफ दौड़ा। दिल्ली पुलिस के कमांडो न होते तो मुझे उस दिन पक्का अपने डॉक्टर होने का वहीं सबूत देना पड़ता। खैर झेंपा हुआ आदमी कहीं ज्यादा खतरनाक होता है ये उस दिन इन्होंने साबित भी किया। बेसबॉल का बैट निकाल कर निहत्ते पशु को डराने का मुकदमा अगर सरकार चाहे तो चला सकती है विटनेस मैं दूंगा। खैर बेसबॉल का बैट इनके हाथ में देखते ही पापा याक् जितने गुस्से से इनकी तरफ आया था उससे भी ज्यादा तेजी से उल्टे पैर भाग गया, फिर तो इन्होंने बच्चे याक्स से खूब दोस्ती की और फ़ोटो भी खिंचाई। मेरा तो अन्डरस्टुड है कि पैक्ट के मुताबिक इनसे कुछ ज्यादा फोटो मैने भी खिंचाकर इनको कृतार्थ किया। 2 बजने को थे और आज के प्रोग्राम के अनुसार हमें कॉमिक होते हुए लांगजा में विश्राम करना था। विनोद वर्मा भाईसाहब के सौजन्य से अभी तक की यात्रा बिना किसी कठिनाई के निर्विघ्न सम्पन्न हो रही थी। विनोद वर्मा जी से मेरी बात एक इत्तिफाक ही था जिसके बाद मेरी उनके दिल्ली स्थित ऑफिस पर एक शानदार मुलाकात हुई। प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी विनोद वर्मा जी होम स्टेज ऑफ इंडिया के सह संस्थापक हैं। वो एक बेहतरीन ट्रेवल राइटर, फोटोग्राफर हैं और उन्होंने पहाड़ों के बारे में बहुत कुछ लिखा है और कई मैगजीन्स में उनके फोटोज और आर्टिकल पब्लिश होते रहते हैं। मेरे इस पूरे भ्रमण के दौरान होम स्टेज में रात्रि विश्राम का इंतजाम उन्ही के द्वारा किया गया था जो निर्विघ्न चल रहा था और कई मामलों में ये ट्रिप मेरे पिछले सभी अनुभवों से अलग था। ये कम बजट टूर था जिसमें हम इन दुर्गम जगहों पर होटल्स के बजाय होम स्टेय को ज्यादा तरजीह दे रहे थे। <br />
हम लोग एक बार फिर से Key मोनेस्ट्री के सामने से निकल रहे थे और दुर्भाग्यवश मेरी स्पीति की पिछली छह यात्राओं की तरह इस बार फिर यही डिसाइड हुआ कि Key मोनेस्ट्री को फिर कभी देखेंगे, हम दोनों 3 बजे काजा पहुंच गए। <br />
काजा में सिर्फ एक ही पेट्रोल पंप है इस वजह से टूरिस्ट सीजन में अक्सर बेहद भीड़ रहती है पर किस्मत अच्छी थी बिल्कुल खाली मिला और हम लोगों ने मौके का फायदा उठाते हुए टंकी फुल करा लिया अब हम कम से कम अगले दो दिन के लिए निश्चिंत हो गए थे। <br />
काजा समुद्र तल से लगभग 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से कॉमिक जाने के लिए दो रास्ते हैं एक रास्ता अधिक दुर्गम मगर छोटा है जो हिक्किम गांव होते हुए जाता है। <br />
हिक्किम कॉमिक के पास ही स्थित एक अलग गांव है जिसमें विश्व का सबसे ऊंचा डाकघर स्थित है। हमको लांगजा गांव में रुकना था तो निर्णय लिया कि हिक्किम होते हुए जाएंगे व कॉमिक होकर लांगजा निकल जाएंगे। <br />
चार बजे के आसपास हम लोग हिक्किम डाकघर की फोटोग्राफी करते हुए कॉमिक पहुंच गए जहां का वर्णन मैं अपनी एक अलग पोस्ट में कर चुका हूं। <br />
कॉमिक सड़क मार्ग से जुड़ा विश्व का सबसे ऊंचा गांव है जिसके दावे पर लोग अक्सर संदेह करते रहते हैं। समुद्र तल से लगभग 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस गांव में Tangyud Sa-skya-gong-mig गोम्पा स्थित है जिसको विश्व की कुछ सबसे ऊंची मोनेस्ट्री में से माना जाता है। माना जाता है कि इसको चौदहवीं शताब्दी में बनाया गया था। <br />
कभी ये पूरा भूक्षेत्र लहलहाता हुआ समुद्र हुआ करता था जो कालांतर में पहाड़ी रेगिस्तान/पठार में रूपांतरित हो गया। इसके प्रमाण और सामुद्रिक जीवों के जीवाश्म इस क्षेत्र में जगह जगह बिखरे पड़े हैं और अक्सर इस पर शोध चलते रहे हैं। बौद्ध मठ के लामा ने भी हमको कुछ जीवाश्म दिखाए जिसकी फोटो आप लोगो के अवलोकन हेतु संलग्न कर रहा हूँ। <br />
पांच बजने वाले थे हम लोग कॉमिक से अपने अगले पड़ाव लांगजा 2 के लिए चल दिये। लगभग 20 मिनट बाद हम भगवान बुद्ध की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध गांव लांगजा में खड़े थे। <br />
किब्बर की तुलना में लांगजा गांव छोटा है, वहां महज 33-34 घर हैं। <br />
समुद्रतल से इसकी ऊंचाई लगभग 4400 मीटर है। हिक्किम की ऊंचाई भी लगभग लांगजा या किब्बर के ही बराबर है। लांगजा में हजार साल से ज्यादा पुराना लांग (बौद्ध) मंदिर है। इसकी बहुत मान्यता है और स्पीति घाटी के सभी देवताओं का केंद्र माना जाता है।<br />
आधुनिकता से दूर ये गांव हज़ारों साल पहले बसे होंगे। अभी भी यहां के निवासियों की अपनी संस्कृति को बचाए रखने की कोशिशें साफ दिखाई देती हैं। यहां के लोग बेहद सरल, ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ होते हैं। <br />
गाड़ी पार्क करने के उपरांत भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ ढेर सारी फोटो खिंचाई और अपने आज के होम स्टेय "अंजान होम स्टे" की और बढ़ चले। बाद में पता चला कि होम स्टे के मालिक का नाम अंजान है जो कि लांगजा विलेज की स्थानीय समिति के सदस्य भी हैं। यहां लोगो के झगड़े अधिकतर इनके मुखिया व ग्राम समिति के द्वारा ही सुलझा लिए जाते हैं। <br />
अंजान होम स्टे एक स्पीति स्टाइल में बना खूबसूरत मकान था जिसमें लगभग 3 कमरे होम स्टेय की तरह इस्तेमाल किये जा रहे थे। उस दिन किस्मत से कोई बुकिंग नहीं थी तो हम लोगो ने अलग सोने के विचार से ट्रिपल बैड रूम को चयन किया। बदकिस्मती से कुछ दिन पूर्व हुए भारी हिमपात की वजह से काजा से ऊपर के अधिकतर गांवों में सभी टॉयलेट फ्रीज हो चुके थे और इनके पास एकमात्र ऑप्शन स्पीतियन ड्राई पिट्स टॉयलेट उपलब्ध थे। मजबूरी थी थोड़ी न नुकर के बाद कोई चारा न देखते हुए हां कर दी और सामान लगा दिया गया। दिन लगभग छिप चुका था। छाती को चीरने वाली ठंड शुरू हो चुकी थी उसी के साथ अब तक सबसे ऊंचाई पर बिताए जाने वाली रात की भी शुरुवात हो चुकी थी। <br />
वैसे तो मैं 7-8 बार लेह लद्दाख गया हूँ और 5-6 बार इससे पहले भी स्पीति आ चुका था पर संभवतः 4400 मीटर की ऊंचाई पर रात बिताने का पहला अनुभव था। ऊंचाई को थोड़े वक्त में गाड़ी में बैठकर पार करना और ऊंचाई पर वक्त बिताना या ट्रेकिंग एकदम अलग है। मुझे अभी भी याद है कि 2016 में लेह ट्रिप के दौरान हम लोगो ने खारदुंगला पास पर लगभग 2 घंटे मस्ती की थी वो भी शर्ट उतार कर। इसके अलावा दयारा बुग्याल पर भी रात्रि विश्राम कर चुका था, बेदिनी बुग्याल भी रात्रि विश्राम किया था परंतु बुग्याल ऑक्सीजन क्राइसिस एरिया नहीं होते हैं तो ज्यादा दिक्कत नहीं आती। स्पीति और लेह ऑक्सीजन डेफिसेन्ट एरिया हैं जहां आप अगर उचित अनुकूलन के बिना जाते हैं तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। खैर चिंता की कोई बात नहीं थी क्योंकि डाईमोक्स टेबलेट अपने पास उपलब्ध थी। सौभाग्य से अभी तक की किसी भी यात्रा में इसको खाने की नौबत नहीं आयी थी हां देने की नौबत कई बार आयी थी। <br />
बॉस आज आपने बिल्कुल नहीं पीने का वायदा किया था सोमवीर ने कहा<br />
यार एक पैग तो लेने दे। तुझे तो पता है सिर्फ टूर पर ही थोड़ा बहुत लेता हूँ<br />
नहीं आज नहीं<br />
प्लीज सिर्फ एक <br />
अच्छा ठीक है सिर्फ एक ले लो अगर दूसरा लिया तो ये जो आपने 8000-8000 कर रखा है न ये 8000 की बोतल फोड़ दूंगा<br />
अंधा क्या चाहे 2 आंखे<br />
60 ml का एक पटियाला पैग बनाया और पहुंच गए अंजान भाई के भित्ति ग्रह में जहां अंगीठी से पूरा कमरा गर्म हो रखा था। खाना सादा परंतु बेहद नफासत से बनाया व सर्व किया गया था। छोटी छोटी चीजो का ध्यान रखा जा तरह था। कई तरह के अचार, मक्खन और टेस्टी खाना। शायद उन लोगो को हमारी खुराक का अंदाजा नहीं था। खाने में एक रोटी खाने वाले लोगो के लिए उन्होंने ढेर सारा खाना तैयार किया था इतना तो हम चार दिन न खा पाएंगे हंसते हुए मैंने कहा।<br />
अंजान जो हमारा मेजबान था बोला सरजी ऐसे तो यहां ज्यादा दिन जिंदा न रह पाओगे। <br />
खाना खाने के बाद हम लोग अपने कमरे में लौट आये और सोचकर कि आज जल्दी सोते हैं और कल जल्दी निकलेंगे आखिर कल यहां से सांगला तक की दूरी जो तय करनी थी, हम लोग जल्दी अपने बिस्तरों में घुस गए। 4 घंटे की कुलमुलाहट और नींद न आने का घटनाक्रम आप पढ़ ही चुके हैं। सोमवीर को जगा हुआ पाकर जितना सुकून मुझे मिला शब्दों में नहीं लिख सकता। वाकई अजीब स्थिति थी। नाक बंद थी और दोनो के सिर में दर्द था। मुंह ढकें तो सांस नहीं आ रही थी और मुंह बाहर निकालें तो ठंड से जम जा रहे थे। दोनो ने बात करना शुरू कर दिया। <br />
सर् सुना है हिमालय की कंदराओं में ऐसे ऐसे तांत्रिक और अघोरी बाबा हैं जो तंत्र क्रियाएं करते रहते हैं सोमवीर ने कहा।<br />
सब बकवास है तंत्र मंत्र कुछ नहीं होता मैंने कहा।<br />
<br />
मैंने तो यह भी सुना है कि इन रहस्यमयी पहाड़ो में आत्माएं विचरण करती हैं।<br />
<br />
सुन कम ऑक्सीजन की वजह से तेरा दिमाग खराब हो गया है भाई। <br />
एक काम कर दो चार भूतनियाँ मेरे कमरे में भेज दे और तू बराबर वाले कमरे में जा वो भी खुला हुआ है मैंने हंसते हुए उसको लाइट करने के लिए कहा।<br />
बॉस अगला टूर दक्षिणी भारत का बनाओं पहाड़ों के तो चप्पा चप्पा छान मारा है हमने।<br />
चुप अभी अगले साल एवरेस्ट बेस कैंप चलना है मैंने कहा उसके बाद दक्षिणी भारत चलेंगे।<br />
मैं तो नहीं जाऊंगा। अब तो मैं पहले अगले साल गोआ जाऊंगा। <br />
ठीक है जा मैं किसी और को गोद ले लूंगा जा तेरे बापू की पदवी से त्यागपत्र देता हूँ।<br />
अच्छा चलो बाद में सोचेंगे उसने डरकर कहा।<br />
नहीं अभी फाइनल कर, रात के 2 बजे अगला प्रोग्राम कहते कहते मेरी आँखें बोझिल हो चली थी<br />
उधर से भी कोई जवाब नहीं आया। <br />
देखा कोई मुझे हिला रहा था। चौंककर उठा तो सोमवीर बोला <br />
बॉस ड्राई पिट में नहीं होगा मैंने आजतक बिना पानी के नहीं किया।<br />
अबे सुबह हो गयी क्या मैंने आंखे मलते हुए पूछा। <br />
जी बॉस 7 बजने वाले हैं 8 बजे निकलना है।<br />
और मेजबान भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे अभी। बॉस मैं ऐसा करता हूँ गाड़ी में पानी की बोतलें पड़ी हैं न वही इस्तेमाल कर लेता हूँ। <br />
रास्ता दिखा दिया था छोरे ने 😂😂😂<br />
थोड़ी देर बाद पत्थर बनी हुई दो बोतलें लेकर भाईसाहब लौटे।<br />
बोतलें जमी हुई थी और हमारी उम्मीदें भी।<br />
😂😂😂😂<br />
#स्पीति_माइनस_18_डिग्री_सेंटीग्रेड_की_वो_रात_पार्ट_5<br />
24/10/2018<br />
#Spiti_Diaries<br />
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अंजान होम स्टे एक स्पीति स्टाइल में बना खूबसूरत मकान था जिसमें लगभग 3 कमरे होम स्टेय की तरह इस्तेमाल किये जा रहे थे। उस दिन किस्मत से कोई बुकिंग नहीं थी तो हम लोगो ने अलग सोने के विचार से ट्रिपल बैड रूम को चयन किया। बदकिस्मती से कुछ दिन पूर्व हुए भारी हिमपात की वजह से काजा से ऊपर के अधिकतर गांवों में सभी टॉयलेट फ्रीज हो चुके थे और इनके पास एकमात्र ऑप्शन स्पीतियन ड्राई पिट्स टॉयलेट उपलब्ध थे। मजबूरी थी थोड़ी न नुकर के बाद कोई चारा न देखते हुए हां कर दी और सामान लगा दिया गया। दिन लगभग छिप चुका था। छाती को चीरने वाली ठंड शुरू हो चुकी थी उसी के साथ अब तक सबसे ऊंचाई पर बिताए जाने वाली रात की भी शुरुवात हो चुकी थी। <br />
वैसे तो मैं 7-8 बार लेह लद्दाख गया हूँ और 5-6 बार इससे पहले भी स्पीति आ चुका था पर संभवतः 4400 मीटर की ऊंचाई पर रात बिताने का पहला अनुभव था। ऊंचाई को पार करना और ऊंचाई पर वक्त बिताना या चलना एकदम अलग है। मुझे अभी भी याद है कि 2016 में लेह ट्रिप के दौरान हम लोगो ने खारदुंगला पास पर लगभग 2 घंटे मस्ती की थी। इसके अलावा दयारा बुग्याल पर भी रात्रि विश्राम कर चुका था, बेदिनी बुग्याल भी रात्रि विश्राम किया था परंतु ये सब जगह ऑक्सीजन क्राइसिस एरिया नहीं हैं तो ज्यादा दिक्कत नहीं आती। स्पीति और लेह ऑक्सीजन डेफिसेन्ट एरिया हैं जहां आप अगर उचित अनुकूलन के बिना जाते हैं तो गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। खैर चिंता की कोई बात नहीं थी क्योंकि डाईमोक्स टेबलेट अपने पास उपलब्ध थी। सौभाग्य से अभी तक की किसी भी यात्रा में इसको खाने की नौबत नहीं आयी थी हां देने की नौबत कई बार आयी थी। <br />
<br />
बॉस आज आपने बिल्कुल नहीं पीने का वायदा किया था सोमवीर बोला<br />
<br />
यार एक पैग तो लेने दे। तुझे तो पता है सिर्फ टूर पर ही थोड़ा बहुत लेता हूँ<br />
<br />
नहीं आज नहीं<br />
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प्लीज सिर्फ एक <br />
<br />
अच्छा ठीक है सिर्फ एक ले लो अगर दूसरा लिया तो बोतल फोड़ दूंगा<br />
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अंधा क्या चाहे 2 आंखे<br />
60 ml का एक पटियाला पैग बनाया और पहुंच गए अंजान भाई के भित्ति ग्रह में जहां अंगीठी से पूरा कमरा गर्म हो रखा था। <br />
खाना सादा परंतु बेहद नफासत से बनाया व सर्व किया गया था। छोटी छोटी चीजो का ध्यान रखा जा तरह था। कई तरह के अचार, मक्खन और टेस्टी खाना। शायद उन लोगो को हमारी खुराक का अंदाजा नहीं था। <br />
खाने में एक रोटी खाने वाले लोगो के लिए उन्होंने ढेर सारा खाना तैयार किया था इतना तो हम चार दिन न खा पाएंगे हंसते हुए मैंने कहा।<br />
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अंजान बोला सरजी ऐसे तो यहां ज्यादा दिन जिंदा न रह पाओगे। <br />
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खाना खाने के बाद हम लोग अपने कमरे में लौट आये और सोचकर कि आज जल्दी सोते हैं और कल जल्दी निकलेंगे आखिर कल यहां से सांगला तक की दूरी जो तय करनी थी, हम लोग जल्दी अपने बिस्तरों में घुस गए। <br />
4 घंटे की कुलमुलाहट के बाद का घटनाक्रम आप पहले ही पढ़ चुके हैं।<br />
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सोमवीर को जगा हुआ पाकर जितना सुकून मुझे मिला शब्दों में नहीं लिख सकता। वाकई अजीब स्थिति थी। नाक बंद थी और दोनो के सिर में दर्द था। मुंह ढकें तो सांस नहीं आ रही थी और मुंह बाहर निकालें तो ठंड से जम जा रहे थे। दोनो ने बात करना शुरू कर दिया। <br />
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सर् सुना है हिमालय की कंदराओं में ऐसे ऐसे तांत्रिक और अघोरी बाबा हैं जो तंत्र क्रियाएं करते रहते हैं। सोमवीर बोला <br />
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सब बकवास है तंत्र मंत्र कुछ नहीं होता मैंने कहा।<br />
मैंने तो बॉस यह भी सुना है कि इन रहस्यमयी पहाड़ो में आत्माएं विचरण करती हैं<br />
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कम ऑक्सीजन की वजह से तेरा दिमाग खराब हो गया है भाई। <br />
एक काम कर दो चार भूतनियाँ मेरे कमरे में भेज दे और तू बराबर वाले कमरे में जा वो भी खुला हुआ है मैंने हंसते हुए उसको लाइट करने के लिए कहा।<br />
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बॉस अगला टूर दक्षिणी भारत का बनाओं पहाड़ों का तो चप्पा चप्पा छान मारा है हमने।<br />
चुप अभी अगले साल एवरेस्ट बेस कैंप चलना है मैंने कहा उसके बाद दक्षिणी भारत चलेंगे।<br />
मैं तो नहीं जाऊंगा। अब तो मैं पहले अगले साल गोआ जाऊंगा। <br />
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ठीक है जा मैं किसी और को गोद ले लूंगा जा तेरे बापू की पदवी से त्यागपत्र देता हूँ।<br />
अच्छा चलो बाद में सोचेंगे उसने डरकर कहा।<br />
नहीं अभी फाइनल कर, रात के 2 बजे अगला प्रोग्राम कहते कहते मेरी आँखें बोझिल हो चली थी<br />
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उधर से भी कोई जवाब नहीं आया। <br />
देखा कोई मुझे हिला रहा था। चौंककर उठा तो सोमवीर बोला <br />
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बॉस ड्राई पिट में नहीं होगा मैंने आजतक बिना पानी के नहीं किया।<br />
अबे सुबह हो गयी क्या मैंने आंखे मलते हुए पूछा। <br />
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जी बॉस 7 बजने वाले हैं 8 बजे निकलना है।<br />
और मेजबान भी कहीं दिखाई नहीं दे रहे अभी। बॉस मैं ऐसा करता हूँ गाड़ी में पानी की बोतलें पड़ी हैं न वही इस्तेमाल कर लेता हूँ। <br />
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रास्ता दिखा दिया था छोरे ने 😂😂😂<br />
थोड़ी देर बाद पत्थर बनी हुई दो बोतलें लेकर भाईसाहब लौटे।<br />
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बोतलें जमी हुई थी और हमारी उम्मीदें भी।<br />
😂😂😂😂<br />
सर बाथरूम में गर्म पानी रख दिया है थोड़ी देर बाद बाहर से अंजान की आवाज आई थी।<br />
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<!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/share/clipdata_181206_123436_855.sdoc--><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/share/clipdata_181206_122651_287.sdoc--></div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-31743810597953435722018-11-24T02:19:00.000-08:002018-11-24T02:19:06.484-08:00कॉमिक विलेज स्पीति<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_9sygufSRWXmOfBcZeNIOnkU4i26hwQ4pggLhbJdI-OgzA2GuSIRlRy5-gWBgAuef8xekyfYEbCydWldfZguNd07fW4ZvtQHGcpTtHO7DJMNZCAa0rTbhnntv3TtGSeYeC0FW7H65EJc7/s1600/20181124_151830.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1076" data-original-width="1080" height="318" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_9sygufSRWXmOfBcZeNIOnkU4i26hwQ4pggLhbJdI-OgzA2GuSIRlRy5-gWBgAuef8xekyfYEbCydWldfZguNd07fW4ZvtQHGcpTtHO7DJMNZCAa0rTbhnntv3TtGSeYeC0FW7H65EJc7/s320/20181124_151830.jpg" width="320" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXMHlThBbB21rq9Hh1MA2TL1wFB_84WiPRnNPpWPqVNNVmOLi32FMIed1d7jFHQ0klSJvZCXKZEI8v1gQ2Sw73hjm1ET3vTgnY8KWlNzo8l4okuC-Yyrgd_tOCfnuq2Vb0vA5QakA5Wx-u/s1600/20181124_151908.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXMHlThBbB21rq9Hh1MA2TL1wFB_84WiPRnNPpWPqVNNVmOLi32FMIed1d7jFHQ0klSJvZCXKZEI8v1gQ2Sw73hjm1ET3vTgnY8KWlNzo8l4okuC-Yyrgd_tOCfnuq2Vb0vA5QakA5Wx-u/s320/20181124_151908.jpg" width="320" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYCMGo6hpr9toZlRQgaYfXUt2tnSKe7qpmdUHR-Bd3ydqbbOu31O9K9OkOlpzZwiVnQSzdJ_xRHm_mdjyW29xKCXcy9c-pbmImlSyUBd1BmTiFIwS63-pUgsP64UJ8AMD-kwaUPB9ztIwK/s1600/20181124_151924.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1071" data-original-width="1080" height="317" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYCMGo6hpr9toZlRQgaYfXUt2tnSKe7qpmdUHR-Bd3ydqbbOu31O9K9OkOlpzZwiVnQSzdJ_xRHm_mdjyW29xKCXcy9c-pbmImlSyUBd1BmTiFIwS63-pUgsP64UJ8AMD-kwaUPB9ztIwK/s320/20181124_151924.jpg" width="320" /></a></div>
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikZWj8mmawXzPFc16CC-vHhPNZZSaBDI8Pv2seZXAIKp2EIzEuXA3gnuhUhTGF4YDMrsxtUfYPTrLhr77QhcrJr8CHBPLS716KOO3guV3Iz2yBE0zIvOG3x2sM3UUAH8D_5wMqraVQWa92/s1600/20181124_151943.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1066" data-original-width="1080" height="315" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikZWj8mmawXzPFc16CC-vHhPNZZSaBDI8Pv2seZXAIKp2EIzEuXA3gnuhUhTGF4YDMrsxtUfYPTrLhr77QhcrJr8CHBPLS716KOO3guV3Iz2yBE0zIvOG3x2sM3UUAH8D_5wMqraVQWa92/s320/20181124_151943.jpg" width="320" /></a></div>
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<b>#<span style="background-color: #e69138;">कॉमिक_गांव। </span></b></div>
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<b style="background-color: #e69138;">स्पीति भूक्षेत्र और संभवतः विश्व का सबसे ऊंचा गांव जो सड़क मार्ग से जुड़ा है और मोटरेबल है। लगभग 4700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस गांव की आखिरी जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या सिर्फ 114 थी। प्रकर्ति ने इस पूरे भूभाग को बेहतरीन लैंडस्केप्स से नवाजा है। चारों तरफ श्वेत धवल चोटियों से सुसज्जित पहाड़ किसी कैनवास पर सजी पेंटिंग की तरह दिखते हैं। जिधर भी आपकीं नजर जाएगी उधर ही प्रकृति निर्मित अलग नजारा देखकर आल्हादित हो जाएंगे। यह बारह महीने सड़क मार्ग से जुड़ा है सिर्फ भारी बर्फबारी की वजह से कभी कभी इसका संपर्क जिला मुख्यालय, जो कि लगभग 30 किलोमीटर दूर काजा में स्थित है, से कट जाता है। यहां पर एक प्रसिद्ध बौद्ध मठ भी स्थित है जिसमें सामुद्रिक जीवन के कई जीवाश्म उपलभ्ध हैं जो इस बात की तस्दीक करते हैं कि लाखों वर्ष पूर्व कभी इस जगह पर समुद्र विद्यमान था जो कालांतर में इन ऊंचे ऊंचे पहाड़ों में तब्दील हो गया। यहां पर रात का तापमान अधिकतर निगेटिव संख्या में ही रहता है जो कि सर्दियों में माइनस 30 या माइनस 40 तक चला जाता है। इस गांव के बेहद निकट स्थित गांव लांगजा की वो रात आज भी मेरे जेहन में ताजा है जब रात का तापमान माइनस 18 डिग्री सेंटीग्रेड था। यहां के लोग बेहद मेहनती जनजातीय लोग हैं। ये लोग सर्दियों के कठिन वक्त के लिए अपने खाने पीने की सभी सामग्री का भंडार गर्मियां खत्म होने से पहले ही कर लेते हैं। आपको यहां हर घर में लकड़ी की अंगीठी( बुखारी) जो कि ऊपर जाकर एक चिमनी से कनेक्टेड होती है जरूर मिलेगी जिससे इनका पूरा घर गर्म और आरामदायक रहता है। यहां पहुंचने के लिए पहले आपको जिला मुख्यालय काजा पहुंचना होता है। काजा बारह महीने सड़क मार्ग से जुड़ा है जहां शिमला, रामपुर पूह नाको और टाबो होते हुए पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा गर्मियों में मनाली होते हुए कुंजम पास को पार करके भी काजा जाया जा सकता है। मनाली से कुंजम पास तक का रास्ता बेहद दुर्गम मगर बेहद खूबसूरत है। यहां वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होने कारण शुरू में कुछ दिक्कत आ सकती है। जाने से पूर्व जरूरी दवाईयां व डाईमोक्स टेबलेट रखना न भूलें।</b></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-76297094191936811982018-11-18T00:45:00.001-08:002018-11-20T23:07:52.592-08:00चितकुल सांगला यात्रा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibVWfiJWP_Rwt9D8s0PMCFx_PpLws2gk3G5xIlbrDKF9i8jl9jbFSZFLeNTfW85VibZ9ftoWHy3ThcCO8NDgBDx6hX074m8xOYC8USzYYvu7aC3hVT42euPPXof_rhmwdrCOCHlRmqJwkX/s1600/IMG_20181118_110321_877.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibVWfiJWP_Rwt9D8s0PMCFx_PpLws2gk3G5xIlbrDKF9i8jl9jbFSZFLeNTfW85VibZ9ftoWHy3ThcCO8NDgBDx6hX074m8xOYC8USzYYvu7aC3hVT42euPPXof_rhmwdrCOCHlRmqJwkX/s640/IMG_20181118_110321_877.jpg"> </a> </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCyxFj4zkyjCy2g8-4Ed6Lhf-KAk2xTm5cr9w-GcbXIPc5-ghPFnOLfYDu55fhJPysazP-B1tLKJe3KM2hSw2wH1l0lWBeA3JxEdsO9cXGJOLAFKFm2aUlSXDLV45wfZX2eHsdFKf5hHeQ/s1600/IMG_20181118_110247_434.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgCyxFj4zkyjCy2g8-4Ed6Lhf-KAk2xTm5cr9w-GcbXIPc5-ghPFnOLfYDu55fhJPysazP-B1tLKJe3KM2hSw2wH1l0lWBeA3JxEdsO9cXGJOLAFKFm2aUlSXDLV45wfZX2eHsdFKf5hHeQ/s640/IMG_20181118_110247_434.jpg"> </a> </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGvNmWsf36QDBpmoe-zBYaCqLt6lmHpNN3d8xhBt6C76_5u7PBbgJVGwRes-39pJUV8Vbs_-AgdFcMO2NAoTK2tU29XF5Q2TjoVTEwk7OB3D810phCxG2Sv-TeVxK5PzMK9fcRpnEcHNCe/s1600/IMG_20181118_110437_010.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhGvNmWsf36QDBpmoe-zBYaCqLt6lmHpNN3d8xhBt6C76_5u7PBbgJVGwRes-39pJUV8Vbs_-AgdFcMO2NAoTK2tU29XF5Q2TjoVTEwk7OB3D810phCxG2Sv-TeVxK5PzMK9fcRpnEcHNCe/s640/IMG_20181118_110437_010.jpg"> </a> </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKrUQej2XckFblgo9e4ZkkFfR1sPfM1POEC4olBZDXz6Yv4UicaVAG_q5aUkgRHmHIePKztmTs1j3lX6B-0f9cpcPWiMJX-LMszR0dNZsmxRINiSdfcvQb5fN_mgkxWVGpjg3CiC0iVY1b/s1600/IMG_20181118_110510_801.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiKrUQej2XckFblgo9e4ZkkFfR1sPfM1POEC4olBZDXz6Yv4UicaVAG_q5aUkgRHmHIePKztmTs1j3lX6B-0f9cpcPWiMJX-LMszR0dNZsmxRINiSdfcvQb5fN_mgkxWVGpjg3CiC0iVY1b/s640/IMG_20181118_110510_801.jpg"> </a> </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUgHZbXgJ104FrFZPmUKjSHVKoOt9oA-jjP2OuNdxrYvxNpNCcQ2Zubo8ug2wLKN-CNGdWC1QtVRXPFVBurL1xXd-cK_niY68CkGzRFb80rveVlp3tStEN4TbqIrLiQ0rogMECKKE46IY_/s1600/IMG_20181118_110559_049.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUgHZbXgJ104FrFZPmUKjSHVKoOt9oA-jjP2OuNdxrYvxNpNCcQ2Zubo8ug2wLKN-CNGdWC1QtVRXPFVBurL1xXd-cK_niY68CkGzRFb80rveVlp3tStEN4TbqIrLiQ0rogMECKKE46IY_/s640/IMG_20181118_110559_049.jpg"></a><u style="color: rgb(0, 0, 238);"> अपनी 10 दिन के भ्रमण के अंतिम पड़ाव के रूप में हम 26 अक्टूबर 2018 को बास्पा घाटी में स्थित भारत तिब्बत सीमा से निकटता में अंतिम गांव चितकुल पहुंचे। चितकुल किन्नौर जिले का एक बेहद खूबसूरत जनजातीय गांव है जो बासपा नदी के तट पर सांगला से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है और बास्पा घाटी का सबसे ऊँचाई पर स्थित गांव है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 3450 मीटर है। यह भारत - तिब्बत सीमा से निकटता में स्थित आखिरी बसे गांव के रूप में भी जाना जाता है। कैसे पहुंचे- राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 22 पर करछम पहुंच कर दाहिने की और बास्पा घाटी जाने वाली सड़क पर सांगला व रकचम होते हुए चितकुल पहुंचा जा सकता है। करछम तक सड़क मार्ग बहुत अच्छा बना है पर वहां के बाद मार्ग दुर्गम है और अक्सर भूस्खलन होते रहते हैं। सड़क मार्ग से शिमला से चितकुल की दूरी लगभग 250 किलोमीटर और दिल्ली से 490 किलोमीटर है। वैसे तो प्रकर्ति ने इस पूरे क्षेत्र को ही बेपनाह खूबसूरती से नवाजा है चारों और ऊंचे सफेद वस्त्र पहने पहाड़, नीचे कर्णप्रिय संगीत सुनाती बलखाती बास्पा नदी, देवदार के हरे भरे वन, सेव से लदे बागीचे हर चीज दर्शनीय है। अन्य प्रमुख आकर्षण में से एक बास्पा नदी के दाहिने तट पर स्थित इस ग्राम में स्थानीय देवी माथी का मंदिर बना हुआ हैं जो गांव के मूल निवासियों द्वारा माता देवी के रूप में भी जाना जाता है और हिंदू देवी गंगोत्री को समर्पित है, यह मंदिर पर्यटकों और मूल निवासियों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इसके अलावा इसी मार्ग पर चितकुल से पहले पड़ने वाला रकचम अपनी प्राकर्तिक सुन्दरता और अनगिनत पानी की धाराओं की वजह से देश भर में प्रसिद्ध है। कहाँ ठहरें- पर्यटन उद्योग के विकास के साथ ही अब चितकुल और पास ही स्थित रकचम व सांगला में ठहरने के लिए पर्यटकों के पास ढेरों ऑप्शंस हैं। ढेर सारे होटल्स, लॉज, गेस्ट हाउस के अलावा होम स्टे में रुकना भी एक अलग ही अनुभव है। मैं अपनी इस यात्रा में 1 रात सांगला में होम स्टे में रुका और दूसरी रात रकचम स्थित ITBP कैम्प में ऑफिसर्स मैस में रुकने का मौका मिला। इनके अलावा कई कैम्पिंग साइट्स भी रुकने का एक अनुभव देती हैं। इस दुर्गम इलाके में आप अपना रुकने का इंतजाम पहले से ही कर लें तो ज्यादा उचित रहता है। चितकुल में हिमाचल टूरिज्म व PWD का गेस्ट हाउस भी है। सर्दियों के दौरान, इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है और इसके कारण इस क्षेत्र में रहने वाले लोग निचले हिमाचल के क्षेत्र में जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यहां दिन का तापमान अधिक और रात्रि तापमान बेहद कम रहता है इसलिए जब भी आएं भारी वूलन कपड़े जरूर साथ लाएं। सर्दियों में यहां पानी जमने लगता है जिस वजह से सर्दियों में मूल निवासी शौच वगेरह के लिए ड्राई पिट शौचालयों का उपयोग करते हैं। चितकुल गांव से ट्रेकर्स चितकुल पास व गंगोत्री के लिए ट्रेकिंग का आरंभ करते हैं। यह ट्रेकिंग कठिन ट्रेकिंग यात्राओं में शुमार होती है। इस दुर्गम पहाड़ी इलाके में एटीएम आपको मुश्किल से ही दिखाई देता है। निकटतम पेट्रोल पंप पोवारी लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित है। सांगला व चितकुल में पेट्रोल पंप की सुविधा नहीं है। संचार सुविधाएं उपलब्ध हैं और रक्चम तक BSNL व जियो का नेटवर्क अच्छा कार्य करता है</u></div>Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-56913355250865757272016-02-29T06:37:00.000-08:002016-03-02T05:44:37.311-08:0016-ग्राम समिति की अवधारणा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">जहाँ तक सफाई व्यवस्था का प्रबंध था समिति की देख रेख में गांव के बाहर पड़ी बंजर भूमि में कम्पोस्ट खाद तैयार करने के लिए सेंकडों गड्ढे बनवाए गए। प्रत्येक परिवार को उसकी आवश्यकता के अनुसार गड्ढे बाँट दिए गए। गांव का हर प्रकार का कूड़ा कचरा व् पशुओं का मल मूत्र आदि इन गड्ढो में ही डालना अनिवार्य किया गया। इस कार्यक्रम की सफलता से दोहरे उद्देश्य की प्राप्ति होने वाली थी। एक तरफ गांव में साफ़ सफाई की स्थायी व्यवस्था हुयी दूसरी और तैयार कम्पोस्ट से खेती की उपज बढ़ना तय था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">युवक ताराचंद के निस्वार्थ व् ईमानदार प्रयासों से गांव का वातावरण बेहद प्रेरणादायक व् गतिशील हो गया। बाल्मीकि युवक भी इन प्रयासों में अपना योगदान देने को बेहद उत्सुक थे। अनेक बाल्मीकि युवकों ने बिना किसी पारिश्रमिक के गांव की नियमित सफाई करने की अपनी प्रबल इच्छा जताई। इस प्रस्ताव का सभी गांव वालो ने बेहद स्वागत किया। तय हुआ की समिति सफाई के लिए इनमें से तीन युवकों की सेवाएं ले तथा अपने स्थायी कोष से इन युवकों को आवश्यक मानदेय देती रहे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">इन सभी कार्यक्रमों को निरंतर चलाते रहने के लिए गांव समिति के कोष में धन का नियमित प्रवाह बनाये रखना आवश्यक था। इसके लिए गांव के प्रत्येक परिवार को सालाना चंदे के रूप में अपनी जोत के अनुरूप निश्चित धन समिति के कोष में देना था। यह भी तय हुआ की शादी ब्याह व् अन्य उत्सवों के मौके पर सम्बंधित परिवार अपनी इच्छा व् भावना के अनुरूप कुछ न कुछ धन गांव समिति के कोष के लिए देंगे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">गांव घिस्सुखेड़ा में चल रहे इस उत्साही घटनाक्रम की सूचना क्षेत्र के अनेक गांवो में भी पहुँच रही थी। युवा ताराचंद ने स्वयं भी समिति के सदस्यों के साथ समय निकाल कर इन गांव में संपर्क किया। इस प्रकार क्षेत्र के इन गांव में भी इस कार्यक्रम को अपनाने का उत्साह पैदा हो गया। इन गांव में भी इसी तर्ज पर गांव समिति गठित होने लगी। बाद के वर्षों में इस पूरे कार्यक्रम ने बहुत ही सकारात्मक व् उत्साहजनक परिणाम दिए। ऊपर से देखने पर यह पूरा घटनाक्रम बहुत ही छोटा व् सीमित लगता है लेकिन लम्बे परिपेक्ष्य में यह भविष्य में क्रियान्वित व् सफल होने वाले सहकारिता आंदोलन का उस समय के हिसाब से एक बेहतरीन व् अनूठा प्रारंभिक मॉडल था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">युवा ताराचंद को गांव आये हुए १०-१२ दिन हो चुके थे। आज उनको कप्तान माइकल का व्यक्तिगत तार मिला जिसमें कप्तान ने यह आशा व्यक्त की, कि तुम्हारी छुटियाँ बहुत सुखद बीत रही होंगी और यदि कुछ और छुट्टियां बढ़ाना चाहते हो तो तुरंत तार द्वारा सूचित करो। आज ताराचंद जी ने अपने नजदीकी शहर जाने का मन बनाया। सबसे पहले उन्होंने पुलिस कोतवाली पहुँच कर वायरलेस द्वारा कप्तान माइकल का धन्यवाद किया तथा बताया कि और छुट्टियों की आवश्यकता नहीं है और वो समय पर पहुँच रहे हैं। इसके बाद युवा ताराचंद ने अपने कुछ पुराने साथियों से मिलने तथा पुरानी यादें ताजा करने का मन बनाया। इनमें से कुछ आजादी के राष्ट्रिय आंदोलन में सक्रिय भाग ले रहे थे जिनमें केशो दास गुप्ता व् सुमत प्रसाद जैन आदि प्रमुख थे। आजादी के बाद में केशो दास गुप्ता मुजफ्फरनगर से विधायक चुने गए तथा सुमत प्रसाद जैन भारतीय संसद के लिए इस क्षेत्र से संसद सदस्य चुने गए। कुछ और साथी अपना व्यवसाय संभाल रहे थे तथा कुछ नौकरी के सिलसिले में इधर उधर नियुक्त हो चुके थे। </span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-78804051312670594272016-02-26T06:13:00.004-08:002016-02-26T06:50:46.951-08:0015-सामाजिक सुधार 1925-26<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">सन १९२५-२६ के इस दौर में भारत में ब्रिटिश शासन पूरी मजबूती के साथ कायम था। धुरी राष्ट्रों के खिलाफ निर्णायक प्रथम विश्वयुद्ध जीतने के बाद अंग्रेजों का मिजाज वैसे ही चढ़ा हुआ था। इंग्लैंड की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएं पूरे उफान पर थी। इस समय ब्रिटिश शासक वर्ग का मूल उद्देश्य हर प्रकार के हथकंडे अपनाकर भारत में राष्ट्रिय आंदोलन को नाकाम करना तथा अपने शासन को और मजबूत बनाये रखना था। भारत के प्रचुर प्राकर्तिक संसाधनों तथा आसानी से उपलब्ध मानव श्रम का शोषण व् उपयोग करके इंग्लैंड की आर्थिक सत्ता को और भी मजबूत करना था। इंग्लैंड के अनावश्यक ओद्यौगिक उत्पादों को खपाने के लिए भारत मात्र एक सुलभ बाजार था। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नागरिक सुविधाओं के विस्तार तथा जनकल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वन शासन के योजनागत एजेंडा में ही नहीं था। यही कारण था की इस काल में भारत के लगभग ५-६ लाख गांव में स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छ्ता तथा परिवहन की स्थिति बहुत बुरी थी। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">इस समय भारत के ५-६ लाख गांव में आज की तरह गांव पंचायतें नहीं थी और न ही आज की तरह पंचायती राज व्यवस्था का कोई और रूप विद्यमान था। गांव में नागरिक सुविधाओं की स्थापना व् सक्षम संचालन के लिए किसी भी स्तर पर शासन द्वारा नियुक्त कोई अन्य संस्था भी सक्रिय नहीं थी। इस समय गांव में शासन द्वारा नियुक्त एक मुखिया होता था जो गांव का ही कोई बुजुर्ग निवासी होता था। मुखिया का भी गांव के विकास व् नागरिक सुविधाओं से कोई लेना देना नहीं था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">ब्रिटिश शासन में एक गांव का स्टेटस भूराजस्व वसूलने की एक छोटी इकाई मात्र था। यह राजस्व मालगुजारी व् भू-लगान के रूप में अनिवार्य रूप से प्रत्येक गांव से वसूला जाता था। शासन द्वारा यह लगान वसूल करने के लिए तथा उसे जिला कोष में जमा करने के लिए पटवारी व् अमीन की स्थायी नियुक्ति की जाती थी। मुखिया का भी मुख्य काम इस राजस्व वसूली में पटवारी व् अमीन आदि की मदद करना ही था। इस लगान का कोई भी हिस्सा गांव के विकास के लिए खर्च नहीं होता था। ये शायद विश्व इतिहास में पहला विचित्र शासन था जो ग्रामीण जनता से राजस्व तो वसूलता था पर बदले में उनके कल्याण के लिए करता कुछ भी नहीं था। वैसे गांव के मुखिया की सलाह को स्थानीय प्रशासन एक हद तक महत्व देता था, जब तक वह सलाह उनके निहित स्वार्थों को नुक्सान न पहुंचाए। </span><br />
<span style="color: #660000;">इन विषम परिस्थितयों में युवा ताराचंद गांव में मूल नागरिक सुविधाओं के विकास व् उनके रखरखाव के लिए एक स्थायी व्यवस्था चाहते थे। इसके लिए गांव वालों से सलाह मशविरा करके एक ५ उत्साही व्यक्तियों की एक स्थायी समिति बनायीं गयी तथा भविष्य में इसके कार्य निष्पादन हेतु आवश्यक खर्चों के लिए परस्पर चंदे से एक कोष भी स्थापित किया गया। ताराचंद की प्रेरणा से २-३ दिन में ही इस कोष के लिए चंदे के रूप में काफी धन इकठ्ठा हो गया। </span><br />
<span style="color: #660000;"></span><br />
<span style="color: #660000;">गांव के एक विकलांग युवक ने इसी वर्ष क़स्बा चरथावल के मिडल स्कूल से अपनी दृढ इच्छाशक्ति के बल पर मिडल पास किया था। इस युवक ने ताराचंद की प्रेरणा से एक और सहायक को साथ लेकर बहुत थोड़े मानदेय पर गांव में एक प्राइमरी स्कूल चलने की जिम्मेदारी ले ली। ४-५ दिन में ही करीब ५०-६० बच्चों ने प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस स्कूल में नामांकन करा लिया। युवा ताराचंद के लिए यह बहुत ही उत्साह वर्धक स्थिति थी। गांव में बुनियादी शिक्षा की व्यवस्था हो तथा कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे यह उनका वर्षों पुराना सपना था। यह सपना भविष्य में आशा से अधिक फलीभूत व् साकार हुआ। इस छोटे से स्कूल ने बिना किसी सरकारी मदद के बाद के वर्षों में गांव के युवकों को उस शिक्षा तक पहुँचाने व् अपने भविष्य को सफल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी। </span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-86373848574904429542016-02-19T06:11:00.001-08:002016-02-24T06:24:31.763-08:0014-गांव में बिताये कुछ अविस्मरणीय पल <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">अपने गांव के परिवार से कई बार आग्रह होने के कारण इंस्पेक्टर ताराचंद ने कुछ दिन की छुट्टी लेकर गांव जाने का मन बनाया। उनकी खुद की बहुत इच्छा थी कि अब एक अरसे बाद गांव जाकर कुछ दिन अपने परिवार के साथ बिताएं। इंस्पेक्टर ताराचंद ने नियमानुसार छुट्टी के लिए आवेदन किया जिसको कप्तान माइकल ने तुरंत ही स्वीकृत कर दिया। कप्तान माइकल ने वायरलेस पर सन्देश दिया मुझे ख़ुशी है की तुम अपने घर जा रहे हो, इस समय वाकई तुमको कुछ आराम की व् अपने परिवार के साथ समय बिताने की जरुरत है। इंस्पेक्टर ताराचंद ने तार द्वारा गांव में अपने आने की सूचना भिजवा दी और नियत दिन लगभग ११ बजे निकटवर्ती रेलवे स्टेशन रोहना खुर्द पहुँचने की सूचना दी और स्टेशन से गांव पहुँचने के लिए सवारी उपलब्ध कराने के प्रबन्ध करने को कहा। तार मिलते ही पूरे परिवार में ख़ुशी छा गयी। यह खबर थोड़ी देर में ही पूरे गांव में भी फ़ैल गयी। गांव के काफी लोगों ने परिवार से संपर्क करके अपनी ख़ुशी जाहिर की। इस समय गांव में केवल बैलगाड़ी ही आवागमन का प्रमुख साधन थी। गांव के अधिकांश लोगों ने परिवार से आग्रह किया की क्योंकि गांव के बेटे ने इस गांव का ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र का नाम रोशन किया है इसलिए २५ तारीख को काफी लोग स्टेशन पहुँच कर ताराचंद का स्वागत करने जायेंगे। पिता चौधरी वजीर सिंह ने विनम्रता पूर्वक कहा " इतना सब करने की कोई जरुरत नहीं है जब लड़का गांव आ ही रहा है तो आप सबसे मिलना जुलना होगा ही।" चौधरी वजीर सिंह के विनम्र आग्रह के बावजूद काफी उत्साही लोगों ने विशेषकर युवाओं ने उस दिन स्टेशन पर पहुंचकर स्वागत करने का निर्णय किया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">२५ तारीख की सुबह ही लगभग ४० ग्रामवासी परिवार के सदस्यों के साथ ८-१० बैलगाड़ियों में सवार होकर स्टेशन जाने के लिए गांव से चल पड़े। गांव के बाल्मीकि समुदाय के लोग भी इस मौके को कहाँ चूकने वाले थे। गांव के बाहर १५-२० बाल्मीकियों का समूह पहले से ही उपस्थित था। उनमें से दो तीन ने आगे बढ़कर कुछ सकुचाते हुए बड़े भावपूर्ण शब्दों में चौधरी वजीर सिंह से आग्रह किया, बाबाजी यदि आप इजाजत दें तो हम भी अपने तीन चार ढोल लेकर ख़ुशी के इस मौके पर साथ चलें। शादी ब्याह की ख़ुशी के मौके पर तो हम रस्मी तौर पर ढोल बजाते ही हैं लेकिन ऐसे ख़ुशी के मौके भी बार बार कहाँ आते हैं। चौधरी साहब ने बड़े प्यार से उन्हें समझाया की अभी रहने दो, अब तो लड़का गांव में आ ही रहा है तब मिलना भी तथा खूब जी भरकर ख़ुशी प्रकट करना। चौधरी साहब के मना करने पर युवक मन मार कर रह गए। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">गांव घिस्सुखेड़ा से रोहाना कलां स्टेशन की दूरी लगभग १२ किलोमीटर है। इस पूरे कच्चे रस्ते पर तीन प्रमुख गांव पड़ते हैं, पहला गांव सैदपुर जो की ज्यादातर सैयद जमींदारों का है, दूसरा गांव बधाई कलां जिसमें ज्यादातर जाट व् ब्राह्मण कृषक परिवार रहते हैं, तीसरा स्टेशन से कुछ पहले ही गांव बहेड़ी जो बड़ा गांव है जिसमे त्यागी, ब्राह्मण व् अन्य जातियां रहती हैं। ८-१० बैलगाड़ियों का यह काफिला जब इन गांव से गुजरा तो लोगों ने जिज्ञासावश पूछा की क्या मामला है। पूरी बात पता लगने पर इन गांव के भी कुछ उत्साही और अच्छे परिचित व्यक्ति साथ हो लिए। इस प्रकार ५०-६० आदमियों का यह काफिला सुबह १० बजे से कुछ पहले ही स्टेशन पहुँच गया। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">स्टेशन इस समय लगभग सुनसान था तथा गाडी आने में भी काफी देर थी। स्टेशन मास्टर ने स्टेशन पर अचानक इतने लोगों की उपस्थिति व् उत्साह भरा नजारा देखा तो उसने इसका कारण जानना चाहा। पूरी बात पता लगने पर वो भी चहक उठे, उसने बताया की मैं ताराचंद जी से पूर्व में मिल चुका हूँ, मुझे यह भी पता है की उन्होंने पुलिस की नौकरी ज्वाइन कर ली हैं। सौभाग्य से मुझे भी आज आपकी इस ख़ुशी में शामिल होने का मौका मिल रहा है। स्टेशन मास्टर ने तुरंत ही स्टेशन पर उपलब्ध गेंदे के फूलों की कुछ माला बनवायी तथा अपने स्टाफ से कुछ मिठाई का प्रबंध करने को कहा। स्टेशन मास्टर ने स्टाफ को यह भी निर्देश दिया की गाडी के रुकने के समय को ३-४ मिनट के लिए बढ़ा दिया जाये। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">थोड़ी देर के बाद गाडी आने की पूर्व सूचना स्टेशन पर पहुंची। स्टेशन मास्टर ने फिर एक बार स्टाफ को आवश्यक निर्देश दिए। लोगों को एक एक पल का इन्तजार मुश्किल हो रहा था। आखिरकार नियत समय पर गाडी स्टेशन पहुंची और धीरे धीरे रेंगती हुई रुक गयी। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">गाडी रुकते ही ताराचंद डब्बे के दरवाजे पर आ गए। इस २-३ साल के अरसे ने युवा ताराचंद के व्यक्तित्व में बहुत बदलाव ला दिया था। कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी व साहस जैसे गुणों ने युवा ताराचंद के व्यक्तित्व को बहुत ही प्रभावशाली व् आकर्षक बना दिया था। ताराचंद को दरवाजे पर देखकर स्टेशन का माहौल जोश व् ख़ुशी से भर उठा। शुरू में यह स्थिति ताराचंद के लिए बहुत आश्चर्यचकित करने वाली थी लेकिन जल्दी ही वो सहज होकर इस माहौल का हिस्सा बन गए। स्वागत के इस अवसर पर स्टेशन पर उपस्थित सेंकडो लोगो की आँखें ख़ुशी व् गर्व से चमक रही थी। युवा ताराचंद के लिए इन चमकती आँखों में यह भेद करना असंभव था की इनमें कौन अपने परिवार का है तथा कौन अपने परिवार का नहीं है। सबके चेहरों व् आँखों में एक सामान गर्व व् अपनत्व का भाव था। यह अहसास ताराचंद के लिए अद्भुत व् बेहद प्रेरणादायक था। थोड़ी देर तक बधाई स्वीकार करने, बुजुर्गों से आशीर्वाद लेने व् अन्य से गले मिलने मिलाने का भावुक सिलसिला चलता रहा। इसके बाद स्टेशन मास्टर व् स्टाफ ने बड़े आग्रह पूर्वक सभी का मुँह मीठा कराया। ताराचंद ने स्टेशन मास्टर का भी गले मिलकर धन्यवाद किया तथा इजाजत चाही। थोड़ी देर बाद ही ये जोश से भरा काफिला गांव के लिए प्रस्थान कर गया। </span><br />
<span style="color: #660000;">मैंने इंस्पेक्टर ताराचंद के गाँव आगमन व् भावपूर्ण स्वागत का वर्णन कुछ ज्यादा ही विस्तार से किया है। इसके पीछे मेरा उद्देश्य यह इंगित करना भी है की जहाँ समाज में एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों की संकुचित सोच व् देश तथा समाज के प्रति नकारात्मक क्रियाकलाप पूरे समाज में नफरत व् भेदभाव का माहौल पैदा कर देते हैं। दूसरी और मात्र एक व्यक्ति का ही सकारात्मक सोच व् समाज तथा देश के लिए किया गया उद्देश्यपूर्ण कार्य किस प्रकार आपसी भेदभाव व् मनमुटाव को भुला कर व्यक्तियों को प्रेम व् एकता के सूत्र में बाँध देता है। इस सामाजिक सिद्धांत को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने अपने चरित्र व् कार्य से बारबार स्थापित किया है। भारत के ही परिपेक्ष्य में राष्ट्रपिता के चरित्र व् कार्यशैली ने भारत के बेबस, डरे हुए, गुलामी की मानसिकता में जकड़े तथा भ्रमित समाज को एक नैतिक, निडर तथा उद्देश्य के लिए समर्पित समाज में बदल दिया। </span><br />
<span style="color: #660000;"></span><br />
<span style="color: #660000;">जोश से भरा यह काफिला गांव पहुंचा तो गांव से बाहर एक और अद्भुत नजारा था। २०-२५ बाल्मीकि अपने ढोलों के साथ गांव से बाहर पहले से ही उपस्थित थे। काफिले को देखते ही उन्होंने बड़े उत्साह से भंगड़ा अंदाज में थिरकते हुए ढोल बजाना शुरू कर दिया। बैलगाड़ियों से उतर कर अन्य लोगों ने भी उनकी ख़ुशी के इस इजहार में उत्साह के साथ शिरकत की। यह पूरा नजारा बड़ा अद्भुत तथा गांव में अपने प्रकार का पहली बार था। बाद में ताराचंद के बड़े भाई चौधरी कुंदन सिंह ने परंपरा के अनुसार अच्छे खासे इनाम से इन ढोलिओं को नवाज कर विदा क्या। गांव में युवा ताराचंद के शुरू के ३-४ दिन यूँ ही गहमा गहमी व् अन्य लोगों से मिलने मिलाने में निकल गए। इन दिनों में ताराचंद ने अपने बचपन के युवा साथियों के साथ पुरानी यादें साझा की तथा सभी युवा साथी उन सभी स्थानों पर जी भरकर घूमे जहाँ बचपन व् किशोरावस्था में गिल्ली डंडा व् कबड्डी जैसे खेल खेला करते थे। बड़े भाई कुंदन सिंह खुद घुड़सवारी के शौकीन थे तथा परिवार के पास एक बहुत अच्छी नस्ल का घोडा भी था। ताराचंद अपनी पुलिस ट्रैनिंग के दौरान तथा नौकरी के शुरू के दिनों में खूब घुड़सवारी कर चुके थे तथा इस कला में उन्हें महारत हासिल थी। अतः इन दिनों में ताराचंद ने अपने साथियों के घुड़सवारी का भी भरपूर आनंद लिया और साथियों को घुड़सवारी के बहुत से गुर सिखाये। </span><br />
<span style="color: #660000;">बचपन के साथियों के आग्रह पर गांव के परंपरागत खेल कबड्डी के मैच का आयोजन भी रखा गया। स्वयं युवा ताराचंद ने इस आयोजन में उत्साह के साथ भाग लिया। यह आयोजन बहुत ही ज्यादा उत्साहवर्धक रहा। पूरा गांव ही आयोजन स्थल पर उमड़ पड़ा। अपने युवाओं की उमंग, जोश तथा खेल में उनके दांव पेंच देखकर गांव के बुजुर्ग भी उछल उछलकर उनका उत्साहवर्धन करते रहे। बुजुर्गों को लग रहा था जैसे वो भी अपनी जवानी के दिनों में पहुँच गए हों। मैच के बाद मिठाई और फल आदि वितरित किये गए। वास्तव में अपनी इन छुट्टियों का अपने लोगों के साथ भरपूर आनंद लेने तथा इन्हें अधिक से अधिक उपयोगी बनाने की पूरी रूपरेखा ताराचंद ने पहले ही तैयार कर रखी थी। इसी कड़ी में बच्चों के लिए भी खेलकूद व् अंताक्षरी आदि के अनेक कार्यक्रम रखे गए। बच्चों को अनेक छोटे छोटे आकर्षक उपहार देकर उनकी ख़ुशी व् उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया गया। इस अवसर के लिए बालोपयोगी अनेक उपहार ताराचंद स्वयं अपने साथ लाये थे। गांव के बुजुर्ग ताराचंद की प्रशंशा करते उन्हें आशीर्वाद देते थक नहीं रहे थे। वो बार बार कहते थे की ताराचंद के आने से हमारे जीवन की संध्या बेला में भी जैसे बहार आ गयी। गांव का ठहरा हुआ व् एक हद तक नीरस जीवन बेहद उत्साह बी उमंग से भर उठा। </span><br />
<span style="color: #660000;">इस काल में भारत के लाखों गांव की तरह गांव घिस्सुखेडा में भी जीवन के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाओं का पूरी तरह आभाव था। गांव में पानी के निकास तथा स्वच्छ्ता बनाये रखने के लिए कोई स्थायी प्रबंधन नहीं था। बुनयादी शिक्षा की भी कोई व्यवस्था निजी या शाशन स्तर पर नहीं थी। प्राइमरी स्कूल भी गांव से लगभग ५ किलोमीटर दूर क़स्बा चरथावल ही में था। सबसे बड़ी परेशानी यह थी की आमजन इन समस्याओं के प्रति उदासीन था तथा इसके निराकरण के लिए जिस सामुदायिक भावना या पहल की जरुरत थी वो गांव के जनमानस में विकसित ही नहीं हो पायी। गांव का कूड़ा कचरा तथा पशुओं का गोबर आदि जहाँ भी जगह मिलती डाल दिया जाता था। इससे मच्छर मक्खी तथा अन्य हानिकारक जीवाणुओं का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ जाता था तथा वातावरण भी हर समय दूषित रहता था। इस अज्ञानता व् लापरवाही के चलते गांव के लोग विशेषकर बच्चे और औरतें आदि अनेक बीमारियों का शिकार होते रहते थे। बीमारियों के सही समय पर निदान और उनके उपचार की भी कोई सक्षम व्यवस्था नहीं थी। </span><br />
<span style="color: #660000;"></span><br />
<span style="color: #660000;">कई दिन के इस उत्सवपूर्ण माहौल के बाद ताराचंद ने पहले से तय अपने प्रोग्राम के अनुसार छुट्टियों के बाकी बचे सात आठ दिन इन समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयत्न करने का निश्चय किया। </span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-9385531079638457202016-02-18T06:34:00.000-08:002016-02-19T05:44:59.203-08:0013-समसामयिक विवेचना तीसरा दशक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">गांव के जीवन में एक बदलाव साफ़ नजर आने लगा था कि अशिक्षा के कारण जड़ता की स्थिति कुछ कुछ कम हो रही थी। गांव में संचार साधनों का तो पूरी तरह से अभाव था लेकिन राजनीतिक व् सामाजिक चेतना का प्रभाव व् प्रसार किसी न किसी माध्यम से गांव में प्रवेश करने लगा था। कुछ तो अशिक्षा के कारण और कुछ संचार व् आवागमन के साधन न होने के कारण आम ग्रामीण की जानकारी का दायरा बहुत सीमित था। अपने देश और दुनिया के बारे में जानकारी बहुत कम थी आम ग्रामवासी को बस इतना ही जानकारी थी कि भारत का राज्य सात समुन्दर पार बैठे अंग्रेज राजा के हाथ में है तथा दिल्ली में बैठा लाटसाहब भारत में उसके काम को देखता है। ये अज्ञान जहाँ एक तरफ उनकी बहुत बड़ी कमजोरी थी लेकिन दूसरी तरफ उनकी सरलता व् आत्मसंतुष्टि का बहुत बड़ा कारण भी था। जनमानस में परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। जिला मुख्यालय, नजदीक के बड़े कस्बों में भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस व् आर्यसमाज जैसी सामाजिक व् धार्मिक संस्थाओं द्वारा अनेक कार्यक्रम, जलसे सत्संग व् रैलियां आदि प्रायोजित किये जा रहे थे। कुछ ग्रामीण इन कार्यक्रमों में भाग भी लेने लगे थे और कुछ इन संस्थाओं के सक्रिय सदस्य बन गए थे। इन्हीं में से कुछ आगे बढ़कर इन संस्थाओं के साथ जुड़ गए तथा उनका पूरा जीवन उद्देश्य ही बदल गया। इन्होने अपना पूरा जीवन ही देश की आजादी को प्राप्त करने तथा एक नए भविष्य का निर्माण करने के लिए समर्पित कर दिया। इन्हीं सक्रिय लोगों के द्वारा देश में चल रहे राजनीतिक व् सांस्कृतिक घटनाक्रमों की जानकारी दूर देहात में दी जा रही थी तथा इसका व्यापक असर भी हो रहा था।</span></div>
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: left; margin-right: 1em; text-align: left;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjt0UcJb_auaCfqbtN0WwZJtxZo19KXFT31EDCLje5Epbf1KEnvwAGy1wPmIGIQ9ur2E2zC-Qi4weH2mUMKN4GEFy2w7ZP-RB3uzsKKJq-1PYUxLZHXpWoQrM8LnUO4yP72x3oDAckrUyV/s1600/Gandhi_Kheda_1918.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjt0UcJb_auaCfqbtN0WwZJtxZo19KXFT31EDCLje5Epbf1KEnvwAGy1wPmIGIQ9ur2E2zC-Qi4weH2mUMKN4GEFy2w7ZP-RB3uzsKKJq-1PYUxLZHXpWoQrM8LnUO4yP72x3oDAckrUyV/s640/Gandhi_Kheda_1918.jpg" width="401" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">गांधीजी १९१८</td></tr>
</tbody></table>
<div style="text-align: justify;">
<br />
<table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJBWvj9APOci-sglMBpwRQEbGBPRjKBI5pAj4pr7qBGEP6JDbFcE9DSA8c8RA3KLXF4tYGIc4jVj0uk-3K8wcDOYa-q05aZZp6Eyo3V2oickm6RTrweiHJpAND1NZQpS2N-bFklDFP71PZ/s1600/Salt_March.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJBWvj9APOci-sglMBpwRQEbGBPRjKBI5pAj4pr7qBGEP6JDbFcE9DSA8c8RA3KLXF4tYGIc4jVj0uk-3K8wcDOYa-q05aZZp6Eyo3V2oickm6RTrweiHJpAND1NZQpS2N-bFklDFP71PZ/s640/Salt_March.jpg" width="433" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">दांडी यात्रा १९३०</td></tr>
</tbody></table>
<span style="color: #660000;">गांधीजी तत्कालीन भारतीय राजनीति में एक अंधड़ की तरह छा गए थे। उनका उत्थान जनमानस के लिए एक शीतल व् सुखद वायु के झोंके की तरह था। उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व एवं संदेशों ने लोक मानस को बेहद आंदोलित कर दिया था तथा एक नई व् विशिष्ट राजनीतिक चेतना उत्पन्न कर दी थी। जैसे जैसे इस नयी राजनीतिक चेतना का विस्तार सुदूर ग्रामीण अंचलों में फ़ैल रहा था लोगो की सोच का दायरा भी व्यापक होता जा रहा था। लोगों की अन्धविश्वास व् स्वार्थ से ग्रसित जड़ मानसिकता में नयी तरंगे उठ रही थी। आजादी अमूल्य है तथा इसे प्राप्त करने के लिए कोई भी त्याग व् कुरबानी कम है ये भावना निरंतर बढ़ती जा रही थी। साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों की पवित्रता बनाये रखना तथा हर हालत में सत्य का अनुसरण, इसका मर्म लोग समझने लगे थे। गांधीजी का सत्य व् अहिंसा पर आधारित आंदोलन लोगों को व्यवहारिक व् आजादी प्राप्त करने का सर्वोत्तम उपाय लगने लगा था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">लोगों में दमन का डर तथा उससे उत्पन्न बेबसी लगातार कम होने लगी थी। वैसे भी ये शाश्वत सत्य है की जब व्यक्ति सत्य के मार्ग पर अडिग होता है तो किसी भी प्रकार का डर या शंका का स्थान उसके जीवन में नहीं रहता। अब तक आम आदमी के फर्ज का दायरा बेहद सीमित था। केवल धन अर्जन करना व् अपने परिवार का पालन पोषण करना ही आम आदमी का मुख्य उद्देश्य था। लेकिन अब फर्ज के दायरे में राष्ट्र व् समाज के प्रति अपने दायित्व का भी प्रमुख स्थान हो गया। सामाजिक जीवन के इस बदलाव ने, बाद के वर्षों में, संयुक्त प्रान्त के इस अपेक्षाकृत पिछड़े पश्चिमांचल में भी अनेक स्वतंत्रता सेनानी पैदा किये। स्वतंत्रता सेनानियों की इस पौध ने विकसित होकर देश की आजादी के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभायी। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">धार्मिक चेतना एवं धार्मिक विश्वासों में भी इस समय काफी सकारात्मक परिवर्तन हुए। लोगों के धार्मिक आचरण में भय से उत्पन अन्धविश्वास व् कुरीतियों का स्थान निरंतर काम होने लगा। धर्म का वास्तविक स्वरुप क्या है, उसका जीवन में क्या स्थान है इस विषय में लोग और अधिक समझदार व् जागरूक होने लगे। धर्म का वास्तविक उद्देश्य सत्य के प्रति निष्ठा तथा अपने व् समाज के प्रति मानवीय कर्तव्यों का पालन ही है, ये भावना विकसित हुयी। भारतीय सामाजिक जीवन में यह बदलाव बहुत ही सकारात्मक था तथा इसने आगे चलकर आजादी प्राप्त करने तथा नव राष्ट्र निर्माण में बहुत योगदान किया।</span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-78309272398770737042016-02-15T06:35:00.004-08:002016-02-18T06:32:29.644-08:0012- 1925 का वो भारतीय पुलिस पदक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">तय समयानुसार २० मार्च को इलाहबाद पुलिस मुख्यालय पर एक भव्य समारोह में पदक प्रदान किये गए। इस अवसर पर मुख्य अतिथि गवर्नर के साथ साथ पुलिस विभाग के अन्य उच्चाधिकारी, मेयर इलाहबाद तथा अनेक गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे। इस बार संयुक्त प्रान्त पुलिस में केवल चार ही अधिकारीयों को यह सम्मान प्राप्त हुआ था। पुलिस पदक प्राप्त करने वालो में इंस्पेक्टर ताराचंद का पहला ही नंबर था। माइक पर अपने नाम की उद्घोषणा होने के बाद इंस्पेक्टर ताराचंद बहुत ही सधे हुए क़दमों से स्टेज पर पहुंचे। प्रोटोकॉल के अनुसार कप्तान माइकल को ही पदक प्राप्त करने से पहले अधिकारी की उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करना था। कप्तान माइकल ने बड़े उत्साह पूर्वक बताया की संयुक्त प्रान्त के पुलिस विभाग में अब तक भारतीय पुलिस पदक का सम्मान प्राप्त करने वाले इंस्पेक्टर ताराचंद सबसे युवा अधिकारी हैं। वैसे तो पुलिस विभाग में किसी बड़े अपराध के उन्मूलन के लिए किये गए सफल अभियान के पीछे एक पूरी टीम का योगदान होता है लेकिन मैं ये दृढ़ता पूर्वक बताना चाहूंगा कि इंस्पेक्टर ताराचंद के नेतृत्व में अपराध उन्मूलन के जितने भी अभियानों में सफलता मिली है उसमें इस युवा अधिकारी के व्यक्तिगत साहस, कार्यकुशलता तथा ईमानदार प्रयासों की प्रमुख भूमिका है। अपनी पुलिस सेवा के संक्षिप्त कार्यकाल में इस युवा अधिकारी ने जो मिसाल कायम की है वो विभाग के अन्य सभी पुलिस कर्मियों के लिए अनुकरणीय है। संयुक्त प्रान्त के गवर्नर ने कप्तान माइकल की बातों को बड़े ध्यान से सुना तथा संज्ञान लिया। गवर्नर ने प्रोटोकॉल से हटकर पदक प्रदान करने के बाद युवा अधिकारी से गर्मजोशी से हाथ मिलाया तथा कंधे पर हाथ रखकर कहा "बहुत खूब मुझे तुम पर गर्व है, और आगे बढ़ो मेरी शुभकामनायें तुम्हारे साथ हैं। पूरा समारोह बहुत देर तक तालियों से गूंजता रहा। गांव घिस्सुखेड़ा में भी इंस्पेक्टर ताराचंद को यह सम्मान मिलने तथा उनकी उपलब्धियों की खबर पहले ही पहुँच चुकी थी। धीरे धीरे आसपास के गांव में भी खबर फ़ैल गयी। बहुत से लोग परिवार को बधाई देने व् अपनी ख़ुशी का इजहार करने आ रहे थे। गांव के बेटे की इस उपलब्धि पर गांव का प्रत्येक व्यक्ति फूला नहीं समा रहा था। प्रत्येक व्यक्ति आपसी भेदभाव भूलकर खुद को भी गौरवान्वित महसूस कर रहा था। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">इंस्पेक्टर ताराचंद पर भी बहुत दिनों से गांव आने का आग्रह बढ़ता जा रहा था। अपने परिवार वालो व् गांव वालों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए ताराचंद ने उनको तार द्वारा सूचित किया की कुछ आवश्यक कार्य निबटाने के बाद वो शीघ्र ही गांव आएंगे। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">गांव घिस्सुखेड़ा तथा आसपास के सभी गांव की हालत अब भी जस की तस थी। शिक्षा तथा स्वास्थ्य के विषय में अब भी कोई सुधार नहीं हुआ था। गांव के लगभग ९५ प्रतिशत लोग अब भी निरक्षर थे तथा सरकारी दस्तावेजों में हस्ताक्षर के बजाय उनके अंगूठों के निशान ही चलते थे। १०-१५ गांव के समूह में बिमारियों के इलाज व् किसी भी आक्समिक चिकित्सा के लिए पड़ोस के एक नजदीकी व् बड़े गांव कुटेसरा में केवल एक ही खानदानी हकीम साहब उपलब्ध थे। ये खानदान कई पीढ़ियों से हकीमयत कर रहा था। हकीम साहब का पूरा दवाखाना बटुए में उनकी जेब में रहता था। किसी भी बिमारी का निदान हकीम साहब नब्ज पढ़कर तथा पेशाब का रंग देखकर किया करते थे। ज्यादातर मामलों में कुछ ईश्वर की कृपा, मरीज की किस्मत और हकीम साहब की हकीमगिरी की वजह से मरीज को फायदा हो ही जाता था। गांव वालों का हकीम साहब पर अटूट विश्वास था। या यूँ कहें की इलाज का कोई दूसरा विकल्प ही मौजूद नहीं था। वैसे भी </span><span style="color: #660000;">उस समय गांव की फिजा में न तो वायु प्रदुषण था और न ही खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट थी। लोगों की मानसिकता भी सरल तथा दुविधा मुक्त थी। ऐसे में बीमार पड़ने की सम्भावना वैसे ही कम हो जाती है। लोग यदि बीमार पड़ते भी थे तो या तो संक्रामक बीमारियों के कारण अथवा शादी ब्याह में अधिक व् बेमेल खाना खाने के कारण। संतुलित भोजन की पूर्ण जानकारी न होना भी बीमार होने का प्रमुख कारण था।</span><span style="color: #660000;"> </span><span style="color: #660000;">वास्तव में तब गांव का जीवन बहुत ही नैसर्गिक था। कभी कभी आपसी स्वार्थों का टकराव या मूंछों की लड़ाई ही उनके लिए परेशानी का सबब बनती थी। </span><br />
</div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-65056894866892021332016-02-11T06:36:00.002-08:002016-02-12T06:15:09.373-08:0011-चारित्रिक विवेचना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: yellow;"><b style="background-color: white;">विश्व में अंग्रेज कौम विशेषकर इंग्लैंड के सन्दर्भ में बेहद परम्परावादी तथा अपने अतीत के प्रति कुछ अधिक ही मोहग्रस्त है। विश्व के अनेक देशों में अपने सम्राज्य्वादी इतिहास के कारण इस कौम को अपनी श्रेष्ठता का भी अनावश्यक अभिमान रहा है। भारत तथा विश्व के कुछ और देशो में अपने साम्राज्य की स्थापना तथा लम्बे समय तक उसे बनाये रखने के दौरान इस कौम का इतिहास एक शोषक के रूप में रहा है। शोषक के रूप में अपने अतीत के कारण इस कौम का चरित्र कई बुराईयों से ग्रस्त रहा। इसके चरित्र में अच्छाई, बुराई, छल कपट के साथ ही त्याग व् वीरता का भी विचित्र मिश्रण देखने को मिलता है। इसी कारण इस कौम में अनेक बुद्धिजीवी, विचारक, साहित्यकार व् योद्धा भी पैदा हुए हैं। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: yellow;"><b style="background-color: white;"><br /></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="background-color: white;"> भारत में ब्रिटिश शाशन के दौरान नागरिक प्रशाशन के उच्च पदों पर अंग्रेज अधिकारियों की ही नियुक्ति होती थी। कमिश्नर, जिला कलेक्टर, पुलिस कप्तान व् पोस्ट मास्टर जनरल जैसे पदों पर अंग्रेज अधिकारी ही नियुक्त होते थे। यही हाल सैन्य सेवाओं का भी था। प्रशाशन के निचले पदों पर ज्यादातर भारतीय नियुक्त किये जाते थे। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: yellow;"><b style="background-color: white;"><br /></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="background-color: white;"> भारत में प्रशाशन के उच्च पदों पर रहते हुए अंग्रेज अधिकारीयों के चरित्र में अनेक बुराईयाँ घर कर गयी थी। क्लब, डांस, शराब, जुआ, तथा अयाशियाँ आदि इनके चरित्र की कुछ ऐसी बुराईयाँ थी जो इनकी जीवन शैली में पूरी तरह व्याप्त हो गयी थी। लेकिन उपरोक्त बुराईयों के बावजूद इन अंग्रेज अधिकारियों के चरित्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता भी थी। साहस, ईमानदारी तथा कर्मठता जैसे मानवीय गुणों के प्रति इनमें बेहद आकर्षण था। अपने अधीनस्थ जिस अधिकारी में भी वो ये गुण पाते थे, उसकी प्रशंशा व् हौसलाअफजाई करने में भी कोई कंजूसी नहीं करते थे। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: yellow;"><b style="background-color: white;"><br /></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="background-color: white;"> कप्तान माइकल व् इंस्पेक्टर ताराचंद के बीच भी कुछ इसी प्रकार का भावनात्मक रिश्ता कायम हो गया था। जैसे ही कप्तान माइकल ने इंस्पेक्टर ताराचंद में इन गुणों को पाया उसने प्रोटोकॉल से हटकर भी इंस्पेक्टर की सार्वजानिक प्रशंशा व् हौसलाअफजाई की। वास्तव में कप्तान माइकल खुद एक हद तक ईमानदार व् कर्तव्यनिष्ठ ऑफिसर थे। इस प्रकार कप्तान माइकल को यह महसूस होता था की इंस्पेक्टर ताराचंद की प्रशंशा करके वह स्वयं की भी प्रशंशा कर रहा है और उनको एक बेहद आत्मसंतोष की अनुभूति होती थी। </b></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: yellow;"><b style="background-color: white;"><br /></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b style="background-color: white;"> एक चरित्रहीन व्यक्ति कभी भी एक चरित्रवान व्यक्ति की प्रशंशा नहीं कर सकता, यह उसके लिए आत्मघात के समान होता है। जबकि एक चरित्रवान व्यक्ति दूसरे चरित्रवान व्यक्ति में अपना ही रूप देखता है। यह उसके चरित्र की धार को और अधिक चमकाता है तथा अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए और अधिक आत्मविश्वास पैदा करता है। एक योद्धा ही दूसरे योद्धा की प्रशंशा कर सकता है तथा उसका सही मूल्यांकन कर दोनों ही एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं।</b><br />
<b style="background-color: white;"><br /></b>
<b>कप्तान माइकल के सन्देश के अनुसार इंस्पेक्टर ताराचंद अगले दिन उनसे मिलने मुख्यालय पर पहुंचे। मिलने पर इंस्पेक्टर ताराचंद ने एक बार पुनः कल के सन्देश के लिए कप्तान का धन्यवाद किया। कप्तान माइकल ने बड़े ही प्रशंशा भाव से उसी तरह इंस्पेक्टर की तरफ देखा जैसे किसी घर का सदहृदय मुखिया अपने परिवार के किसी सदस्य की बड़ी उपलब्धि पर उसकी और देखता है। इसके बाद कप्तान ने पुलिस मुख्यालय इलाहबाद से प्राप्त पदक के विषय में गवर्नर ऑफिस से जारी अधिसूचना की प्रति इंस्पेक्टर को दी तथा २० मार्च को होने वाले समारोह के विषय में मुख्यालय से प्राप्त प्रोग्राम तथा प्रोटोकॉल का विवरण भी दिया। कप्तान ने उस दिन संपन्न होने वाले समारोह के प्रोटोकॉल आदि के विषय में अपनी तरफ से निर्देश दिए। कप्तान माइकल ने हँसते हुए कहा मिस्टर ताराचंद ये केवल तुम्हारा ही सम्मान नहीं है मैं भी अपने को बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। झाँसी के पूरे पुलिस विभाग में इसका बड़ा सकारात्मक और प्रेरक सन्देश गया है। कुछ देर की चुप्पी के बाद कप्तान ने पुनः जोर से हँसते हुए कहा लेकिन लगता है ये खबर यहाँ के अपराधियों व् डकैतों को काफी बुरी लगने वाली है। इंस्पेक्टर ताराचंद ने भी हँसते हुए कहा की श्रीमान इस सब में आपके सहयोग और दिशानिर्देशों का बहुत बड़ा हाथ है। कप्तान ने फिर बताया की प्रोटोकॉल के अनुसार उस दिन समारोह में मुझे भी उपस्थित रहना होगा तथा नियमानुसार पदक प्रदान करने से पहले तुम्हारी उपलब्धियों की संक्षिप्त जानकारी भी मुझे ही देनी होगी। इस के बाद कुछ आवश्यक विचार विमर्श के बाद इंस्पेक्टर ताराचंद ने कप्तान माइकल से जाने की इजाजत मांगी। </b><br />
<b>थाने पहुँच कर इंस्पेक्टर ताराचंद ने अफसर दोयम यादव और थाने के बड़े मुंशी को २० मार्च से पहले पुलिस मुख्यालय इलाहबाद पहुँचने के लिए आवश्यक व्यवस्था करने को कहा। इसके बाद थाने में पहले से ही बैठे हुए कुछ शहरवासियों की समस्या सुनने में व्यस्त हो गए। </b><br />
<b><br /></b>
<b>झाँसी शहर की कानून व्यवस्था की स्थिति काफी सुधर गयी थी। ज्यादातर अपराधियों व् उनको संरक्षण देने वालो ने चुपचाप भूमिगत हो जाने में ही अपनी खैरियत समझी। अरसे से इस क्षेत्र या आसपास के क्षेत्र में किसी डकैती या बड़े अपराध की घटना नहीं हुयी। </b><br />
<b><br /></b>
<b style="background-color: white;"></b><br />
<b>दो दिन बाद नगरपालिका झाँसी में भी मेयर ने एक भव्य अभिनन्दन समारोह रखा जिसमे शहर के काफी नागरिक सम्मिलित हुए। मेयर ने अपने सम्बोधन में कहा की इंस्पेक्टर ताराचंद ने साहब ने यह साबित कर दिया है की यदि एक दृढ इच्छाशक्ति वाला अधिकारी ईमानदारी से अपने फर्ज को पूरा करने की ठान ले तो उसके नतीजे चमत्कारी होते हैं। आज इस शहर के ग्रामीण अंचल में डाकुओं का आतंक लगभग खत्म हो गया है इसके साथ ही कालाबाज़ारी तथा खाद्यवस्तुओं में मिलावट करने वाले अपराधी भी जेलों में हैं। </b><br />
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<br /></div>
</div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-29418856533005807332016-02-09T05:55:00.004-08:002016-02-11T03:25:08.897-08:0010-अतीत का रोमांच<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">मेरा झाँसी प्रवास व् भ्रमण बहुत ही सुखद और प्रेरणादायक रहा। वहां जुटाई जानकारियों, इससे जुड़े घटनाक्रम और घटनाक्रम के मुख्य चरित्र इंस्पेक्टर ताराचंद ने मुझे बेहद प्रभावित किया। युवावस्था में किसी भी व्यक्ति की कुछ भौतिक आवश्यकताएं तथा अपने व् अपने परिवार के लिए कुछ सपने होते हैं। यह होना एक बेहद स्वाभाविक बात है। इन सबके लिए साधन व् पैसे की आवश्यकता होती है। पुलिस विभाग में नौकरी करते हुए गलत साधनो से आसानी से पैसा इकठ्ठा किया जा सकता है तथा युवावस्था के धन से जुड़े सभी सपने पूरे किये जा सकते हैं। लेकिन इस सुलभ अवसर का लाभ न लेकर तथा अपनी भौतिक आवश्यकताओं व् इच्छाओं को सीमा में बांधकर जब कोई युवा अपने फर्ज को पूरा करने तथा अपने आदर्श व् मूल्यों को बनाये रखने में बेहद ईमानदार साबित होता है तो यह सराहनीय व् दूसरों के लिए बेहद प्रेरणादायक साबित हो जाता है। अपने परिवार के अतीत को खंगालने के दौरान मैंने यह पाया की इस परिवार के मुख्य किरदार इंस्पेक्टर ताराचंद ने अपनी भावी पीढ़ियों के लिए एक उत्कृष्ट विरासत छोड़ी है। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">बाद के दिनों में इंस्पेक्टर ताराचंद से जुडी अतीत की उन सभी घटनाओं व् इन सबका अपने आज के परिवार पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करते हुए मैंने समझा की अतीत एक केवल गुजर गया घटनाक्रम नहीं है। इसका प्रभाव व्यापक तौर पर वर्तमान पर होता है। इक पुरानी कहावत "जो बीत गया सो बीत गया आगे की सुधि ले" मात्र एक हो चुकी घटना के अच्छे या बुरे प्रभाव तक ही सीमित है। एक समृद्ध व् गौरवशाली अतीत का वर्तमान भी उत्कर्ष होगा इसकी सम्भावना प्रबल होती है पर एक निष्क्रिय, भ्रष्ट और अनैतिक अतीत की विरासत ढोते हुए आमतौर पर कोई भी वर्तमान उत्कर्ष और सम्पूर्ण नहीं हो सकता।</span><br>
<span style="color: #660000;"><br></span>
<span style="color: #660000;">किसी भी कालखण्ड में, किसी भी देश या देश के एक भाग में, राजनीतिक, सामाजिक व् आर्थिक परिस्थितियां समय के साथ बदलती रहती हैं। पर कुछ आदर्श व् मूल्य सर्वकालिक व् शाश्वत होते हैं लेकिन कितनी भी विषम परिस्थितियों के चक्रव्यूह को भेदकर जो चरित्र अपने आदर्श व् मूल्य बनाये रखता है वही भविष्य में पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक होता है। अपने परिवार के उस अतीत का वर्तमान पर जो प्रभाव हुआ है उसका और अधिक विश्लेषण करने पर मैं चौकन्ना हो गया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा की एक व्यक्ति के लिए जीवन में काफी सजग रहने की आवश्यकता है। यदि व्यक्ति अपने जीवन में आदर्श व् मूल्यों के प्रति जागरूक व् ईमानदार है तो उसके चरित्र का जरा सा भी विचलन आने वाले कल व् पीढ़ियों के लिए नकारात्मक व् दुविधापूर्ण परिस्थितियां पैदा कर सकता है। </span><br>
<span style="color: #660000;"><br></span>
<span style="color: #660000;">आज हम सब जो जहाँ हैं सब वर्तमान के शिल्पकार हैं। अपने अतीत से प्रेरणा व् ऊर्जा लेकर व् एक सीमा तक नियति द्वारा निर्धारित कर्मक्षेत्र में अपनी भूमिका निभाकर भविष्य की रचना कर रहे हैं। इस प्रकार हम सब यानी आज का वर्तमान अतीत व् भविष्य की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जीवन की अनादि व् अनंत श्रंखला में वर्तमान रुपी इस कड़ी का बहुत महत्त्व हैं। इस प्रकार अतीत को सही ढंग से समझना तथा वर्तमान में अपनी भूमिका का ईमानदारी व् सावधानी पूर्वक निर्वाह उज्जवल भविष्य के लिए अनिवार्य है। अपनी इस कर्मयात्रा में कहीं अनैतिक या भ्रष्ट पथ विचलन न हो जाये इसके लिए जीवन में आदशों व् मूल्यों के प्रति प्रबल आग्रह अति आवश्यक है। </span><br>
<span style="color: #660000;"><br></span>
<span style="color: #660000;">समय या काल असीम व् अनंत है तथा निरंतर गतिमान है। हम सब को ही किसी न किसी रूप से समय की अविरल गति के साथ तालमेल बैठाना होता है। समय के इस अनंत महासागर में हम सब अपनी अपनी क्षमता व् नियति के अनुसार जीवन रूपी नौका को चला रहे हैं। हममें से बहुत से इस महासागर में बहुत दूर तक नहीं जा पाते और इस प्रकार हमारा कर्मक्षेत्र बहुत ही सीमित रह जाता है। लेकिन हममें से कुछ दृढ इरादे व् अद्भुत साहस के साथ इसकी अथाह गहराईयों को नापते हैं तथा अनमोल मोती निकालकर आने वाली पीढ़ियों को उपहार देते हैं। इस प्रकार समय चक्र चलता रहता हैं। घटित घटनाएँ सापेक्ष होती हैं लेकिन आदर्श व् मूल्य शाश्वत होते हैं। </span><br>
<span style="color: #660000;"><br></span>
<span style="color: #660000;">इंस्पेक्टर ताराचंद का झाँसी का कार्यकाल ठीक ठाक चल रहा था। इस समय तक उनके खाते में अपराध उन्मूलन को लेकर कई नयी उपलब्धियां दर्ज हो गयी थी। इसकी सूचना बराबर जिला मुख्यालय व् प्रदेश पुलिस मुख्यालय तक पहुँच रहीं थी। उच्च अधिकारीयों व् शहर के अनेक गणमान्य नागरिकों द्वारा प्रेषित कई प्रशंशा पत्र भी प्राप्त हो रहे थे। थाने के अधीनस्थ स्टाफ को भी इन उपलब्धियों व् इस कार्यशैली से मजा आने लगा था। सच्चाई व् ईमानदारी से उत्पन्न वातावरण बेहद सुखद व् गौरवशाली अनुभूति पैदा करता है। स्टाफ यह अनुभव कर रहा था कि भ्रष्ट आचरण से प्राप्त रसमलाई के मुकाबले ईमानदारी से प्राप्त रोटी का स्वाद ज्यादा सुखद व् मीठा होता है। पूरा स्टाफ अपने को भयमुक्त, ऊर्जावान तथा पहले से कहीं बेहतर अनुभव कर रहा था। </span><br>
<span style="color: #660000;"><br></span>
<span style="color: #660000;">यह सन १९२५ का फरवरी महीना था। चारों और बसंत की खुशनुमा शुरुवात हो चुकी थी। मौसम बेहद सुखद और ऊर्जावान था। इंस्पेक्टर ताराचंद अपने सुबह के दैनिक कार्यक्रम निबटा कर थाने में आये शहर के कुछ गणमान्य नागरिकों के साथ बैठे विचार विमर्श कर रहे थे, तथा शहर की क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर उनके विचार प्राप्त कर रहे थे। तभी थाने के मुंशी ने आकर बताया की हुजूर कप्तान साहब वायरलेस पर आपसे बात करना चाहते हैं। इंस्पेक्टर ताराचंद ने तुरंत वायरलेस पर कप्तान साहब को सुना। </span><br>
<span style="color: #660000;"><br></span>
<span style="color: #660000;">पुलिस कप्तान माइकल ने कहा " बधाई, मिस्टर ताराचंद आपके लिए एक बड़ी खुशखबरी है। आज ही पुलिस मुख्यालय इलाहबाद से सन्देश प्राप्त हुआ है कि तुम्हारा भारतीय पुलिस पदक कन्फर्म हो गया है। यह पुलिस पदक तुम्हे अगले माह की २० तारीख को पुलिस मुख्यालय पर एक समारोह में गवर्नर द्वारा प्रदान किया जायेगा। तुम कल ही पुलिस मुख्यालय आकर मुझसे मिलो, इस विषय में उचित निर्देश मैं तुम्हें मिलने पर ही दूंगा।" इंस्पेक्टर ताराचंद ने पुलिस कप्तान का आभार प्रकट किया और उनको धन्यवाद दिया। यह सुनकर पास ही बैठे अफसर दोयम सब इंस्पेक्टर राजपाल यादव अति उत्साहित हो गए और कहा " श्रीमान इस अवसर को हम सब जरूर सेलेब्रेट करेंगे।" पास बैठे नागरिकों और विशेषकर झाँसी के डिप्टी मेयर ने इस सुझाव का तुरंत समर्थन किया। थोड़ी देर में ही मिठाई आदि की व्यवस्था की गयी और पूरा थाने का माहौल बेहद उल्लासपूर्ण हो गया। डिप्टी मेयर ने भी कहा "इंस्पेक्टर साहब हम भी इस मौके को नहीं चूकेंगे और नगर पालिका प्रांगण में एक अभिनन्दन समारोह का आयोजन करेंगे।" इंस्पेक्टर ताराचंद ने सबका हार्दिक धन्यवाद किया और अपने दूसरे कामों को निबटाने के लिए इजाजत चाही। </span><br>
<div>
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</div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-20547280642964559892016-02-06T06:43:00.005-08:002016-02-11T06:49:44.331-08:009-प्रशंशा का बढ़ता दायरा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">प्रान्त के पुलिस मुख्यालय इलाहबाद के पुलिस चीफ ने खुद वायरलेस पर व्यक्तिगत संपर्क करके इन्स्पेक्टर ताराचंद व् पूरी पुलिस टीम को इस साहसिक अभियान की सफलता के लिए बहुत सराहा। विशेषतौर से युवा अधिकारी के साहस व् कुशल रणनीति की भूरी भूरी प्रशंशा की। पुलिस चीफ ने यह भी बताया की वो जल्द ही इस साहसिक सफलता के लिए युवा अधिकारी के लिए पुलिस का तत्कालीन सर्वोच्च सम्मान "भारतीय पुलिस पदक" के लिए गवर्नर को प्रस्ताव भेजेंगे। पुलिस कप्तान माइकल तथा झाँसी के जिला कलेक्टर मिस्टर स्मिथ ने भी व्यक्तिगत रूप से इस सफलता को सराहा और प्रसंशा की। झाँसी के तत्कालीन मेयर ने भी बड़े आग्रह पूर्वक एक नागरिक अभिनन्दन समारोह का आयोजन किया जिसमें मेयर व् अन्य गणमान्य नागरिकों ने इस सफलता के लिए इन्स्पेक्टर ताराचंद व् पूरी पुलिस टीम की हार्दिक प्रसंशा की और सम्मानित किया। </span></div>
<span style="color: #660000; text-align: justify;"><br /></span>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">इसी प्रसंशा की कड़ी में १०-१२ दिन बाद मानवीय चरित्र का एक बहुत ही उत्कर्ष एवं संवेदनशील पहलु सामने आया। साहूकार देवीप्रसाद अपने दो तीन नौकरों के साथ उपहार, मिठाई एवं फल इत्यादि लेकर थाने में आये तथा इन्स्पेक्टर ताराचंद से पुलिसकर्मियों के लिए स्वीकार करने का आग्रह किया। इन्स्पेक्टर ताराचंद ने हँसते हुए देवीप्रसाद का कुशल क्षेम पूछा और उसके व् उसके परिजनों की चोटों के विषय में जानकारी ली। </span><br />
<span style="color: #660000; text-align: justify;"><br /></span>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">इन्स्पेक्टर ने देवीप्रसाद की भावनाओं का ख्याल रखते हुए कहा " ठीक है आपकी भावनाओं का आदर करते हुए ये मिठाई आदि तुम्हारी बधाई के रूप में पुलिस कर्मियों में बाटने के लिए कह दूंगा मगर ये उपहार में स्वीकार नहीं कर सकता अतः इनको आप ले जाइए।"</span><br />
<span style="color: #660000; text-align: justify;"><br /></span>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">देवीपसाद ने बार बार हाथ जोड़कर धन्यवाद किया और बेहद भावविह्ल होकर कहा " साहब मेरा ये जीवन आज आपकी देन है, यदि उस दिन देवदूत बनकर आप व् आपकी पुलिस टीम ने डाँकूओ से मेरी व् मेरे परिवार की रक्षा न की होती तो न ही आज मेरा ये जीवन होता और न ही मेरा कमाया धन। मुझे आज यह अहसास हो रहा है की अनेक लोगों को सताकर सूद से कमाया मेरा धन निरर्थक था और डाँकूओ से मेरी रक्षा नहीं कर सकता था।" </span><br />
<span style="color: #660000; text-align: justify;"><br /></span>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">इन्स्पेक्टर ताराचंद बड़े गौर से उसके चेहरे के भाव पढ़ रहे थे मगर उसका आशय नहीं समझ पा रहे थे। कुछ देर की चुप्पी के बाद साहूकार देवीप्रसाद ने हाथ जोड़कर फिर से निवेदन किया "असल में इस धन पर अब मेरा कोई हक़ नहीं है और न ही कोई मोह बाकी है। मैं इस धन का बड़ा भाग मेरी व् मेरे परिवार की जीवन रक्षा करने वाले बहादुर पुलिस कर्मियों को उपहार स्वरूप देना चाहता हूँ।"</span><br />
<span style="color: #660000; text-align: justify;"><br /></span>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">इन्स्पेक्टर ताराचंद ने कुछ अचरज भरी निगाहों से देखते हुए देवीप्रसाद को कहा " देखिये देवीप्रसाद जी हमने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है, इसके लिए किसी किस्म के पुरस्कार लेने का कोई औचित्य नहीं है। मैं आपकी भावना की कद्र करता हूँ, लेकिन इस धन को पुरस्कार स्वरुप स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस धन का उपयोग तुम अन्य जन कल्याणकारी व् धार्मिक कार्यों के लिए कर सकते हो। जिले में एक पुलिस कल्याणकारी कोष होता है जिसका उपयोग जरुरत के अनुसार पुलिस कर्मियों की सहायता के लिए किया जाता है। मैं अपने पुलिस कप्तान मिस्टर माइकल से बात करूँगा, यदि संभव हुआ तो तुम अपने धन का कुछ अंश जिले के इस कल्याणकारी कोष को दे सकते हो। </span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"> देवीप्रसाद ने बड़े कृतज्ञता के भाव से कहा "आप कप्तान साहब से बात करके ऐसा प्रबंध करा दें, मैं बहुत अहसानमंद रहूँगा।" </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"> थोड़ी देर के बाद देवीप्रसाद इजाजत लेकर चले गए। </span><br />
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">इसके बाद के छह सात महीने इन्स्पेक्टर ताराचंद के लिए बेहद कामयाबी के रहे। एक के बाद एक कई अपराधों का खुलासा करने में सफलता हासिल हुयी। इन्स्पेक्टर ताराचंद को अपने विभागीय अधिकारीयों का सहयोग व् प्रशंशा मिलती रही। सामान्य नागरिकों के बीच भी युवा अधिकारी बेहद लोकप्रिय हो गए थे। एक दिन पुलिस कप्तान माइकल ने ताराचंद को बताया कि "पुलिस मुख्यालय से तुमको भारतीय पुलिस पदक व् आउट ऑफ़ टर्न विभागीय प्रमोशन देने का प्रस्ताव गवर्नर की कार्यकारी परिषद को भेजा गया है। संभव है कार्यकारी परिषद की अगली बैठक में ही इस पर निर्णय ले लिया जाये।"</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">झाँसी एक ऐतिहासिक शहर है, भारतीय इतिहास में झाँसी का बहुत ही गौरवशाली स्थान है। १८५७ में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में यहाँ के वीरों और विशेषकर झाँसी की रानी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। देश प्रेम व् अपनी आन बान की रक्षा के लिए यहाँ के वीरों व् झाँसी की रानी के द्वारा त्याग, वीरता और बलिदान की अद्वितीय मिसाल स्थापित की। बाद के वर्षों में इस शौर्य व् बलिदान की मिसाल ने भारत की आजादी के लिए लड़ रहे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को बेहद प्रेरित किया। यहाँ का प्राकर्तिक वातावरण व् परिवेश बेहद रमणीक था। इस क्षेत्र के चप्पे चप्पे पर भारतीय इतिहास के गौरवशाली स्मृतिचिन्ह फैले हुए थे। यहाँ की आबो हवा तथा वातावरण में त्याग व् बलिदान की खुशबु व्याप्त थी। यह बहुत संभव है कि यहाँ के वातावरण व् परिस्थितयों ने युवा इंस्पेक्टर ताराचंद को भी प्रेरणा प्रदान की हो जिस कारण वो अल्प समय में ही अनेक साहसिक उपलब्धियां प्राप्त कर पाये। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">बाद के वर्षों में लगभग १९७० के दशक में, मैं झाँसी आया। इंस्पेक्टर ताराचंद के बारे में बचपन में सुनी हुयी घटनाओं को अपनी स्मृति में पुनः संजोने की जिज्ञासा लिए हुए उस थाने में भी गया जिसका वर्णन किया जा रहा है। थाने के पुराने अभिलेखों में इंस्पेक्टर ताराचंद से जुडी और उनके द्वारा प्राप्त की गयी कई उपलब्धियां दर्ज थी। इन सबको पढ़कर मैं बेहद रोमांचित हो रहा था। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि वर्तमान में जो हमारा परिवार है बहुत हद तक उसकी रूपरेखा युवा अधिकारी ताराचंद द्वारा इसी कर्म भूमि में लिखी गयी थी। युवा अधिकारी द्वारा निर्वाह किये साहसिक प्रयास, कर्तव्यपरायणता और ईमानदारी जैसे आदर्श हमेशा मेरे व् हमारे परिवार के लिए प्रेरणा का स्रोत रहे। अपने झाँसी प्रवास के दौरान मुझे कुछ ऐसे वृद्ध पुरुष भी मिले जिनके दिमाग में उन घटनाओ. की आज भी धुँधली स्मृति थी तथा मुझसे वो यादें बांटते हुए बेहद आलाह्दित हो गए। यह जानकर कि मैं इंस्पेक्टर ताराचंद का वंशज हूँ, उन्होंने बड़े ही प्रेम भाव से मेरा सत्कार किया। झाँसी के नगर पालिका अभिलेखागार में भी मुझे उस समय की घटनाओं की कुछ जानकारी मिली। अपने परिवार के अतीत की जड़ें तलाशता हुआ मेरा यह झाँसी प्रवास बेहद रोमांचित करने वाला रहा। इसने मेरी इस धारणा को भी और अधिक पुष्ट किया की हमारे परिवार का अतीत बेहद साहसिक व् ईमानदार रहा है। </span><br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">इंस्पेक्टर ताराचंद की नैतिकता व् ईमानदारी थाने के अधीनस्थ स्टाफ के लिए भी प्रेरणादायक साबित हुयी। ईमानदारी और साहस से मिलने वाले संतोष व् प्रसंशा का स्वाद उन्हें भी अच्छा लगने लगा। भ्रष्ट आचरण से उत्पन्न लिजलिजा अहसास, डर की भावना व् मन की बेचैनी के नकारात्मकता का उन्हें अहसास हुआ। इसका परिणाम यह हुआ की इंस्पेक्टर ताराचंद को अपने कार्य निष्पादन में अधीनस्थ स्टाफ का और अधिक व् भरपूर सहयोग मिलना शुरू हो गया। </span><br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">किसी व्यक्ति के जीवन में किस्मत का भी एक बड़ा हाथ होता है, लेकिन चरित्र, ईमानदारी व् कर्तव्यनिष्ठा भी बेहद महत्वपूर्ण घटक हैं जो इंसान को उंचाईओं पर लेकर जाते हैं। इंस्पेक्टर ताराचंद ने इस तथ्य को भली भांति समझा तथा इसे अपना जीवन मन्त्र बनाने का भरसक प्रयास किया। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">एक दिन कप्तान माइकल अपने दौरे के दौरान निरीक्षण के लिए थाने में आये। इंस्पेक्टर ताराचंद ने उनका स्वागत किया तथा थाने का रोजनामचा आदि अभिलेख निरीक्षण के लिए प्रस्तुत किये। इंस्पेक्टर ताराचंद किसी भी किस्म की शंका के निवारण के लिए कप्तान के साथ ही बैठ गए। कप्तान माइकल बहुत देर तक थाने के अभिलेखों का निरिक्षण करते रहे तथा बीच बीच में प्रसंशात्मक नजरों से ताराचंद की और देखते रहे। </span></div>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">निरीक्षण पूरा करने के बाद बड़े ही प्रशंशा के भाव से इंस्पेक्टर की देखा और कहा " वेरी गुड, मैंने अपनी सर्विस के बीस सालों के दौरान अनगिनत थानों का निरीक्षण किया लेकिन जिस प्रकार तुमने अपराध तक पहुंचने, उसका अनुसंधान करने व् अपराधी को कानून के शिकंजे में कसने का कार्य किया है वो मुझे इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिला। यह भी बहुत बड़ी बात है की तुम अपनी ड्यूटी को पूरा करने में, अपने स्टाफ को प्रेरित करने में और उनका सहयोग लेने में सफल रहे हो।" इंस्पेक्टर ताराचंद ने कप्तान का धन्यवाद किया तथा आगे के लिए और निर्देश देने की प्रार्थना की। </span><br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<span style="color: #660000; text-align: justify;">कप्तान माइकल ने हंसकर कहा "निर्देश बाद में दिया जायेगा लेकिन आज मेरे पास तुम्हारे लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है पहले उसको सुनों। तुम्हें भारतीय पुलिस पदक प्रदान करने का प्रस्ताव गवर्नर द्वारा स्वीकृत किया जा चूका है तथा इसके लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश गवर्नर ने पुलिस मुख्यालय को भेज दिया है। पुलिस चीफ ने एक दिन पहले ही इसके बारे में मुझे सूचित किया है। दूसरी खुशखबरी यह है की तुम्हारे प्रोमोशन की फाइल भी निर्णय के अंतिम दौर में है। मैंने अपनी तरफ से इसके लिए प्रबल संस्तुति मुख्यालय को भेजी है। </span><br />
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">इंस्पेक्टर ताराचंद ने पुनः पुलिस कप्तान का धन्यवाद किया और कहा " आपकी मुझ पर बड़ी कृपा रही है, मैं जो कुछ कर पाया हूँ उसमें आपके निर्देशों व् हौसलाअफजाई का बहुत बड़ा हाथ है।" थोड़ी देर और रूककर पुलिस कप्तान अपने दौरे के अगले पड़ाव की और निकल गए </span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-42991934798693975742016-02-03T06:30:00.003-08:002016-02-05T07:33:47.001-08:008-एक बड़ी सफलता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;">एक बड़ी सफलता </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;">ताराचंद के इस प्रयास, रणनीति के क्रियान्वन व् परीक्षा की घडी शीघ्र ही आ गयी। ये सन १९२३ के दिसंबर माह की एक सर्द सुबह थी। ताराचंद थाने के आवश्यक कार्यों में व्यस्त थे तभी एक मुखबिर कयूम थाने में आया तथा अकेले में बात करने का अनुरोध किया। मुखबिर ने सूचना दी कि मेरे सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि थाने से लगभग ८ मील दूर देवपुरा गांव में डाकू मुस्तकीम का गिरोह साहूकार देवीप्रसाद के यहाँ डाका डालने वाला है। देवीप्रसाद बड़े साहूकार हैं तथा लेन देन का भी कारोबार करते हैं। मुखबिर ने बताया कि यह एक बड़ा डाकू गिरोह है तथा इसमें लगभग १५ से २० डाकू शामिल हैं। इसके पास काफी मात्रा में असलहे व् हथियार हैं। मुखबिर ने ये भी बताया कि गिरोह की गांव में किस दिशा से प्रवेश की सम्भावना है। मुखबिर के अनुसार डकैती को अंजाम देने का समय रात लगभग ११ बजे से लेकर २ बजे के बीच हो सकता है। अधिकारी ने मुखबिर को धन्यवाद देते हुए शाम तक अपने सूत्रों से कुछ और जानकारियां प्राप्त करने का निर्देश दिया। युवा अधिकारी को मुस्तकीम गिरोह की सक्रियता की पूर्ण जानकारी थी लेकिन अरसे से इस गिरोह ने कोई वारदात नहीं की थी। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"> मुखबिर विश्वसनीय व् पुराना था तथा उसकी सूचना पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं था।अधिकारी ने बिना समय गंवाए गोपनीय तरीके से जिला मुख्यालय से संपर्क किया, पुलिस कप्तान को स्थिति से अवगत कराया तथा आवश्यक निर्देश प्राप्त किये। पुलिस कप्तान ने शाम से पहले थाने को कुछ अतिरिक्त पुलिस बल व् हथियार उपलब्ध करा दिए। </span></b><b><span style="color: #660000;">अधिकारी ताराचंद ने यह सब कुछ हो जाने के बाद थाने के पूरे स्टाफ को रात को किये जाने वाले ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी और रात को ८ बजे से पहले पूरी तरह ऑपरेशन के लिए तैयार होने के सख्त निर्देश दिए। शाम को ६ बजे तक मुखबिर ने भी थाने में आकर अपनी पूर्व सूचना की पुष्टि की तथा कुछ नयी जानकारियां भी प्रदान की। </span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"> युवा अधिकारी का दिमाग अपनी रणनीति पर तेजी से काम कर रहा था। शाम ८ बजने तक लगभग ३५ हथियार बंद पुलिस कर्मियों का एक दल इस अभियान के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया। मुखबिर को भी साथ जाना था। ९ बजे रात चलने का समय तय हुआ। अभियान में प्रयोग होने वाली कूटभाषा, संकेत व् सिग्नल पहले ही तय हो चुके थे। ताराचंद ने एक बार पुनः जिला मुख्यालय पर पुलिस कप्तान माइकल को अभियान की पूरी तैयारी के विषय में बताया तथा और आवश्यक दिशा निर्देश प्राप्त किये। कप्तान माइकल ने बड़ी भरोसेमंद आवाज के साथ कहा </span></b></div><div style="text-align: justify;"><b><span style="color: #660000;"> "मुझे तुम पर पूरा विश्वास है आगे बढ़ो तथा अभियान की समाप्ति तक वायरलेस पर संपर्क बनाये रखो।"</span></b><br>
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b>
<span style="color: #660000;"><b> नियत समय पर पुलिस बल एक बड़े पुलिस वाहन में रवाना हुआ। इंस्पेक्टर ताराचंद का सख्त निर्देश था की सभी हथियार लोडेड रखे जाएँ तथा प्रत्येक पुलिसकर्मी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए हरवक्त तैयार रहे। उस समय गांव को जोड़ने वाले रास्ते कच्चे व् उबड़ खाबड़ हुआ करते थे और आमतौर पर घोडा या बैलगाड़ी ही उन पर यातायात के मुख्य साधन थे। लेकिन बड़े पुलिस वाहन को इस रास्ते पर कोई विशेष परेशानी नहीं हो रही थी। </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span>
<b><span style="color: #660000;"></span></b><br>
<span style="color: #660000;"><b> लगभग १० बजे रात पुलिस बल गांव के करीब पहुँच गया, गाँव से कुछ सौ मीटर पहले ही पुलिस वाहन को मुख्य सड़क से हटाकर रोक दिया गया। और गांव से कुछ पहले ही पुलिस बल पूरी तरह से मुस्तैद होकर पोजीशन पर बैठ गए। चारों तरफ घोर अँधेरा व् सन्नाटा था। कभी कभी सियार या किसी अन्य जंगली जानवर के बोलने की आवाज निस्तभ्धता को तोड़ देती थी। इसी बीच गांव के लगभग मध्य से किसी मकान की छत से सर्च लाइट की तेज रोशनी दिखाई दी। ये संयोग पुलिस बल के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ, इससे यह लगभग तय था की डाँकू मकान के अंदर दाखिल हो चुके हैं तथा पुलिस की उपस्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। मुखबिर की सूचना पूरी तरह सही और सटीक थी। </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span>
<span style="color: #660000;"><b> तय रणनीति के अनुसार पुलिस बल को कई टुकड़ियों में बांटकर बिना आवाज किये लोकेशन की तरफ बढ़ने तथा योजनानुसार घेरा बंदी करने का आदेश दिया गया। किस टुकड़ी को कब हथियारों का इस्तेमाल करना है, दूसरी टुकड़ी को किस तरह उनको कवरेज देना है इसके विषय में टीम लीडर ताराचंद को वक्त वक्त पर आवश्यक निर्देश देने थे। हर निर्देश व् उसके जवाब की कूट भाषा पहले से ही तय थी। १५-२० मिनट तक पुलिस बल बिना आवाज किये तय व्यूह रचना के अनुसार आगे बढ़ता रहा। अब तक ये निश्चित हो गया था की डाँकू घर में प्रवेश ले चुके हैं। मकान से लगभग ५०- ६० गज पहले बिना किसी आवाज के घेरा बंदी करके मोर्चा संभाल लिया गया। </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span>
<span style="color: #660000;"><b> तभी अचानक मकान से चिल्लाने की आवाज आई और फिर छत से सर्च लाइट का प्रकाश दिखाई दिया। तुरंत प्रकाश व् उसकी स्थिति का अनुमान करके एक टुकड़ी को फायर खोलने का संकेत दिया गया। ये स्थिति शायद डाँकूओ के अनुमान से शायद बहुत दूर रही होगी लेकिन एक दो मिनट की चुप्पी के बाद ही डाँकूओ की तरफ से पुलिस टुकड़ी की दिशा में कई फायर किये गए लेकिन वो शायद ये अनुमान नहीं लगा पाये कि पुलिस बल कई टुकड़ियों में बंटा हुआ है। चारों तरफ से हो रही फायरिंग में वो ये नहीं समझ पाये कब किधर से फायर हो रहा है। लगभग दो ढाई घंटे तक दोनों तरफ से गोलियों की बौछार चलती रही। इसके बाद डाँकूओ की तरफ से गोलियों की रफ़्तार कम हो गयी। ये बहुत अच्छा संकेत था। घेरा और तंग कर दिया गया तथा एक बजते बजते पुलिस बल ने पूरी तरह से मकान पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद का दृश्य बड़ा खौफनाक और दारुण्य था। आधे घंटे के अंदर ही पुलिस बल ने मृतक डाँकूओ को उठाने तथा घायल डाँकूओ को कब्जे में लेने के साथ ही घायल व् बेहद डरे हुए परिवारवालों के लिए आवश्यक कदम उठाये। कुल मिला कर सात डाँकू मारे गए तथा पांच गंभीर रूप से घायल हुए। </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><b> साहूकार देवीप्रसाद बुरी तरह से टॉर्चर किये गए थे तथा वो बोलने की स्थिति में नहीं थे। बार बार हाथ जोड़कर कृतज्ञ आँखों से पुलिस बल का धन्यवाद कर रहे थे। अब तक डरे दुबके गांववाले समझ गए थे की पुलिस बल ने वक्त पर पहुँच कर डाँकूओ पर कब्ज़ा कर लिया है और उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया हैं। गांववाले इकठ्ठा होने लगे थे तथा पुलिस बल का धन्यवाद कर रहे थे। </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span>
<span style="color: #660000;"><b> इस ऑपरेशन की समाप्ति पर गांववालों ने अपना पूरा सहयोग दिया व् थोड़ी देर में ही कई बैलगाड़ियों की व्यवस्था मृतकों व् घायलों को ले जाने के लिए कर दी गयी। पुलिस बल को बहुत कम नुक्सान पहुंचा। तीन चार पुलिस कर्मियों को छर्रे लगे जिनका उपलभ्ध साधनों से प्राथमिक उपचार करके तुरंत भेज दिया गया। अब तक के घटनाक्रम के बारे में वायरलेस के द्वारा पुलिस कप्तान माइकल को सुचना दे दी गयी। पुलिस कप्तान ने इस बड़ी सफलता के लिए इंस्पेक्टर ताराचंद व् पूरी टीम की भूरी भूरी प्रशंशा की तथा कहा</b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b> " वाह मिस्टर ताराचंद वेलडन। आप और आपकी टीम ने बेहद साहसिक कार्य किया है अगर आपको किसी किस्म की मदद की जरुरत है तो मुझे बताईये।" </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b>इंस्पेक्टर ताराचंद ने उत्तर में कहा </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b> " श्रीमान सब प्रबंध स्थानीय स्तर पर हो गया है। हमें बहुत कम हानि पहुंची है और ऑपरेशन ख़त्म करके हम सुबह तक पुलिस स्टेशन पहुँच जायेंगे।" </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b>सुबह लगभग छह बजे तक पुलिस टीम वापिस थाने पहुँच गयी। </b></span><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span>
<span style="color: #660000;"><b> इसके बाद के चार दिन इन्स्पेटर ताराचंद ने अपनी विलक्षण प्रतिभा व् सूझ बूझ का अनूठा प्रदर्शन किया। घायल डाँकूओ से पूछताछ के बाद में पूरे गिरोह का पर्दाफाश हो गया। अगले दो दिनों में छापेमारी से गिरोह के बाकी सदस्यों को भी पकड़ लिया गया तथा उनके कब्जे से अपहरण किये गए व् फिरौती के लिए बंधक बनाये गए दो पकड़ को भी मुक्त करा लिया गया। जैसे जैसे जांच का दायरा बढ़ता गया डांकुओ से जुड़े व् उनको संरक्षण प्रदान करने वाले सफेदपोशों का भी पर्दाफाश हो गया। इस अपराध तंत्र से जुड़े कई सफेदपोश पुलिस की गिरफ्त में आ गए। </b></span><br>
<b><span style="color: #660000;"></span></b><br>
<span style="color: #660000;"><b><br></b></span>
<span style="color: #660000;"><b> पुलिस विभाग व् इंस्पेक्टर ताराचंद के लिए ये एक बहुत बड़ी सफलता थी। इसकी बहुत सकारात्मक व् व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। इसकी गूँज जिला मुख्यालय से लेकर संयुक्त प्रान्त के पुलिस हेड ऑफिस इलाहबाद तक पहुँच गयी। </b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: #660000;"><br></span></b></div>
<div style="text-align: justify;">
<b><br></b></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-21848432787218750072016-02-02T07:11:00.004-08:002016-02-06T01:50:30.363-08:007-नए दायित्व की शुरुवात<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<br></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;">वर्ष १९२३ में ताराचंद का स्थानांतरण संयुक्त प्रान्त के बुंदेलखंड संभाग के झांसी जिले के लिए हो गया। अगले छह सात वर्ष युवक अधिकारी को इसी संभाग के झांसी ललितपुर आदि जिलों में विभिन्न थानो का दायित्व सौंपा जाता रहा। यह संभाग अपराध बहुल एवं डाकू आतंक से बुरी तरह ग्रस्त था। इन छह सात वर्षों में युवा अधिकारी को अपनी कार्यक्षमता साहस व् ईमानदारी दिखाने का भरपूर अवसर मिला।</span><br>
<span style="color: #990000;"><br></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;"> झांसी व् ललितपुर जिलों की भौगोलिक स्थिति एवं सामाजिक संरचना अपराध व् अपराधियों के लिए बहुत अनुकूल थी। चम्बल नदी के बीहड़ एवं यहाँ के सघन वन क्षेत्र डाँकूओ और अपराधियों के छुपने तथा पुलिस से लम्बे समय तक बचे रहने के आदर्श स्थान थे। डाँकूओ को संरक्षण देने तथा उन्हें भोजन एवं हथियार आदि उपलब्ध कराने की बहुत पुरानी व्यवस्था विस्थापित थी। कुछ सफ़ेदपोश लोग और यहाँ तक की पुलिस विभाग के भी कुछ लोग इस अपराधिक गठजोड़ में शामिल थे। बदले में समाज के ये सफेदपोश अपराधी आर्थिक लाभ पाते थे तथा समाज के भले लोगों को डरा धमकाकर अपनी सम्पनता व् हैसियत बढ़ाते थे। बहार के दूसरे जिलों से पैसे वाले लोगों का अपहरण करके पकड़ यहाँ लायी जाती थी तथा बीहड़ों व् घने जंगलों में छुपाकर रखी जाती थी। बाद में इस अपराध में सक्रिय बिचौलियों के माध्यम से सौदेबाजी होती तथा मोटी फिरौती की रकम वसूल की जाती। इस फिरौती का एक बड़ा हिस्सा इन सफेदपोश अपराधियों तथा कुछ मामलों में पुलिस के पास भी पहुँचता था।</span><br>
<span style="color: #990000;"><br></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;"> झांसी के एक महत्वपूर्ण थाने का चार्ज मिलने के कुछ ही दिनों के अंदर युवा अधिकारी ताराचंद ने इस क्षेत्र में व्याप्त अपराध व् अपराधियों की कुंडली खंगाल डाली। अपराधियों, विशेषकर डकैतों को व् संरक्षण सुविधा उपलब्ध कराने वाले तत्वों को चिन्हित किया गया तथा उन पर निगरानी रखने की व्यवस्था की गयी। युवा अधिकारी ने अपनी आदत के अनुसार इस अपराध उद्योग के निराकरण के लिए कुछ ठोस प्रयास करने की ठानी। इस सबके लिए उच्च अधिकारीयों की सहमति, सहयोग, तथा एक विशेष एक्शन प्लान की जरुरत थी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;"> </span><br>
<span style="color: #990000;"> युवा अधिकारी ने इस स्थिति अपने आंकलन व् एक्शन प्लान के बारे में झांसी के तत्कालीन पुलिस कप्तान मिस्टर माइकल को अवगत कराया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;"> मिस्टर माइकल ने बहुत ध्यान से ताराचंद के पूरे प्लान को सुना व् समझा, बीच बीच में कुछ सवाल भी उठाये। अंत में कुछ देर चुप रहने व् सोचने के बाद प्रशंशा भरी नजरों से युवा ताराचंद की और देखा और कहा</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;"> " वेल मिस्टर ताराचंद, मुझे तुमसे कुछ कुछ ऐसी ही उम्मीद थी। मैं तुम्हारे चार्ज लेने के बाद व् मेरे सम्मुख पहली पेशी के वक्त ही भांप गया था की तुममे ऊर्जा है क्षमता है तथा अपने कार्य के प्रति बेहद ईमानदारी है। ठीक है, आगे बढ़ो तथा समय समय पर मुझे अपनी प्रगति व् जरूरतों से अवगत करते रहो।"</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;">युवा ताराचंद ने धन्यवाद बोलते हुए जाने की इजाजत मांगी।</span><br>
<span style="color: #990000;"><br></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;"> युवा ताराचंद के लिए अपने उच्च अधिकारी की प्रशंशा व् समर्थन मिलना बहुत ही उत्साह जनक था।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #990000;">युवा अधिकारी ने बिना समय गँवाय इस दिशा में अपने प्रयास तेज कर दिए| सबसे पहले अपने अधीनस्थ स्टाफ के साथ एक गोपनीय बैठक की| अधिकारी ने अपने स्टाफ से कुछ आवश्यक जानकारियां ली तथा उन्हें आवश्यक निर्देश दिए| पुलिस विभाग में भरोसेमंद मुखबिर तथा इनसे प्राप्त जानकारियां बहुत महत्वपूर्ण होती हैं| इस प्रकार कुछ स्थानीय मुखबिरों को भरोसे में लेकर उनसे जानकारियां प्राप्त की गयी तथा उनसे और अधिक जानकारियां इकठ्ठा करने को कहा गया| थाने में असलहों की काफी कमी थी जिसको पुलिस कप्तान माइकल ने शीघ्र ही पूरा करा दिया| मुखबिर सक्रिय हो गए तथा अधीनस्थ स्टाफ ने भी निर्देशानुसार अपराधियों की पकड़ के लिए जाल बिछाना शुरू कर दिया|</span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-74609098940505696412016-02-01T06:39:00.003-08:002016-02-03T05:51:59.831-08:006-असह्योग आंदोलन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;">गांधीजी के नेतृत्व में प्रथम असहयोग आंदोलन का प्रसार तेजी से भारत के सुदूर ग्रामीण आंचलो तक हो रहा था। शुरु में ब्रिटिश शाशन के दिल्ली में बैठे वायसराय आदि ने आन्दोलन की तीव्रता , भारतीय जनमानस व् राजनीति पर इसके प्रभाव, आमजन की इसमें भागीदारी को बहुत कमतर करके आंका। वो भारतीय आमजन मैं छिपी आत्मशक्ति व् बलिदान की भावना को नहीं पहचान पाये। शुरू मैं सोचा गया की पुलिस बल व् अन्य बलो के द्वारा दमन चक्र चलाकर बहुत जल्द इस आंदोलन को हमेशा के लिए दबा दिया जायेगा तथा इसका प्रभाव समाज व् राजनीति पर बहुत अल्पकालीन होगा । अतः इस दमन चक्र में पुलिस व् सिविल प्रशाशन का बहुत भौंडे तरीके से दुरूपयोग किया गया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"> इससे पहले भारतीय जनमानस में ब्रिटिश शाशन व् इसके अधिकारियो की छवि ईमानदार, न्यायप्रिय, मानवीय व् अनुशाशांप्रिय के रूप थी। ग्रामीण आँचल के जनमानस में पुलिस का इकबाल कायम था आमजन समझता था की पुलिस उसकी रक्षक है तथा अपराध का ईमानदार खुलासा करके अपराधी को सजा दिलाना व् अपराध मुक्त समाज बनाना उसका लक्षय है। इसके विपरीत आंदोलन में सक्रीय भागीदारी के दौरान आम आदमी ने देखा कि पुलिस बल शाशन के हाथ में दमन का प्रबल व् भौंडा हथियार बनकर रह गया है। ये भी देखा की की अपने आकाओं के इशारे पर किसी सही उद्देश्य से चलाये जा रहे जन आंदोलन का दमन करने में वह अपराधियों को भी पीछे छोड़ सकती है। इस अनुभव व् अहसास ने जनचेतना को झकझोर दिया तथा ब्रिटिश शाशन व् प्रशाशन की दीर्घ काल से बनी छवि को धूमिल कर दिया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"> आंदोलन का प्रसार व् चेतना अब शहरों तक सीमित न होकर सुदूर ग्रामीण आंचलो में भी फ़ैल गयी। आमजन को भी अब ब्रिटिश शाशन अन्यायपूर्ण, स्वार्थी, व् अनुचित लगने लगा। आजादी की चाहत निरंतर बलवती होने लगी। देश की आजादी के लिए बड़ी से बड़ी क़ुरबानी देने का जज्बा पैदा होने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे सदियों से सोयी भारत की आत्मा जाग उठी है।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #660000;"> ऐसे समय में किसी भी जागरूक व् चिंतनशील देशवासी का इस आंदोलन से निरपेक्ष रहना मुश्किल था। युवा पुलिस अधिकारी ताराचंद के मन में भी इस समय एक ओर अपनी पुलिस की नौकरी तथा दूसरी ओर देश के प्रति अपने फर्ज को लेकर द्वंद् चल रहा था। कई बार मन में आया की मैं भी ये नौकरी छोड़ कर स्वतंत्रता प्राप्ति के इस महायज्ञ में अपना योगदान दूँ, लेकिन नियति ने भविष्य में युवक के जीवन की दिशा पहले ही निर्धारित कर रखी थी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<br />
<div>
<br /></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-63977020797925857602016-02-01T06:37:00.000-08:002016-02-03T05:53:17.234-08:005-गृहस्थ जीवन में प्रवेश <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;" />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">लालकुर्ती थाना मेरठ शहर का एक महत्वपूर्ण थांना था I इसके अंतर्गत शहर के कई सघन आबादी वाले तथा व्यावसायिक क्षेत्र आते थे I थाने में थाना अध्यक्ष के अतिरिक्त दो अफसर दोयम तथा २०-२५ अधीनस्थ जैसे सिपाही, दीवान व् मुंशी आदि होते थे I युवक अधिकारी की नियुक्ति थाने मैं दूसरे नंबर के अफसर दोयम के रूप में हुई I नए मेहमान का स्वागत थाने के अधिकारियो व् स्टाफ ने उत्साह के साथ किया I आकर्षक व्यक्तित्व के खानदानी युवक का पहला प्रभाव सकारात्मक रहा। शुरू के दौर में युवक की कर्तव्यपरायणता जोश व् ईमानदारी ने विभाग तथा संपर्क मैं आने वाले आम लोगों पर बड़ा अच्छा प्रभाव डाला। उस समय पुलिस थानों में जीप या मोटरसाइकिल उपलब्ध नहीं होती थी। अधिकारीयों के पास घोड़े होते थे तथा उन्ही पर वो गश्त व् अन्य कार्यों के लिए उपयोग करते थे। अपनी सेना की नौकरी के कार्यकाल मैं युवक अधिकारी ने घुड़सवारी मैं महारत हासिल कर ली थी। इसने भी विभागीय अधिकारीयों को बहुत प्रभावित किया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><u>विवाह के प्रस्ताव </u></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><u><br /></u></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"> शीघ्र ही युवक की चर्चा मेरठ मुजफ्फरनगर व् सहारनपुर जिलों की त्यागी बिरादरी में एक खानदानी व् होनहार युवक के रूप मैं होने लगी। गांव मैं युवक के परिवार के पास शादी के लिए अनेक प्रस्ताव पहुँचने लगे। अंततः मेरठ जिले के माछरा गांव के एक बड़े व् खानदानी जमींदार चौधरी अनूप सिंह की बड़ी कन्या से विवाह तय हो गया। चौधरी अनूप सिंह के केवल दो बेटियां थी। कुछ ही माह के बाद बड़ी धूम धाम के साथ विवाह संपन्न हो गया तथा युवक अधिकारी के जीवन में एक नयी पारिवारिक जिम्मेदारी का सूत्रपात हो गया। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><u>ईमानदारी एक समस्या भी</u> </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"> पुलिस विभाग मैं युवक अधिकारी का प्रारंभिक दौर ठीक ठाक चल रहा था तथा सराहा भी जा रहा था। किन्तु युवक की कर्तव्य परायणता तथा ईमानदारी के प्रति अतिरिक्त आग्रह कुछ समस्याएं भी पैदा कर रहा था। ईमानदारी व्यक्तिगत होती है। ये संक्रामक नहीं होती। किन्तु मजबूरीवश ही सही किसी भी परिस्थिति मैं ईमानदारी का विरोधी स्वर संक्रामक होने लगता है। विभाग मैं अनेक प्रशंशनीय कार्य करने के बावजूद भी कभी कभी युवक अधिकारी के सामने असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी हमेशा आदतन नहीं होती कभी कभी इसके पीछे पारिस्थितिक मजबूरियां भी होती है और इस मजबूरी को उत्पन्न करने मैं तत्कालीन व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ होता है। कई बार अपराधिक केस की जांच के दौरान युवक अधिकारी के सामने ऊपर का दबाव या स्थानीय दलालों द्वारा उत्पन्न की गयी स्थिति जांच मैं गतिरोध पैदा करती थी। कभी कभी अधीनस्थ स्टाफ के बीच से भी विरोध के स्वर उठ जाते थे। मगर उन्होंने अपनी सेवा के शुरूवाती दौर मैं इन सभी परिस्थितियों का बड़ी हिम्मत व् समझदारी से मुकाबला किया तथा अपने को एक बेहतरीन व् कामयाब अधिकारी के रूप मैं स्थापित करने मैं कामयाब हुए। और लालकुर्ती थाने मैं अपने दो साल सफलतापूर्वक पूरे किये। </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #660000; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;"> ये वर्ष १९२१ का शुरुवाती समय था। देश के अंदर राजनीतिक हलचलें अपने चरम पर थी। महात्मा गांधी का व्यक्तित्व अपनी बुलंदी पर था। भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस भारत को आजाद कराने के अपने मिशन में बहुत तीव्रता से आगे बढ़ रही थी। कांग्रेस के समानांतर क्रांतिकारी गतिविधियाँ भी काफी तेज हो रही थी। तथा देश को आजाद कराने के महायज्ञ में अपनी आहुति देकर बड़ा योगदान कर रही थी। इस समय तक भारतीय पुलिस अंग्रेज शाषण के आधीन इस स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए एक दमनकारी औजार के रूप में होने लगी थी। इस अवस्था ने एक हद तक पुलिस विभाग को अपने मूल उद्देश्य से भटकाना शुरू कर दिया था तथा इसका प्रभाव पुलिस कर्मियों के चरित्र एवं कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगा था।</span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-64741836146041970652016-01-30T19:48:00.001-08:002016-01-30T19:48:41.939-08:004-भविष्य की और एक कदम<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद भी युवक अपनी यूनिट के लेखा विभाग में ही कार्यरत थे I चर्चाएं जोरो पर थी की युद्ध समाप्ति के बाद शीघ्र ही सेना मैं नियुक्त बहुत से लोगों की छटनी की जाएगी और अस्थायी पदों को समाप्त किया जायेगा I युवक ताराचंद भी इस स्थिति से अवगत थे और अपने भविष्य के प्रति सजग और जागरूक थे I अचानक एक दिन जब वो अपने दफ्तर के कार्य मैं व्यस्त थे तो यूनिट के कमांडिंग अफसर मिस्टर वाटसन का बुलावा आया I मिलने पर मिस्टर वाटसन ने बड़ी आत्मीयता से युवक ताराचंद को बताया<br>
" मिस्टर त्यागी जैसा की आपको मालूम होगा की युद्ध समाप्ति के पश्चात कुछ अस्थायी नियुक्तियों की छटनी की जानी है उस सन्दर्भ मैं आपका सर्विस रेकॉर्ड बहुत अच्छा है I यदि आप चाहें तो आपका समायोजन सेना मैं स्थायी रूप से किया जा सकता है I यदि आप कोई दूसरा विकल्प चाहते हैं तो मुझे बताएं"<br>
युवक ने विनम्रता पूर्वक कहा <br>
" श्रीमान आपका व् अन्य अधिकारीयों का मेरे प्रति विशेष स्नेह रहा है I यहाँ पर कार्य करते हुए थोड़े समय मैं ही मैंने बहुत कुछ सीखा व् जाना है लेकिन मेरी इच्छा संयुक्त प्रान्त की पुलिस सेवा मैं जाने की है और इसके लिए मैं आवेदन भी कर चुका हूँ I यदि आप उचित समझें तो इस विषय मैं प्रान्त के गवर्नर की कार्यकारी परिषद को सेना मुख्यालय से संस्तुति भिजवा सकते हैं I "<br>
मिस्टर वाटसन ने हँसते हुए कहा <br>
" ठीक है मिस्टर त्यागी इस विषय मैं जो भी अधिकतम किया जा सकता है मैं करूँगा I "<br>
युवक ने मिस्टर वाटसन का धन्यवाद किया और जाने की इज़ाज़त मांगी I <br>
वाटसन ने युवक की कार्यक्षमता, सर्विस रिकॉर्ड, व्यवहार व् ईमानदारी को संज्ञान लेते हुए इस विषय मैं कुछ ज्यादा ही रूचि दिखाई और मुख्यालय कमांडिंग इन चीफ मिस्टर स्मिथ से बात की और जल्दी ही एक प्रबल संस्तुति पत्र गवर्नर की कार्यकारी परिषद के पास भेजा I इस संस्तुति को तुरंत संज्ञान लेते हुए शीघ्र ही युवक ताराचंद को दारोगा पद के लिए साक्षात्कार के लिए बुलावा भेजा गया I साक्षात्कार जैसा की उम्मीद थी सफल रहा और १९१८ के मध्य मैं युवक ताराचंद की नियुक्ति प्रदेश की पुलिस सेवा मैं दारोगा के पद पर हो गयी और उनको प्रशिक्षण के लिए मुरादाबाद प्रशिक्षण स्कूल मैं भेज दिया गया I एक वर्ष पश्चात सफलतापूर्वक प्रशिक्षण समाप्त होने पर प्रथम नियुक्ति मेरठ शहर के लाल कुर्ती थाना क्षेत्र मैं हुई I <br>
ये खबर तार द्वारा गाँव मैं भी पहुंची और जल्दी ही आस पास के गावों मैं भी फ़ैल गयी I पूरा गांव इस नियुक्ति को लेकर बेहद गौरवान्वित था I <br>
उत्तर प्रदेश के बहुत पिछड़े आँचल के एक ग्रामीण परिवेश मैं किसी युवक का पुलिस अधिकारी बनना गाँव के लिए बहुत बड़ी बात थी I उस समय तक आस पास के क्षेत्र मैं कोई भी युवक सरकारी पद पर नहीं पहुंचा था I यद्यपि बाद के कुछ ही वर्षो मैं कई नौजवान इस आँचल से ICS तथा न्यायिक परीक्षाओ मैं सफल हुए और क्षेत्र का नाम रोशन किया I <br>
गांव मैं इस खबर से जश्न का माहौल था और उस वक्त ग्रामीण आँचल मैं उपलब्ध एकमात्र मनोरंजन के साधन पारम्परिक स्वांग का आयोजन किया गया I कई दिन तक दावत मनोरंजन व् खुशियों का माहौल बना रहा I <br>
क्रमशः</p>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-49519707140764141692016-01-29T23:14:00.000-08:002016-02-06T01:48:34.318-08:003-प्रथम विश्व युद्ध<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<br></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
एक ऊर्जावान कर्मठ अनुशाषित 18 वर्ष का युवक जिसके अंदर एक जमीदार परिवार से हटकर कुछ करने और अपनी पहचान बनाने के सपने पल रहे थे मगर पारिवारिक पृष्ठभूमि व् एक छोटे से गाँव मैं जन्म लेने के कारण कोई स्पष्ट एवं सीधा मार्ग सामने नहीं था। अपनी मेहनत और हौसले के सहारे ही एक एक कदम आगे बढ़ना था और मंजिल पानी थी। इस समय तक महात्मा गांधी के नेतृत्व मैं कांग्रेस द्वारा संचालित देश को आजाद कराने का आंदोलन सक्रिय हो चुका था। राजनीतिक चेतना का विस्तार धीरे धीरे पूरे <span class="text_exposed_show" style="display: inline;">देश मैं होने लगा और देश को ब्रिटिश गुलामी से मुक्त कराने की बैचेनी बढ़ती जा रही थी किन्तु साहसी व् कर्मठ युवक ताराचंद पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा आंदोलन का संक्रमण काल होने के कारण इस दिशा मैं सक्रिय होने से वंचित रह गया। बहुत जल्द ही युवक ने अपनी दक्षता, कार्यक्षमता और ईमानदारी जैसे गुणों के कारण अपने अधिकारीयों का मन मोह लिया।<br>सन् 1918 आते आते प्रथम विश्व युद्ध का अंत हो गया तथा विजेता राष्ट्रों का दृष्टिकोण एवं संकुचित सोच दूसरे विश्वयुद्ध की भूमिका रखने लगा। विजेता राष्ट्र अमेरिका और इंग्लैंड आदि ने हारे हुए राष्ट्रों जर्मनी और जापान के ऊपर अपनी मनमानी अहंकारी और अपमानजनक शर्तें थोपी जिनको मजबूरी मैं हारे हुए राष्ट्रों को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन ये अपमानजनक सन्धियां विशेषकर जापान और जर्मनी आदि देशों ने भले ही स्वीकार कर ली हों लेकिन इस अपमान की आग अंदर ही अंदर सुलगती रही। इसके कारण बाद चलकर फासीवाद व् नाजीवाद का उदय हुआ और हिटलर व् मुसोलिनी जैसे तानाशाहों ने इस अपमान का बदला लेने के लिए विश्व को दूसरे विश्वयुद्ध की आग मैं झोंक दिया।<br>इसी दौरान 1917 मैं विश्व के राजनीतिक पटल पर एक और बहुत बड़ी घटना हुयी। रूस मैं लेनिन के नेतृत्व मैं कम्युनिष्ट क्रांति हो गई जिसका विश्व पर व्यापक असर हुआ। भारत भी इसके असर से अछूता नहीं रहा। भारत मैं विशेषकर युवा इस क्रांति से प्रेरित व् बेहद उत्साहित हुए और उनमें देश को आजाद कराने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुयी। चंद्र शेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे महान शहीदों ने ब्रिटिश साम्रज्य को खुली चुनौती दी जिसके कारण भारत को लंबे समय तक गुलाम बना कर रखना ब्रिटिश शाशन के लिए मुश्किल हो गया। यद्यपि ये महान क्रन्तिकारी देश को पूरी तरह आजाद तो नहीं करा पाये लेकिन इन महान शहीदों ने अपना बलिदान देकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।<br>उधर रूस की क्रांति तथा मित्र राष्ट्रों की जीत के बाद विश्व मैं नए राजनीतिक समीकरण बनने शुरू हुए। रूस मैं सम्पूर्ण कम्युनिस्ट क्रांति के बाद उसके विरोध मैं प्रतिक्रांति का दौर शुरू हुआ। दोनों विचारधाराओं के टकराव से लंबे समय तक रूस मैं अशांति और दमन का दौर चला। लेनिन जैसा सक्षम नैतिक व् महान नेता भी इस टकराव से उत्पन्न हिंसा बुराईयों और दमन को पूरी तरह से नहीं रोक पाया। इन सब घटनाओं के रूस तथा विश्व मैं व्यापक एवं दूरगामी असर हुए और इन्ही परिस्थितयों ने स्टालिन जैसे तानाशाह को जन्म दिया। इसके बाद पूरा विश्व मौटे तौर पर साम्राज्यवादी और कम्युनिस्ट विचारधाराओं का अखाडा बन गया था। लंबे समय तक विश्व शीत युद्ध के साये मैं रहा।<br>उपरोक्त आवश्यक विषयांतर के पश्चात् अब फिर से इस कथानक के मूल स्वरुप पर आते हैं<br>क्रमशः</span></div>
</div>
Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-18331227709307045112016-01-29T23:12:00.002-08:002016-01-30T03:44:37.924-08:002-1910 का वो काल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-top: 6px;">
पारंपरिक सामारोह जैसे शादी ब्याह आदि मैं हर कुटुंब अपना बड़प्पन व् शान दिखाने के लिए अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा खर्च कर देते थे। कुछ परिवार तो अपनी हैसियत की सीमा को पार कर इस हद तक कर्ज मैं डूब जाते थे जिससे जमींदारो के चंगुल से वो जीवन भर मुक्त नहीं हो पाते थे। जहाँ तक जातिगत सरंचना का सवाल था इस छोटे से गाँव मैं त्यागी, हरिजन, बाल्मीकि, धीवर एवं कुम्हार आदि मुख्य जातियां थी जिसमे हरिजन और बाल्मीकि लगभग 40 प्रतिशत और त्यागी 60 प्रतिशत थे। ज्यादातर आबादी का मुख्य व्यवसाय खेती और खेती से सम्बंधित कार्य थे। खेती योग्य भूमि का लगभग 90 फीसदी हिस्सा सवर्ण त्यागियों के पास था तथा मात्र 10 फीसदी हिस्सा कुछ हरिजन व् धीवर परिवारो के पास था। इस प्रकार ज्यादातर हरिजन बाल्मीकि व् धीवर जाती खेतिहर मजदूर व् साफ़ सफाई के कार्यो मैं संलग्न थी। शिक्षा की अवस्था इस समय बेहद दयनीय थी और गाँव मैं प्राथमिक स्कूल का भी अभाव था। प्राथमिक शिक्षा के लिए भी गाँव से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित एक क़स्बा चरथावल मैं जाना पड़ता था। 1905 तक गाँव की लगभग शत प्रतिशत आबादी प्राथमिक शिक्षा से भी वंचित थी। प्राइमरी शिक्षा से आगे की शिक्षा के लिए 25 किलोमीटर दूर स्थित जिला मुख्यालय जाना मजबूरी थी और वहां भी डीएवी स्कूल एकमात्र स्कूल था जो माध्यमिक शिक्षा तक ही उपलब्ध था। इस गाँव व् आसपास के गाँव की आबादी किसी भी प्रकार के संचार साधनो जैसे अखबार इत्यादि से परिचित नहीं थी। राजनीतिक चेतना भी नितांत सीमित व् सुनी सुनाई सच्ची झूटी घटनाओ तक ही सीमित थी। आम आदमी की जानकारी मात्र इतनी ही थी की इस देश का शाशन अंग्रेज साहब बहादुर के हाथ मैं था और राजा सात समुन्दर पार इंग्लैंड मैं बैठे हैं।इस समय तक इस राजनीतिक स्थिति या समझ को लेकर आम गाँववासी मैं न कोई बैचेनी थी और न ही कोई विरोध था। स्थानीय थाने का दरोगा व् तहसील का पटवारी ही सत्ता के वास्तविक प्रतीक और अपनी पूरी हनक के साथ स्थानीय प्रशाशन चलाते थे। जमीदारी प्रथा भी कायम थी और ज्यादातर कृषि भूमि का नियंत्रण जमीदारों के हाथ मैं था। आम कृषक सीरदार या बटाईदार की हैसियत से कृषि भूमि जोतता था और पैदावार का लगभग आधा भाग जमीदारों को जाता था जो उसके कारिंदे वसूलते थे और इस वसूली मैं प्रताड़ना व् दमन का भी काफी प्रचलन था। जिला प्रशाशन का पूरा नियंत्रण कलेक्टर का होता था जो अधिकतर अंग्रेज होता था और ICS की परीक्षा से चुनकर और इंग्लैंड मैं ट्रेनिंग लेकर आते थे।<br />ग्रामीण आँचल के इस संक्षिप्त तत्कालीन विवरण के बाद हम इस कथानक की शुरुवात करते हैं। इस गाँव के अनेक कुटुम्बों मैं एक कुटुंब चौधरी जौमी सिंह का था जो जाति से त्यागी और पेशे से कृषक थे। आगे चलकर ये कुटुंब चार परिवारों मैं बँट गया इनमे से एक परिवार के मुखिया चौधरी वजीर सिंह त्यागी थे जो एक बड़े कृषक और बेहद सीधे सादे इंसान थे। इनके तीन लड़के सबसे बड़े कुंदन सिंह अछपल सिंह और ताराचंद हुए। लगभग 1917 मैं इस परिवार के सबसे छोटे सुपुत्र ताराचंद गाँव के एकमात्र ऐसे लड़के थे जिन्होंने बहुत संघर्ष करके विषम परिस्थितयों मैं जिला मुख्यालय पर उपलभ्ध सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त की और इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की।<br />ये प्रथम विश्वयुद्ध का समय था और युद्ध अपने निर्णायक दौर मैं चल रहा था। देश के अंदर बहुत सी राजनीतिक व् सामाजिक उथल पुथल हो रही थी और गाँव भी अब इस वक्त तक इनसे अछूते नहीं थे। राष्ट्रिय राजनीतिक रंगमंच पर गांधीजी का आगमन हो चूका था तथा कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व मैं स्वतंत्रता प्राप्ति के अपने मिशन की और बढ़ चली थी। गाँव मैं भी आर्यसमाज, कांग्रेस तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं द्वारा राजनीतिक व् सामाजिक चेतना का प्रसार किया जाने लगा था।<br />ऐसे समय मैं ये नौजवान व् शिक्षित लड़का ताराचंद अपनी मंजिल ढूंढने का प्रयास कर रहा था और इसी प्रयास के शुरुवाती दौर मैं एक बड़े जमींदार परिवार से होने के बावजूद भी सेना मुख्यालय रुड़की के लेखा विभाग मैं नोकरी से अपने कैरियर की शुरुवात की।</div>
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Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6496080402750395688.post-5000694351129425112016-01-29T23:10:00.002-08:002016-01-30T03:40:49.417-08:001- जिंदगी झरोखों से<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
एक आम आदमी की आत्मकथा वास्तव मैं लगभग 90 साल के कालखंड को समेटे हुए एक कथानक है। इसमें एक आम आदमी ने अपने जीवन और उसके जीवन को प्रभावित करने वाली तत्कालीन सामाजिक आर्थिक पारिवारिक और राजनीतिक घटनाओं का ताना बाना बुना है। वास्तव मैं यह एक जिज्ञासु, जागरूक, एवम् बैचेन आम आदमी का अपने अतीत मैं झांकने का तथा वर्तमान तक के सफ़र को समझने का विश्लेषण करने का एक प्रयास है। एक ऐसा आदमी जिसको बचपन से लेकर वर्तमान मैं इस वृद्धावस्था तक कोई स्थिति प्रायोजित नहीं म<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">िली थी। जैसा की भारत जैसे देश मैं एक आम आदमी के साथ होता है जिसमे उसका व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन को निर्धारित एवं नियंत्रित करने वाले घटकों पर उसका कोई बस नहीं होता है इस दशा मैं भी ऐसा ही हुआ। इच्छाएं, सपने और यथार्थ तीन अलग स्थितियां हैं। इन तीनो दशाओं से पार करने मैं जितना व्यक्ति का अपना संघर्ष और प्रयास काम करता है उससे कहीं ज्यादा देश की वर्तमान परिस्थितियां उस पर प्रभाव डालती हैं। यही सब जानने समझने और विश्लेषण करने का प्रयास इस आत्मकथा मैं किया गया है।<br />इस आम आदमी का जन्म सं 1945 मैं तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविन्स वर्तमान मैं उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बहुत ही छोटे से गाँव घिस्सूखेड़ा मैं हुआ लेकिन इस आत्मकथा को प्रभावित करने वाली स्थितियों को वर्णन करने के लिए लगभग 30 साल पुराने अतीत मैं झांकना जरूरी हैI ये गांव हकीकत मैं एक बड़े गाँव जड़ोदा पांडा के माजरा के रूप मैं विकसित हुआ था। लगभग 400 साल पहले कुछ परीवार पशुपालन के उद्देश्य से इस जगह को अपना अस्थायी निवास बनाया जो बाद मैं इस छोटे गाँव के रूप मैं विकसित हुआ और इस गाँव का ये रूप सामने आया लेकिन अबसे लगभग 100 वर्ष पहले ये गाँव कुछ कुछ कबिलियायी संस्कृति पर आधारित कुछ कुटुम्बों का समूह मात्र था। आमतौर पर ये कुटुंब आत्म केंद्रित अपनी अपनी पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए प्रयास तक ही सीमित थे। इनके अपने अपने स्वार्थ थे और कभी कभी उन विरोधाभासी स्वार्थों के कारण अक्सर टकराव भी होते रहते थे। गाँव के समग्र विकास के लिए कोई सामूहिक प्रयास का सोच विकसित नहीं हुआ था। इन्ही अवस्थाओं मैं हर कुटुंब अपने तक सीमित दुसरे कुटुंब के प्रति स्वाभाविक ईर्ष्या का भाव लिए अपने अपने तरीके से जीवन यापन कर रहे थे लेकिन नहीं एक बिंदु ऐसा भी था जिसमें इनकी सामूहिक भागीदारी और एकरसता प्रकट होती थी। वो था धार्मिक एवं कुछ सामाजिक क्रियाकलाप जैसे शादी ब्याह तथा दूसरी पारंपरिक रस्मों को सामूहिक रूप से निभाना निर्वहन करना<br />क्रमशः ©</span></div>
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Amit त्यागीhttp://www.blogger.com/profile/16285586971648823445noreply@blogger.com3