अक्सर हम किसी की ज़िंदगी में बस यूँ ही दर्ज हो जाते हैं —
बिना किसी शोर, बिना किसी औपचारिक शुरुआत के।
जैसे वक्त की किताब का कोई पन्ना,
जो किसी जल्दबाज़ी में पलट तो दिया गया,
पर कभी सचमुच पढ़ा ही नहीं गया।
कुछ रिश्ते होते हैं जो शब्दों से नहीं,
बस कुछ छोटे इत्तेफ़ाक़ों से बन जाते हैं —
एक मुस्कान, एक अधूरी बात,
या किसी शाम का साथ जो अनजाने में खास बन गया।
फिर वक्त धीरे-धीरे उन लम्हों पर धूल बिठा देता है,
और हम समझ नहीं पाते कि वो पल यादें बन गए हैं या खामोशी।
कितनी बातें थीं जो हमने कभी कही नहीं,
शायद कह भी देते तो क्या बदलता?
वो बातें अब वक्त के सफ़र में खोकर
किसी और की यादों का हिस्सा बन गई हैं।
और हम बस रह गए —
उन अनकहे लफ्ज़ों के भार के साथ,
जो अब दिल की गहराइयों में थमे रहते हैं।
कभी-कभी हम किसी की कहानी में ऐसे दर्ज होते हैं,
जैसे कोई ख्वाब —
जो आँखों से ओझल हो जाए,
पर दिल की गहराइयों में साँस लेता रहे।
वो ख्वाब जो खत्म नहीं होता, बस बदल जाता है।
हर याद का अपना एक रास्ता होता है —
कोई मंज़िल नहीं।
पर हम अक्सर उस रास्ते को ही मंज़िल समझ लेते हैं,
और चलते रहते हैं,
जब तक कि एक दिन एहसास न हो जाए
कि हम मंज़िल तक नहीं,
बस अपने ही बीते लम्हों में खो गए हैं।
कभी-कभी ज़िंदगी का यही सबसे सच्चा हिस्सा होता है —
वो जो अधूरा रह गया,
वो जो कहा नहीं गया,
और वो जो बस चुपचाप दर्ज रह गया।