Sunday, December 6, 2020

हरि_इच्छा_बिन_हिले_न_पत्ता

 #हरि_इच्छा_बिन_हिले_न_पत्ता


जीवन में कई बार कुछ ऐसा घटता है जो हमेशा के लिए आपकी सोच को बदल देता है; दिशा बदल देता है। ऐसा ही कुछ मेरे साथ उस दिन हुआ था।


अगर मेरी याददाश्त ठीक है तो वह 20 या 21 मई 2001 का एक खुशनुमा दिन था। मैं, मेरे पिताजी और मेरा छोटा भाई; तीनों बद्रीनाथ धाम पर मंदिर के ठीक सामने खड़े थे। कुछ ही सप्ताह पूर्व मैंने अपनी पहली गाड़ी🚗 (मारुति 800) खरीदी थी और हम लोगों ने गाड़ी खरीदते ही पहाड़ों 🏔️🏔️ पर जाने का प्लान बनाया था।

मेरा बचपन एक ऐसे परिवार 👩‍👩‍👧‍👧में बीता जिसमें महिलाएं बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और इसके उलट पुरुष एकदम नास्तिक। तो बचपन बेहद धार्मिक माहौल में गुज़रा मगर बड़ा होते-होते ईश्वर के अस्तित्व पर संदेह उत्पन्न होने लगा। बाद में एमबीबीएस में चयन के बाद तो मृत शरीरों पर चीरफाड करते हुए मैं लगभग पूरी तरह से नास्तिक हो चुका था। तब मैं ईश्वर, भूत-प्रेत, आत्मा इन सबके अस्तित्व को नकारने लगा था। रात को शर्त लगाकर हम लोग डिसेक्शन हॉल में घुस जाते थे जहाँ पर मृत शरीर टेबल पर चिरनिद्रा में आराम फरमा रहे होते थे। उस वक्त ईश्वरीय स्वरूप को नकारना मेरे लिए आधुनिकता प्रदर्शन और आदतों में शुमार हो चुका था।

सन 2001 में बद्रीनाथ जाने वाला रास्ता, खासकर जोशीमठ से आगे बद्रीनाथ धाम तक बेहद खराब हुआ करता था। जोशीमठ से शुरू होकर बद्रीनाथ धाम तक उस वक्त एक गेट सिस्टम हुआ करता था जिसमें हर 6 घंटे के बाद एक साइड से ट्रैफिक छोड़ा जाता था जबकि दूसरी साइड से ट्रैफिक को बिल्कुल बंद कर दिया जाता था। पूरा रास्ता बहुत खराब, कीचड़ और पत्थरों से भरा था और अक्सर सड़क पर भूस्खलन हुआ करते थे। ऐसे में मारुति 800🚗 से बद्रीनाथ जाना कोई बहुत बुद्धिमानी भरा निर्णय नहीं था। मगर शुरू से ही थोड़ा डेयरिंग रहा हूँ तो बिना किसी दूसरे विचार के हम लोग निकल पड़े थे।

हम लोगों को बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने के बाद #माणा गांव देखते हुए लौटकर गोविंदघाट में एक रात रुक कर अगले दिन #फूलों_की_घाटी 🌿🌱जाना था। इसी कारण हम लोग रात जोशीमठ में रुके और सुबह जब जोशीमठ साइड से गेट खुले तो हम लोग बद्रीनाथ धाम की तरफ चल पड़े थे। रास्ता बहुत खराब था और हम लोग जैसे-तैसे करके बद्रीनाथ धाम तक पहुंचने में सफल हो गए। इस वक्त हम तीनों बद्रीनाथ धाम के मुख्य मंदिर 🛕के सामने खड़े सामने लगी लंबी कतार को देखकर परेशान थे। इसी वजह से यह तय किया कि पहले माणा गांव हो आते हैं और उसके बाद आकर वापसी में दर्शन कर लेंगे। फिर हम मंदिर से माणा गांव की तरफ चल पड़े।

आज ही हमें दर्शनोपरांत गोविंदघाट पहुंचना था जहाँ से अगले दिन हमें #घघरिया के लिए 16 किलोमीटर की ट्रैकिंग 🚶‍♂️🚶‍♂️करनी थी। माणा से लौटते-लौटते हमें लगभग 3:00 बज गये थे। हम एक बार फिर से बद्रीनाथ धाम मंदिर के सामने खड़े होकर पहले से भी अधिक श्रद्धालुओं की कतार को मायूसी से देख रहे थे। दर्शन तो शुरू हो चुके थे मगर श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ गयी थी।

थोड़ा इंतजार करने के बाद
पिताजी ने कहा- “चलो यहीं से मंदिर को प्रणाम करते हैं और गोविंदघाट चलते हैं अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।”

मैंने और मेरे छोटे भाई ने एक दूसरे की तरफ देखा और थोड़ा असमंजस की स्थिति में बोले- “इतनी दूर आने के बाद बिना दर्शन किये जाना ठीक नहीं होगा।”

पिताजी ने कहा- “ईश्वर तो कण-कण में विद्यमान है; जरूरत है उसे पहचानने की।”

फिर लगभग निर्णायक तरीके से बोले- “हम फिर आएंगे, अभी चलते हैं।”

तीनों ने वहीं से मंदिर को प्रणाम 🙏 किया और श्री बद्री विशाल जी से फिर आने का वायदा करके गाड़ी लेकर गोविंदघाट की ओर चल दिए।

मैं थोड़ा निराश था मगर चूंकि आज रात रुकने का इंतजाम गोविंदघाट में था तो जाने को आवश्यक समझते हुए चुप रहा। बद्रीनाथ धाम से लगभग आठ-दस किलोमीटर के बाद बेहद खराब सड़क का टुकड़ा शुरू हो जाता था जो कच्चे पहाड़ होने के कारण भूस्खलन के लिए कुख्यात रहा है। कच्चे पहाड़ों की भुरभुरी ढलानों पर लाखों-करोड़ों छोटे से लेकर विशालकाय पत्थर ऐसे टिके हैं कि लगता है अब गिरे और तब गिरे। हर साल न जाने कितने लोग सड़क के इस हिस्से से गुजरते हुए इन पत्थरों के कारण अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।

हम लोग धीरे-धीरे उस खराब और खतरनाक भाग से गाड़ी निकाल ही रहे थे कि गाड़ी से लगभग 50-60 मीटर आगे गड़-गड़-गड़ की आवाज़ के साथ ऊपर पहाड़ 🏔️से बड़े-बड़े पत्थर नीचे आने लगे। हम लोग एकदम सकते में आ गए। अगर थोड़ा भी आगे होते तो गाड़ी के साथ नदी और घाटी में समा गए होते।

बड़ा डरावना मंजर था। हम लोगों से कुल पचास-सौ मीटर की दूरी पर सड़क पर #य्ये_भारी_भारी पत्थर ऊपर से नीचे लुढ़क कर रास्ते को पूरी तरह से बंद कर चुके थे। गाडी से नीचे उतरे तो टाँगें काँप रही थी।
लगभग तीस मीटर की सड़क पूरी तरह  पत्थरों से ब्लॉक हो चुकी थी। आगे जाने का ज़रा सा भी रास्ता नहीं बचा था। उस वक्त मोबाइल फोन होते नहीं थे तो किसी को सूचना भी नहीं दे सकते थे। थोड़ी देर सकते की हालत में खड़े हम लोग इन बदली हुई परिस्थितियों में आगे की प्लानिंग पर विचार कर रहे थे। आगे जाने का रास्ता तो बंद हो चुका था और गाड़ी को पीछे मोड़ना भी बेहद खतरनाक था। ऊपर से पत्थरों के गाड़ी पर गिरने का डर। कोई और चारा न होने के कारण गाड़ी को इसी स्थिति में लगभग 500 मीटर बैक गियर में डालकर हटाया और किसी तरह मोड़कर हम लोग वापिस बद्रीनाथ धाम की तरफ चल पड़े। कहीं ना कहीं हम तीनों के मन में यह बात बार-बार आ रही थी कि बद्रीधाम आ कर भी दर्शन न कर पाने की वजह से ही ऐसा हुआ है।

वापिस बद्रीनाथ धाम पहुंचकर वहां पुलिस चैक पोस्ट पर इस भूस्खलन और सड़क के बंद होने के बारे में जानकारी दी जिसकी उनको पहले ही दूसरी तरफ से खबर लग चुकी थी। चैक पोस्ट पर ही हमने रात्रि विश्राम के बारे में कुछ व्यवस्था करने की गुजारिश की। उन दिनों बदरीनाथ धाम में रहने की बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं हुआ करती थी। सिर्फ कुछ धर्मशालाएं ही रहने का एकमात्र ऑप्शन थी इसलिए हमने उन्हीं में से एक धर्मशाला में रात्रि विश्राम के लिए कमरा बुक कर लिया। हमें यह बताया गया कि कल दोपहर बाद तक ही रास्ता साफ हो पायेगा। तो अब हमारे पास भरपूर वक्त था। इसको ईश्वरीय इच्छा मानते हुए पापा ने हम लोगों से अगले दिन सुबह की आरती में सम्मिलित होने के लिए बोला। फिर दिन भर के थके हुए होने के कारण हल्का-फुल्का खाकर हम लोग सो गए।

आज भी जब मैं इस यात्रा के बारे में कभी विचार करता हूँ तो यह सोचकर ही सिहर उठता हूँ कि क्या कोई ऐसा दूसरा भी होगा जो बद्रीनाथ धाम जाकर भी श्रीहरि के दर्शन किए बिना वहां से वापस आ जाए। खैर उन दिनों विचार शृंखला ऐसी ही हुआ करती थी।

अगले दिन सुबह 4:30 बजे उठ कर मैं और भाई दोनों श्री बद्रीनारायण जी के मंदिर🛕 में पहुंच गए। गर्भगृह में उस वक्त हमारे अलावा सिर्फ दो-तीन ही और लोग थे। थोड़ी ही देर में आरती शुरू होने वाली थी। बड़ा ही आध्यात्मिक, दिव्य और अलौकिक वातावरण था। मैं भी अभिभूत था और श्रद्धा और भक्ति के इस माहौल में मेरी आँखें बंद होने लगी थी। पूजा खत्म होने के बाद भी मैं आंखे बंद किये खोया हुआ था कि किसी का हाथ मुझे अपने सर पर महसूस हुआ। आँखें खोली तो सामने मुख्य पुजारी जी आरती की थाली लिए खड़े थे। मुझे लगा; धीमे से उनके मुंह से आवाज़ निकली कि भगवान से मिलने आये थे और बिना दर्शन के जा रहे थे। श्री बद्रीनारायण का आशीर्वाद तेरे ऊपर है और उन्होंने ही तुझे यहाँ दर्शन के लिए वापिस बुलाया है। 
मैं भौंचक सा खड़ा था और वो मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। मैंने जिंदगी में पहली बार किसी को साष्टांग प्रणाम किया होगा। पुजारी जी ने आशीर्वाद के साथ पूजा का प्रसाद भी दिया।

मेरे जीवन की यही वो घटना थी जिसके कारण मैं नास्तिकता से आस्तिकता की तरफ मुड़ा, जब मैंने भगवान के अस्तित्व को बचपन के बाद पुनः स्वीकार किया। ईश्वरीय शक्ति पर मेरी श्रद्धा तभी से अटूट हो गयी। उसके बाद 2001 से लेकर अभी तक कई बार बद्रीनाथ धाम जा चुका हूँ और हर बार जाकर #मेरे_आराध्य से अपनी उस भूल की क्षमा मांगता हूँ। 

अगले दिन 2:00 बजे के आसपास बद्रीनाथ धाम से वाहनों 🚕🚙को जोशीमठ की तरफ रवाना किया गया और हम लोग उस दिन गोविंदघाट पहुंचकर रात्रि विश्राम किए और अगले दिन घघरिया की तरफ अगले पड़ाव की ओर चल पड़े। 


अस्तु मैं खुद को ऐसा व्यक्ति मानता हूँ जिसे उसकी यात्राओं की वजह से ईश्वरीय शक्ति में विश्वास हुआ और तब से लेकर आज तक की अपनी हर यात्रा में मैं ईश्वरीय स्वरूप को अनुभव करता हूँ।


-डॉ. अमित त्यागी