प्रान्त के पुलिस मुख्यालय इलाहबाद के पुलिस चीफ ने खुद वायरलेस पर व्यक्तिगत संपर्क करके इन्स्पेक्टर ताराचंद व् पूरी पुलिस टीम को इस साहसिक अभियान की सफलता के लिए बहुत सराहा। विशेषतौर से युवा अधिकारी के साहस व् कुशल रणनीति की भूरी भूरी प्रशंशा की। पुलिस चीफ ने यह भी बताया की वो जल्द ही इस साहसिक सफलता के लिए युवा अधिकारी के लिए पुलिस का तत्कालीन सर्वोच्च सम्मान "भारतीय पुलिस पदक" के लिए गवर्नर को प्रस्ताव भेजेंगे। पुलिस कप्तान माइकल तथा झाँसी के जिला कलेक्टर मिस्टर स्मिथ ने भी व्यक्तिगत रूप से इस सफलता को सराहा और प्रसंशा की। झाँसी के तत्कालीन मेयर ने भी बड़े आग्रह पूर्वक एक नागरिक अभिनन्दन समारोह का आयोजन किया जिसमें मेयर व् अन्य गणमान्य नागरिकों ने इस सफलता के लिए इन्स्पेक्टर ताराचंद व् पूरी पुलिस टीम की हार्दिक प्रसंशा की और सम्मानित किया।
इसी प्रसंशा की कड़ी में १०-१२ दिन बाद मानवीय चरित्र का एक बहुत ही उत्कर्ष एवं संवेदनशील पहलु सामने आया। साहूकार देवीप्रसाद अपने दो तीन नौकरों के साथ उपहार, मिठाई एवं फल इत्यादि लेकर थाने में आये तथा इन्स्पेक्टर ताराचंद से पुलिसकर्मियों के लिए स्वीकार करने का आग्रह किया। इन्स्पेक्टर ताराचंद ने हँसते हुए देवीप्रसाद का कुशल क्षेम पूछा और उसके व् उसके परिजनों की चोटों के विषय में जानकारी ली।
इन्स्पेक्टर ने देवीप्रसाद की भावनाओं का ख्याल रखते हुए कहा " ठीक है आपकी भावनाओं का आदर करते हुए ये मिठाई आदि तुम्हारी बधाई के रूप में पुलिस कर्मियों में बाटने के लिए कह दूंगा मगर ये उपहार में स्वीकार नहीं कर सकता अतः इनको आप ले जाइए।"
देवीपसाद ने बार बार हाथ जोड़कर धन्यवाद किया और बेहद भावविह्ल होकर कहा " साहब मेरा ये जीवन आज आपकी देन है, यदि उस दिन देवदूत बनकर आप व् आपकी पुलिस टीम ने डाँकूओ से मेरी व् मेरे परिवार की रक्षा न की होती तो न ही आज मेरा ये जीवन होता और न ही मेरा कमाया धन। मुझे आज यह अहसास हो रहा है की अनेक लोगों को सताकर सूद से कमाया मेरा धन निरर्थक था और डाँकूओ से मेरी रक्षा नहीं कर सकता था।"
इन्स्पेक्टर ताराचंद बड़े गौर से उसके चेहरे के भाव पढ़ रहे थे मगर उसका आशय नहीं समझ पा रहे थे। कुछ देर की चुप्पी के बाद साहूकार देवीप्रसाद ने हाथ जोड़कर फिर से निवेदन किया "असल में इस धन पर अब मेरा कोई हक़ नहीं है और न ही कोई मोह बाकी है। मैं इस धन का बड़ा भाग मेरी व् मेरे परिवार की जीवन रक्षा करने वाले बहादुर पुलिस कर्मियों को उपहार स्वरूप देना चाहता हूँ।"
इन्स्पेक्टर ताराचंद ने कुछ अचरज भरी निगाहों से देखते हुए देवीप्रसाद को कहा " देखिये देवीप्रसाद जी हमने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है, इसके लिए किसी किस्म के पुरस्कार लेने का कोई औचित्य नहीं है। मैं आपकी भावना की कद्र करता हूँ, लेकिन इस धन को पुरस्कार स्वरुप स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस धन का उपयोग तुम अन्य जन कल्याणकारी व् धार्मिक कार्यों के लिए कर सकते हो। जिले में एक पुलिस कल्याणकारी कोष होता है जिसका उपयोग जरुरत के अनुसार पुलिस कर्मियों की सहायता के लिए किया जाता है। मैं अपने पुलिस कप्तान मिस्टर माइकल से बात करूँगा, यदि संभव हुआ तो तुम अपने धन का कुछ अंश जिले के इस कल्याणकारी कोष को दे सकते हो।
देवीप्रसाद ने बड़े कृतज्ञता के भाव से कहा "आप कप्तान साहब से बात करके ऐसा प्रबंध करा दें, मैं बहुत अहसानमंद रहूँगा।"
थोड़ी देर के बाद देवीप्रसाद इजाजत लेकर चले गए।
इसके बाद के छह सात महीने इन्स्पेक्टर ताराचंद के लिए बेहद कामयाबी के रहे। एक के बाद एक कई अपराधों का खुलासा करने में सफलता हासिल हुयी। इन्स्पेक्टर ताराचंद को अपने विभागीय अधिकारीयों का सहयोग व् प्रशंशा मिलती रही। सामान्य नागरिकों के बीच भी युवा अधिकारी बेहद लोकप्रिय हो गए थे। एक दिन पुलिस कप्तान माइकल ने ताराचंद को बताया कि "पुलिस मुख्यालय से तुमको भारतीय पुलिस पदक व् आउट ऑफ़ टर्न विभागीय प्रमोशन देने का प्रस्ताव गवर्नर की कार्यकारी परिषद को भेजा गया है। संभव है कार्यकारी परिषद की अगली बैठक में ही इस पर निर्णय ले लिया जाये।"
झाँसी एक ऐतिहासिक शहर है, भारतीय इतिहास में झाँसी का बहुत ही गौरवशाली स्थान है। १८५७ में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में यहाँ के वीरों और विशेषकर झाँसी की रानी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। देश प्रेम व् अपनी आन बान की रक्षा के लिए यहाँ के वीरों व् झाँसी की रानी के द्वारा त्याग, वीरता और बलिदान की अद्वितीय मिसाल स्थापित की। बाद के वर्षों में इस शौर्य व् बलिदान की मिसाल ने भारत की आजादी के लिए लड़ रहे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को बेहद प्रेरित किया। यहाँ का प्राकर्तिक वातावरण व् परिवेश बेहद रमणीक था। इस क्षेत्र के चप्पे चप्पे पर भारतीय इतिहास के गौरवशाली स्मृतिचिन्ह फैले हुए थे। यहाँ की आबो हवा तथा वातावरण में त्याग व् बलिदान की खुशबु व्याप्त थी। यह बहुत संभव है कि यहाँ के वातावरण व् परिस्थितयों ने युवा इंस्पेक्टर ताराचंद को भी प्रेरणा प्रदान की हो जिस कारण वो अल्प समय में ही अनेक साहसिक उपलब्धियां प्राप्त कर पाये।
किसी व्यक्ति के जीवन में किस्मत का भी एक बड़ा हाथ होता है, लेकिन चरित्र, ईमानदारी व् कर्तव्यनिष्ठा भी बेहद महत्वपूर्ण घटक हैं जो इंसान को उंचाईओं पर लेकर जाते हैं। इंस्पेक्टर ताराचंद ने इस तथ्य को भली भांति समझा तथा इसे अपना जीवन मन्त्र बनाने का भरसक प्रयास किया।
एक दिन कप्तान माइकल अपने दौरे के दौरान निरीक्षण के लिए थाने में आये। इंस्पेक्टर ताराचंद ने उनका स्वागत किया तथा थाने का रोजनामचा आदि अभिलेख निरीक्षण के लिए प्रस्तुत किये। इंस्पेक्टर ताराचंद किसी भी किस्म की शंका के निवारण के लिए कप्तान के साथ ही बैठ गए। कप्तान माइकल बहुत देर तक थाने के अभिलेखों का निरिक्षण करते रहे तथा बीच बीच में प्रसंशात्मक नजरों से ताराचंद की और देखते रहे।
निरीक्षण पूरा करने के बाद बड़े ही प्रशंशा के भाव से इंस्पेक्टर की देखा और कहा " वेरी गुड, मैंने अपनी सर्विस के बीस सालों के दौरान अनगिनत थानों का निरीक्षण किया लेकिन जिस प्रकार तुमने अपराध तक पहुंचने, उसका अनुसंधान करने व् अपराधी को कानून के शिकंजे में कसने का कार्य किया है वो मुझे इससे पहले कहीं और देखने को नहीं मिला। यह भी बहुत बड़ी बात है की तुम अपनी ड्यूटी को पूरा करने में, अपने स्टाफ को प्रेरित करने में और उनका सहयोग लेने में सफल रहे हो।" इंस्पेक्टर ताराचंद ने कप्तान का धन्यवाद किया तथा आगे के लिए और निर्देश देने की प्रार्थना की।
इंस्पेक्टर ताराचंद ने पुनः पुलिस कप्तान का धन्यवाद किया और कहा " आपकी मुझ पर बड़ी कृपा रही है, मैं जो कुछ कर पाया हूँ उसमें आपके निर्देशों व् हौसलाअफजाई का बहुत बड़ा हाथ है।" थोड़ी देर और रूककर पुलिस कप्तान अपने दौरे के अगले पड़ाव की और निकल गए
आज स्कुलो में ऐसे लेख बच्चो को पढने को मिलें तों भविष्य में अच्छे कृतव्य निष्ठ नागरीक देश को मिल सकते है
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसुखद ...इंतजार हैं आगे की कहानी का ..
ReplyDeleteSerious efforts and sincere dedication always pays.. Superb!
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