Friday, January 29, 2016

3‬-प्रथम विश्व युद्ध


एक ऊर्जावान कर्मठ अनुशाषित 18 वर्ष का युवक जिसके अंदर एक जमीदार परिवार से हटकर कुछ करने और अपनी पहचान बनाने के सपने पल रहे थे मगर पारिवारिक पृष्ठभूमि व् एक छोटे से गाँव मैं जन्म लेने के कारण कोई स्पष्ट एवं सीधा मार्ग सामने नहीं था। अपनी मेहनत और हौसले के सहारे ही एक एक कदम आगे बढ़ना था और मंजिल पानी थी। इस समय तक महात्मा गांधी के नेतृत्व मैं कांग्रेस द्वारा संचालित देश को आजाद कराने का आंदोलन सक्रिय हो चुका था। राजनीतिक चेतना का विस्तार धीरे धीरे पूरे देश मैं होने लगा और देश को ब्रिटिश गुलामी से मुक्त कराने की बैचेनी बढ़ती जा रही थी किन्तु साहसी व् कर्मठ युवक ताराचंद पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा आंदोलन का संक्रमण काल होने के कारण इस दिशा मैं सक्रिय होने से वंचित रह गया। बहुत जल्द ही युवक ने अपनी दक्षता, कार्यक्षमता और ईमानदारी जैसे गुणों के कारण अपने अधिकारीयों का मन मोह लिया।
सन् 1918 आते आते प्रथम विश्व युद्ध का अंत हो गया तथा विजेता राष्ट्रों का दृष्टिकोण एवं संकुचित सोच दूसरे विश्वयुद्ध की भूमिका रखने लगा। विजेता राष्ट्र अमेरिका और इंग्लैंड आदि ने हारे हुए राष्ट्रों जर्मनी और जापान के ऊपर अपनी मनमानी अहंकारी और अपमानजनक शर्तें थोपी जिनको मजबूरी मैं हारे हुए राष्ट्रों को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन ये अपमानजनक सन्धियां विशेषकर जापान और जर्मनी आदि देशों ने भले ही स्वीकार कर ली हों लेकिन इस अपमान की आग अंदर ही अंदर सुलगती रही। इसके कारण बाद चलकर फासीवाद व् नाजीवाद का उदय हुआ और हिटलर व् मुसोलिनी जैसे तानाशाहों ने इस अपमान का बदला लेने के लिए विश्व को दूसरे विश्वयुद्ध की आग मैं झोंक दिया।
इसी दौरान 1917 मैं विश्व के राजनीतिक पटल पर एक और बहुत बड़ी घटना हुयी। रूस मैं लेनिन के नेतृत्व मैं कम्युनिष्ट क्रांति हो गई जिसका विश्व पर व्यापक असर हुआ। भारत भी इसके असर से अछूता नहीं रहा। भारत मैं विशेषकर युवा इस क्रांति से प्रेरित व् बेहद उत्साहित हुए और उनमें देश को आजाद कराने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुयी। चंद्र शेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे महान शहीदों ने ब्रिटिश साम्रज्य को खुली चुनौती दी जिसके कारण भारत को लंबे समय तक गुलाम बना कर रखना ब्रिटिश शाशन के लिए मुश्किल हो गया। यद्यपि ये महान क्रन्तिकारी देश को पूरी तरह आजाद तो नहीं करा पाये लेकिन इन महान शहीदों ने अपना बलिदान देकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।
उधर रूस की क्रांति तथा मित्र राष्ट्रों की जीत के बाद विश्व मैं नए राजनीतिक समीकरण बनने शुरू हुए। रूस मैं सम्पूर्ण कम्युनिस्ट क्रांति के बाद उसके विरोध मैं प्रतिक्रांति का दौर शुरू हुआ। दोनों विचारधाराओं के टकराव से लंबे समय तक रूस मैं अशांति और दमन का दौर चला। लेनिन जैसा सक्षम नैतिक व् महान नेता भी इस टकराव से उत्पन्न हिंसा बुराईयों और दमन को पूरी तरह से नहीं रोक पाया। इन सब घटनाओं के रूस तथा विश्व मैं व्यापक एवं दूरगामी असर हुए और इन्ही परिस्थितयों ने स्टालिन जैसे तानाशाह को जन्म दिया। इसके बाद पूरा विश्व मौटे तौर पर साम्राज्यवादी और कम्युनिस्ट विचारधाराओं का अखाडा बन गया था। लंबे समय तक विश्व शीत युद्ध के साये मैं रहा।
उपरोक्त आवश्यक विषयांतर के पश्चात् अब फिर से इस कथानक के मूल स्वरुप पर आते हैं
क्रमशः

2 comments:

  1. बहुत बेहतरीन सर

    ReplyDelete
  2. अमित लेख को फाइनल क्लिक करने से पहले एक दो बार ध्यान से पड़ लिया करो, जेसे कि छोटी सी गलती 1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति हुई थी जो आपने गलती से द्वितया विश्व युद्ध लिख दिया, बाकि ओवर आल गागर में सागर भरने का एक अच्छा प्रयास....

    ReplyDelete