Friday, January 29, 2016

1- जिंदगी झरोखों से


एक आम आदमी की आत्मकथा वास्तव मैं लगभग 90 साल के कालखंड को समेटे हुए एक कथानक है। इसमें एक आम आदमी ने अपने जीवन और उसके जीवन को प्रभावित करने वाली तत्कालीन सामाजिक आर्थिक पारिवारिक और राजनीतिक घटनाओं का ताना बाना बुना है। वास्तव मैं यह एक जिज्ञासु, जागरूक, एवम् बैचेन आम आदमी का अपने अतीत मैं झांकने का तथा वर्तमान तक के सफ़र को समझने का विश्लेषण करने का एक प्रयास है। एक ऐसा आदमी जिसको बचपन से लेकर वर्तमान मैं इस वृद्धावस्था तक कोई स्थिति प्रायोजित नहीं मिली थी। जैसा की भारत जैसे देश मैं एक आम आदमी के साथ होता है जिसमे उसका व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन को निर्धारित एवं नियंत्रित करने वाले घटकों पर उसका कोई बस नहीं होता है इस दशा मैं भी ऐसा ही हुआ। इच्छाएं, सपने और यथार्थ तीन अलग स्थितियां हैं। इन तीनो दशाओं से पार करने मैं जितना व्यक्ति का अपना संघर्ष और प्रयास काम करता है उससे कहीं ज्यादा देश की वर्तमान परिस्थितियां उस पर प्रभाव डालती हैं। यही सब जानने समझने और विश्लेषण करने का प्रयास इस आत्मकथा मैं किया गया है।
इस आम आदमी का जन्म सं 1945 मैं तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविन्स वर्तमान मैं उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बहुत ही छोटे से गाँव घिस्सूखेड़ा मैं हुआ लेकिन इस आत्मकथा को प्रभावित करने वाली स्थितियों को वर्णन करने के लिए लगभग 30 साल पुराने अतीत मैं झांकना जरूरी हैI ये गांव हकीकत मैं एक बड़े गाँव जड़ोदा पांडा के माजरा के रूप मैं विकसित हुआ था। लगभग 400 साल पहले कुछ परीवार पशुपालन के उद्देश्य से इस जगह को अपना अस्थायी निवास बनाया जो बाद मैं इस छोटे गाँव के रूप मैं विकसित हुआ और इस गाँव का ये रूप सामने आया लेकिन अबसे लगभग 100 वर्ष पहले ये गाँव कुछ कुछ कबिलियायी संस्कृति पर आधारित कुछ कुटुम्बों का समूह मात्र था। आमतौर पर ये कुटुंब आत्म केंद्रित अपनी अपनी पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए प्रयास तक ही सीमित थे। इनके अपने अपने स्वार्थ थे और कभी कभी उन विरोधाभासी स्वार्थों के कारण अक्सर टकराव भी होते रहते थे। गाँव के समग्र विकास के लिए कोई सामूहिक प्रयास का सोच विकसित नहीं हुआ था। इन्ही अवस्थाओं मैं हर कुटुंब अपने तक सीमित दुसरे कुटुंब के प्रति स्वाभाविक ईर्ष्या का भाव लिए अपने अपने तरीके से जीवन यापन कर रहे थे लेकिन नहीं एक बिंदु ऐसा भी था जिसमें इनकी सामूहिक भागीदारी और एकरसता प्रकट होती थी। वो था धार्मिक एवं कुछ सामाजिक क्रियाकलाप जैसे शादी ब्याह तथा दूसरी पारंपरिक रस्मों को सामूहिक रूप से निभाना निर्वहन करना
क्रमशः ©

3 comments:

  1. बधाई व शुभकामनाऐं इस नये ब्लौग के लिये । लेखन जारी रहे। बढ़िया पोस्ट के लिये पुन: बधाई ।

    ReplyDelete