Monday, February 1, 2016

6-असह्योग आंदोलन


गांधीजी  के नेतृत्व  में  प्रथम असहयोग  आंदोलन का प्रसार तेजी से भारत के सुदूर ग्रामीण  आंचलो तक हो रहा था। शुरु में ब्रिटिश  शाशन  के दिल्ली  में बैठे वायसराय आदि ने आन्दोलन की तीव्रता , भारतीय  जनमानस व् राजनीति   पर इसके  प्रभाव, आमजन की इसमें भागीदारी को बहुत कमतर  करके आंका। वो भारतीय आमजन मैं छिपी आत्मशक्ति व् बलिदान की भावना को नहीं पहचान पाये। शुरू मैं सोचा गया की पुलिस बल व् अन्य बलो के द्वारा दमन चक्र चलाकर बहुत जल्द इस आंदोलन को हमेशा के लिए दबा दिया जायेगा तथा इसका प्रभाव समाज व् राजनीति पर बहुत अल्पकालीन होगा । अतः इस दमन चक्र में पुलिस व् सिविल प्रशाशन का बहुत भौंडे तरीके से दुरूपयोग किया गया।

      इससे पहले भारतीय जनमानस में ब्रिटिश शाशन व् इसके  अधिकारियो की छवि ईमानदार, न्यायप्रिय, मानवीय व् अनुशाशांप्रिय के रूप थी। ग्रामीण आँचल के जनमानस में पुलिस का इकबाल कायम था आमजन समझता था की पुलिस उसकी रक्षक है तथा अपराध का ईमानदार खुलासा करके अपराधी को सजा दिलाना व् अपराध मुक्त समाज बनाना उसका लक्षय है।  इसके विपरीत आंदोलन में सक्रीय भागीदारी के दौरान आम आदमी ने देखा कि पुलिस बल शाशन के हाथ में दमन का प्रबल व् भौंडा हथियार बनकर रह गया है। ये भी देखा की की अपने आकाओं के इशारे पर किसी सही उद्देश्य से चलाये जा रहे जन आंदोलन का दमन करने में वह अपराधियों को भी पीछे छोड़ सकती है। इस अनुभव व् अहसास ने जनचेतना को झकझोर दिया तथा ब्रिटिश शाशन व् प्रशाशन की दीर्घ काल से बनी छवि को धूमिल कर दिया।

        आंदोलन का प्रसार व् चेतना अब शहरों तक सीमित न होकर सुदूर ग्रामीण आंचलो में भी फ़ैल गयी। आमजन को भी अब ब्रिटिश शाशन अन्यायपूर्ण, स्वार्थी, व् अनुचित लगने लगा। आजादी की चाहत निरंतर बलवती होने लगी। देश  की आजादी के लिए बड़ी से बड़ी क़ुरबानी देने का जज्बा पैदा होने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे सदियों से सोयी भारत की आत्मा जाग उठी है।

       ऐसे समय में किसी भी जागरूक व् चिंतनशील देशवासी का इस आंदोलन से निरपेक्ष रहना मुश्किल था। युवा  पुलिस अधिकारी ताराचंद के मन में भी इस समय एक ओर अपनी पुलिस की नौकरी तथा दूसरी ओर देश के प्रति अपने फर्ज को लेकर द्वंद् चल रहा था। कई बार मन में आया की मैं भी ये नौकरी छोड़ कर स्वतंत्रता प्राप्ति के इस महायज्ञ में अपना योगदान दूँ, लेकिन नियति ने भविष्य में युवक के जीवन की दिशा पहले ही निर्धारित कर रखी थी।



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