लालकुर्ती थाना मेरठ शहर का एक महत्वपूर्ण थांना था I इसके अंतर्गत शहर के कई सघन आबादी वाले तथा व्यावसायिक क्षेत्र आते थे I थाने में थाना अध्यक्ष के अतिरिक्त दो अफसर दोयम तथा २०-२५ अधीनस्थ जैसे सिपाही, दीवान व् मुंशी आदि होते थे I युवक अधिकारी की नियुक्ति थाने मैं दूसरे नंबर के अफसर दोयम के रूप में हुई I नए मेहमान का स्वागत थाने के अधिकारियो व् स्टाफ ने उत्साह के साथ किया I आकर्षक व्यक्तित्व के खानदानी युवक का पहला प्रभाव सकारात्मक रहा। शुरू के दौर में युवक की कर्तव्यपरायणता जोश व् ईमानदारी ने विभाग तथा संपर्क मैं आने वाले आम लोगों पर बड़ा अच्छा प्रभाव डाला। उस समय पुलिस थानों में जीप या मोटरसाइकिल उपलब्ध नहीं होती थी। अधिकारीयों के पास घोड़े होते थे तथा उन्ही पर वो गश्त व् अन्य कार्यों के लिए उपयोग करते थे। अपनी सेना की नौकरी के कार्यकाल मैं युवक अधिकारी ने घुड़सवारी मैं महारत हासिल कर ली थी। इसने भी विभागीय अधिकारीयों को बहुत प्रभावित किया।
विवाह के प्रस्ताव
शीघ्र ही युवक की चर्चा मेरठ मुजफ्फरनगर व् सहारनपुर जिलों की त्यागी बिरादरी में एक खानदानी व् होनहार युवक के रूप मैं होने लगी। गांव मैं युवक के परिवार के पास शादी के लिए अनेक प्रस्ताव पहुँचने लगे। अंततः मेरठ जिले के माछरा गांव के एक बड़े व् खानदानी जमींदार चौधरी अनूप सिंह की बड़ी कन्या से विवाह तय हो गया। चौधरी अनूप सिंह के केवल दो बेटियां थी। कुछ ही माह के बाद बड़ी धूम धाम के साथ विवाह संपन्न हो गया तथा युवक अधिकारी के जीवन में एक नयी पारिवारिक जिम्मेदारी का सूत्रपात हो गया।
ईमानदारी एक समस्या भी
पुलिस विभाग मैं युवक अधिकारी का प्रारंभिक दौर ठीक ठाक चल रहा था तथा सराहा भी जा रहा था। किन्तु युवक की कर्तव्य परायणता तथा ईमानदारी के प्रति अतिरिक्त आग्रह कुछ समस्याएं भी पैदा कर रहा था। ईमानदारी व्यक्तिगत होती है। ये संक्रामक नहीं होती। किन्तु मजबूरीवश ही सही किसी भी परिस्थिति मैं ईमानदारी का विरोधी स्वर संक्रामक होने लगता है। विभाग मैं अनेक प्रशंशनीय कार्य करने के बावजूद भी कभी कभी युवक अधिकारी के सामने असहज स्थिति उत्पन्न हो जाती थी। भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी हमेशा आदतन नहीं होती कभी कभी इसके पीछे पारिस्थितिक मजबूरियां भी होती है और इस मजबूरी को उत्पन्न करने मैं तत्कालीन व्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ होता है। कई बार अपराधिक केस की जांच के दौरान युवक अधिकारी के सामने ऊपर का दबाव या स्थानीय दलालों द्वारा उत्पन्न की गयी स्थिति जांच मैं गतिरोध पैदा करती थी। कभी कभी अधीनस्थ स्टाफ के बीच से भी विरोध के स्वर उठ जाते थे। मगर उन्होंने अपनी सेवा के शुरूवाती दौर मैं इन सभी परिस्थितियों का बड़ी हिम्मत व् समझदारी से मुकाबला किया तथा अपने को एक बेहतरीन व् कामयाब अधिकारी के रूप मैं स्थापित करने मैं कामयाब हुए। और लालकुर्ती थाने मैं अपने दो साल सफलतापूर्वक पूरे किये।
ये वर्ष १९२१ का शुरुवाती समय था। देश के अंदर राजनीतिक हलचलें अपने चरम पर थी। महात्मा गांधी का व्यक्तित्व अपनी बुलंदी पर था। भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस भारत को आजाद कराने के अपने मिशन में बहुत तीव्रता से आगे बढ़ रही थी। कांग्रेस के समानांतर क्रांतिकारी गतिविधियाँ भी काफी तेज हो रही थी। तथा देश को आजाद कराने के महायज्ञ में अपनी आहुति देकर बड़ा योगदान कर रही थी। इस समय तक भारतीय पुलिस अंग्रेज शाषण के आधीन इस स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए एक दमनकारी औजार के रूप में होने लगी थी। इस अवस्था ने एक हद तक पुलिस विभाग को अपने मूल उद्देश्य से भटकाना शुरू कर दिया था तथा इसका प्रभाव पुलिस कर्मियों के चरित्र एवं कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगा था।
सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeletekeep maintain d spirit amit....
ReplyDeleteVery Nice... Keep up the good work!
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