Wednesday, February 3, 2016

8-एक बड़ी सफलता

एक बड़ी सफलता 
ताराचंद के इस प्रयास, रणनीति  के क्रियान्वन व् परीक्षा की घडी शीघ्र ही आ गयी। ये सन १९२३ के दिसंबर माह की एक सर्द सुबह थी। ताराचंद थाने के आवश्यक कार्यों में व्यस्त थे तभी एक मुखबिर कयूम थाने में आया तथा अकेले में बात करने का अनुरोध किया। मुखबिर ने सूचना दी कि मेरे सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि  थाने से लगभग ८ मील दूर देवपुरा गांव में डाकू मुस्तकीम का गिरोह साहूकार देवीप्रसाद के यहाँ डाका डालने वाला  है। देवीप्रसाद बड़े साहूकार हैं तथा लेन  देन  का भी कारोबार करते हैं। मुखबिर ने बताया कि यह एक बड़ा डाकू गिरोह है तथा इसमें लगभग १५ से २० डाकू शामिल हैं। इसके पास काफी मात्रा में असलहे व् हथियार हैं। मुखबिर ने ये भी बताया कि गिरोह की गांव में किस दिशा से प्रवेश की सम्भावना है। मुखबिर के अनुसार डकैती को अंजाम देने का समय रात लगभग ११ बजे से लेकर २ बजे के बीच हो सकता है। अधिकारी ने मुखबिर को धन्यवाद देते हुए शाम तक अपने सूत्रों से कुछ और जानकारियां प्राप्त करने का निर्देश दिया। युवा अधिकारी को मुस्तकीम गिरोह की सक्रियता की पूर्ण जानकारी थी लेकिन अरसे से इस गिरोह ने कोई वारदात नहीं की थी। 

           मुखबिर विश्वसनीय व् पुराना था तथा उसकी सूचना पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं था।अधिकारी ने बिना समय गंवाए गोपनीय तरीके से जिला मुख्यालय से संपर्क किया, पुलिस कप्तान को स्थिति से अवगत कराया तथा आवश्यक निर्देश प्राप्त किये। पुलिस कप्तान ने शाम से पहले थाने को कुछ अतिरिक्त पुलिस बल व् हथियार उपलब्ध करा दिए। अधिकारी ताराचंद ने यह सब कुछ हो जाने के बाद थाने के पूरे स्टाफ को रात को किये जाने वाले ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी और रात को ८ बजे से पहले पूरी तरह ऑपरेशन के लिए तैयार होने के सख्त निर्देश दिए। शाम को ६ बजे तक मुखबिर ने भी थाने में आकर अपनी पूर्व सूचना की पुष्टि की तथा कुछ नयी जानकारियां भी प्रदान की। 

            युवा अधिकारी का दिमाग अपनी रणनीति पर तेजी से काम कर रहा था। शाम ८ बजने तक लगभग ३५ हथियार बंद पुलिस कर्मियों का एक दल इस अभियान के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया। मुखबिर को भी साथ जाना था। ९ बजे रात चलने का समय तय हुआ। अभियान में प्रयोग होने वाली कूटभाषा, संकेत व् सिग्नल पहले ही तय हो चुके थे। ताराचंद ने एक बार पुनः जिला मुख्यालय पर पुलिस कप्तान माइकल को अभियान की पूरी तैयारी के विषय में बताया तथा और आवश्यक दिशा निर्देश प्राप्त किये। कप्तान माइकल ने बड़ी भरोसेमंद आवाज के साथ कहा 
   "मुझे तुम पर पूरा विश्वास है आगे बढ़ो तथा अभियान की समाप्ति तक वायरलेस पर संपर्क बनाये रखो।"

               नियत समय पर पुलिस बल एक बड़े पुलिस वाहन में रवाना हुआ। इंस्पेक्टर ताराचंद का सख्त निर्देश था की सभी हथियार लोडेड रखे जाएँ तथा प्रत्येक पुलिसकर्मी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए हरवक्त तैयार रहे। उस समय गांव को जोड़ने वाले रास्ते कच्चे व् उबड़ खाबड़ हुआ करते थे और आमतौर पर घोडा या बैलगाड़ी ही उन पर यातायात के मुख्य साधन थे। लेकिन बड़े पुलिस वाहन को इस रास्ते पर कोई विशेष परेशानी नहीं हो रही थी। 


             लगभग १० बजे रात पुलिस बल गांव के करीब पहुँच गया,  गाँव से कुछ सौ मीटर पहले ही पुलिस वाहन को मुख्य सड़क से हटाकर रोक दिया गया। और गांव से कुछ पहले ही पुलिस बल पूरी तरह से मुस्तैद होकर पोजीशन पर बैठ गए। चारों तरफ घोर अँधेरा व् सन्नाटा था। कभी कभी सियार या किसी अन्य जंगली जानवर के बोलने की आवाज निस्तभ्धता को तोड़ देती थी। इसी बीच गांव के लगभग मध्य से किसी मकान की छत से सर्च लाइट की तेज रोशनी दिखाई दी। ये संयोग पुलिस बल के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ, इससे यह लगभग तय था की डाँकू मकान के अंदर दाखिल हो चुके हैं तथा पुलिस की उपस्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। मुखबिर की सूचना पूरी तरह सही और सटीक थी। 

             तय  रणनीति के अनुसार पुलिस बल को कई  टुकड़ियों में बांटकर बिना आवाज किये लोकेशन की तरफ बढ़ने तथा योजनानुसार  घेरा बंदी करने का आदेश दिया गया। किस टुकड़ी को कब हथियारों का इस्तेमाल करना है, दूसरी टुकड़ी को किस तरह उनको कवरेज देना है इसके विषय में टीम लीडर ताराचंद को वक्त वक्त पर आवश्यक निर्देश देने थे। हर निर्देश व् उसके जवाब की कूट भाषा पहले से ही तय थी। १५-२० मिनट तक पुलिस बल बिना आवाज किये तय व्यूह रचना के अनुसार आगे बढ़ता रहा। अब तक ये निश्चित हो गया था की डाँकू घर में प्रवेश ले चुके हैं। मकान  से लगभग ५०- ६० गज पहले बिना किसी आवाज के घेरा बंदी करके मोर्चा संभाल लिया गया। 

                तभी अचानक मकान से चिल्लाने की आवाज आई और फिर छत से सर्च लाइट का प्रकाश दिखाई दिया। तुरंत प्रकाश व् उसकी स्थिति का अनुमान करके एक टुकड़ी को फायर खोलने का संकेत दिया गया। ये स्थिति शायद डाँकूओ के अनुमान से शायद बहुत दूर रही होगी लेकिन एक दो मिनट की चुप्पी के बाद ही डाँकूओ की तरफ से पुलिस टुकड़ी की दिशा में कई फायर किये गए लेकिन वो शायद ये अनुमान नहीं लगा पाये कि पुलिस बल कई टुकड़ियों में बंटा हुआ है। चारों तरफ से हो रही फायरिंग में वो ये नहीं समझ पाये कब किधर से फायर हो रहा है। लगभग दो ढाई घंटे तक दोनों तरफ से गोलियों की बौछार चलती रही। इसके बाद डाँकूओ की तरफ से गोलियों की रफ़्तार कम हो गयी। ये बहुत अच्छा संकेत था। घेरा और तंग कर दिया गया तथा एक बजते बजते पुलिस बल ने पूरी  तरह से मकान पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद का दृश्य बड़ा खौफनाक और दारुण्य था। आधे घंटे के अंदर ही पुलिस बल ने मृतक डाँकूओ को उठाने तथा घायल डाँकूओ को कब्जे में लेने के साथ ही घायल व्  बेहद डरे हुए परिवारवालों के लिए आवश्यक कदम उठाये। कुल मिला कर सात डाँकू मारे गए तथा पांच गंभीर रूप से घायल हुए। 

           साहूकार देवीप्रसाद बुरी तरह से टॉर्चर किये गए थे तथा वो बोलने की स्थिति में नहीं थे। बार बार हाथ जोड़कर कृतज्ञ आँखों से पुलिस बल का धन्यवाद कर रहे थे। अब तक डरे दुबके गांववाले समझ गए थे की पुलिस बल ने वक्त पर पहुँच कर डाँकूओ पर कब्ज़ा कर लिया है और उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया हैं। गांववाले इकठ्ठा होने लगे थे तथा पुलिस बल का धन्यवाद कर रहे थे। 

        इस ऑपरेशन की समाप्ति पर गांववालों ने अपना पूरा सहयोग दिया व् थोड़ी देर में ही कई बैलगाड़ियों की व्यवस्था मृतकों व् घायलों को ले जाने के लिए कर दी गयी। पुलिस बल को बहुत कम नुक्सान पहुंचा। तीन चार पुलिस कर्मियों को छर्रे लगे जिनका उपलभ्ध साधनों से प्राथमिक उपचार करके तुरंत भेज दिया गया। अब तक के  घटनाक्रम के बारे में  वायरलेस के द्वारा पुलिस कप्तान माइकल को सुचना दे दी गयी। पुलिस कप्तान ने इस बड़ी सफलता के लिए इंस्पेक्टर ताराचंद व् पूरी टीम की भूरी भूरी प्रशंशा की तथा कहा
      " वाह मिस्टर ताराचंद वेलडन। आप और आपकी टीम ने बेहद साहसिक कार्य किया है अगर आपको किसी किस्म की मदद की जरुरत है तो मुझे बताईये।" 
इंस्पेक्टर ताराचंद ने उत्तर में कहा 
     " श्रीमान सब प्रबंध स्थानीय स्तर पर हो गया है। हमें बहुत कम हानि  पहुंची है और ऑपरेशन ख़त्म करके हम सुबह तक पुलिस स्टेशन पहुँच जायेंगे।" 
सुबह लगभग छह बजे तक पुलिस टीम वापिस थाने पहुँच गयी। 

           इसके बाद के चार दिन इन्स्पेटर ताराचंद ने अपनी विलक्षण प्रतिभा व् सूझ बूझ का अनूठा प्रदर्शन किया। घायल डाँकूओ से पूछताछ के बाद में पूरे गिरोह का पर्दाफाश हो गया। अगले दो दिनों में छापेमारी से गिरोह के बाकी सदस्यों को भी पकड़ लिया गया तथा उनके कब्जे से अपहरण किये गए व् फिरौती के लिए बंधक बनाये गए दो पकड़ को भी मुक्त करा लिया गया। जैसे जैसे जांच का दायरा बढ़ता गया डांकुओ से जुड़े व् उनको संरक्षण प्रदान करने वाले सफेदपोशों का भी पर्दाफाश हो गया। इस अपराध तंत्र से जुड़े कई सफेदपोश पुलिस की गिरफ्त में आ गए। 


         पुलिस विभाग व् इंस्पेक्टर ताराचंद के लिए ये एक बहुत बड़ी सफलता थी। इसकी बहुत सकारात्मक व् व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। इसकी गूँज जिला मुख्यालय से लेकर संयुक्त प्रान्त के पुलिस हेड ऑफिस इलाहबाद तक पहुँच गयी। 








6 comments:

  1. बहुत रोमांचक

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  2. बहुत रोमांचक

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  3. सारे भाग अभी पढ़े
    आपकी शैली बाँध कर रखने में कामयाब हुई
    जानकारी और रोमांच दोनों का सम्मिश्रण मिला
    आपकी मेहनत को सलाम
    लेखन को बधाई डॉ साहब

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  4. Totally Thrilled :)
    बचपन में दूरदर्शन पर एक सिरियल आता था उसकी याद आ गयी....
    किले का रहस्य !

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