Monday, February 29, 2016
16-ग्राम समिति की अवधारणा
Friday, February 26, 2016
15-सामाजिक सुधार 1925-26
इन विषम परिस्थितयों में युवा ताराचंद गांव में मूल नागरिक सुविधाओं के विकास व् उनके रखरखाव के लिए एक स्थायी व्यवस्था चाहते थे। इसके लिए गांव वालों से सलाह मशविरा करके एक ५ उत्साही व्यक्तियों की एक स्थायी समिति बनायीं गयी तथा भविष्य में इसके कार्य निष्पादन हेतु आवश्यक खर्चों के लिए परस्पर चंदे से एक कोष भी स्थापित किया गया। ताराचंद की प्रेरणा से २-३ दिन में ही इस कोष के लिए चंदे के रूप में काफी धन इकठ्ठा हो गया।
गांव के एक विकलांग युवक ने इसी वर्ष क़स्बा चरथावल के मिडल स्कूल से अपनी दृढ इच्छाशक्ति के बल पर मिडल पास किया था। इस युवक ने ताराचंद की प्रेरणा से एक और सहायक को साथ लेकर बहुत थोड़े मानदेय पर गांव में एक प्राइमरी स्कूल चलने की जिम्मेदारी ले ली। ४-५ दिन में ही करीब ५०-६० बच्चों ने प्राइमरी शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस स्कूल में नामांकन करा लिया। युवा ताराचंद के लिए यह बहुत ही उत्साह वर्धक स्थिति थी। गांव में बुनियादी शिक्षा की व्यवस्था हो तथा कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे यह उनका वर्षों पुराना सपना था। यह सपना भविष्य में आशा से अधिक फलीभूत व् साकार हुआ। इस छोटे से स्कूल ने बिना किसी सरकारी मदद के बाद के वर्षों में गांव के युवकों को उस शिक्षा तक पहुँचाने व् अपने भविष्य को सफल बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभायी।
Friday, February 19, 2016
14-गांव में बिताये कुछ अविस्मरणीय पल
मैंने इंस्पेक्टर ताराचंद के गाँव आगमन व् भावपूर्ण स्वागत का वर्णन कुछ ज्यादा ही विस्तार से किया है। इसके पीछे मेरा उद्देश्य यह इंगित करना भी है की जहाँ समाज में एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों की संकुचित सोच व् देश तथा समाज के प्रति नकारात्मक क्रियाकलाप पूरे समाज में नफरत व् भेदभाव का माहौल पैदा कर देते हैं। दूसरी और मात्र एक व्यक्ति का ही सकारात्मक सोच व् समाज तथा देश के लिए किया गया उद्देश्यपूर्ण कार्य किस प्रकार आपसी भेदभाव व् मनमुटाव को भुला कर व्यक्तियों को प्रेम व् एकता के सूत्र में बाँध देता है। इस सामाजिक सिद्धांत को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों ने अपने चरित्र व् कार्य से बारबार स्थापित किया है। भारत के ही परिपेक्ष्य में राष्ट्रपिता के चरित्र व् कार्यशैली ने भारत के बेबस, डरे हुए, गुलामी की मानसिकता में जकड़े तथा भ्रमित समाज को एक नैतिक, निडर तथा उद्देश्य के लिए समर्पित समाज में बदल दिया।
जोश से भरा यह काफिला गांव पहुंचा तो गांव से बाहर एक और अद्भुत नजारा था। २०-२५ बाल्मीकि अपने ढोलों के साथ गांव से बाहर पहले से ही उपस्थित थे। काफिले को देखते ही उन्होंने बड़े उत्साह से भंगड़ा अंदाज में थिरकते हुए ढोल बजाना शुरू कर दिया। बैलगाड़ियों से उतर कर अन्य लोगों ने भी उनकी ख़ुशी के इस इजहार में उत्साह के साथ शिरकत की। यह पूरा नजारा बड़ा अद्भुत तथा गांव में अपने प्रकार का पहली बार था। बाद में ताराचंद के बड़े भाई चौधरी कुंदन सिंह ने परंपरा के अनुसार अच्छे खासे इनाम से इन ढोलिओं को नवाज कर विदा क्या। गांव में युवा ताराचंद के शुरू के ३-४ दिन यूँ ही गहमा गहमी व् अन्य लोगों से मिलने मिलाने में निकल गए। इन दिनों में ताराचंद ने अपने बचपन के युवा साथियों के साथ पुरानी यादें साझा की तथा सभी युवा साथी उन सभी स्थानों पर जी भरकर घूमे जहाँ बचपन व् किशोरावस्था में गिल्ली डंडा व् कबड्डी जैसे खेल खेला करते थे। बड़े भाई कुंदन सिंह खुद घुड़सवारी के शौकीन थे तथा परिवार के पास एक बहुत अच्छी नस्ल का घोडा भी था। ताराचंद अपनी पुलिस ट्रैनिंग के दौरान तथा नौकरी के शुरू के दिनों में खूब घुड़सवारी कर चुके थे तथा इस कला में उन्हें महारत हासिल थी। अतः इन दिनों में ताराचंद ने अपने साथियों के घुड़सवारी का भी भरपूर आनंद लिया और साथियों को घुड़सवारी के बहुत से गुर सिखाये।
बचपन के साथियों के आग्रह पर गांव के परंपरागत खेल कबड्डी के मैच का आयोजन भी रखा गया। स्वयं युवा ताराचंद ने इस आयोजन में उत्साह के साथ भाग लिया। यह आयोजन बहुत ही ज्यादा उत्साहवर्धक रहा। पूरा गांव ही आयोजन स्थल पर उमड़ पड़ा। अपने युवाओं की उमंग, जोश तथा खेल में उनके दांव पेंच देखकर गांव के बुजुर्ग भी उछल उछलकर उनका उत्साहवर्धन करते रहे। बुजुर्गों को लग रहा था जैसे वो भी अपनी जवानी के दिनों में पहुँच गए हों। मैच के बाद मिठाई और फल आदि वितरित किये गए। वास्तव में अपनी इन छुट्टियों का अपने लोगों के साथ भरपूर आनंद लेने तथा इन्हें अधिक से अधिक उपयोगी बनाने की पूरी रूपरेखा ताराचंद ने पहले ही तैयार कर रखी थी। इसी कड़ी में बच्चों के लिए भी खेलकूद व् अंताक्षरी आदि के अनेक कार्यक्रम रखे गए। बच्चों को अनेक छोटे छोटे आकर्षक उपहार देकर उनकी ख़ुशी व् उत्साह को कई गुना बढ़ा दिया गया। इस अवसर के लिए बालोपयोगी अनेक उपहार ताराचंद स्वयं अपने साथ लाये थे। गांव के बुजुर्ग ताराचंद की प्रशंशा करते उन्हें आशीर्वाद देते थक नहीं रहे थे। वो बार बार कहते थे की ताराचंद के आने से हमारे जीवन की संध्या बेला में भी जैसे बहार आ गयी। गांव का ठहरा हुआ व् एक हद तक नीरस जीवन बेहद उत्साह बी उमंग से भर उठा।
इस काल में भारत के लाखों गांव की तरह गांव घिस्सुखेडा में भी जीवन के लिए आवश्यक मूलभूत सुविधाओं का पूरी तरह आभाव था। गांव में पानी के निकास तथा स्वच्छ्ता बनाये रखने के लिए कोई स्थायी प्रबंधन नहीं था। बुनयादी शिक्षा की भी कोई व्यवस्था निजी या शाशन स्तर पर नहीं थी। प्राइमरी स्कूल भी गांव से लगभग ५ किलोमीटर दूर क़स्बा चरथावल ही में था। सबसे बड़ी परेशानी यह थी की आमजन इन समस्याओं के प्रति उदासीन था तथा इसके निराकरण के लिए जिस सामुदायिक भावना या पहल की जरुरत थी वो गांव के जनमानस में विकसित ही नहीं हो पायी। गांव का कूड़ा कचरा तथा पशुओं का गोबर आदि जहाँ भी जगह मिलती डाल दिया जाता था। इससे मच्छर मक्खी तथा अन्य हानिकारक जीवाणुओं का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ जाता था तथा वातावरण भी हर समय दूषित रहता था। इस अज्ञानता व् लापरवाही के चलते गांव के लोग विशेषकर बच्चे और औरतें आदि अनेक बीमारियों का शिकार होते रहते थे। बीमारियों के सही समय पर निदान और उनके उपचार की भी कोई सक्षम व्यवस्था नहीं थी।
कई दिन के इस उत्सवपूर्ण माहौल के बाद ताराचंद ने पहले से तय अपने प्रोग्राम के अनुसार छुट्टियों के बाकी बचे सात आठ दिन इन समस्याओं के निराकरण के लिए प्रयत्न करने का निश्चय किया।
Thursday, February 18, 2016
13-समसामयिक विवेचना तीसरा दशक
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गांधीजी १९१८ |
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दांडी यात्रा १९३० |
Monday, February 15, 2016
12- 1925 का वो भारतीय पुलिस पदक
Thursday, February 11, 2016
11-चारित्रिक विवेचना
कप्तान माइकल के सन्देश के अनुसार इंस्पेक्टर ताराचंद अगले दिन उनसे मिलने मुख्यालय पर पहुंचे। मिलने पर इंस्पेक्टर ताराचंद ने एक बार पुनः कल के सन्देश के लिए कप्तान का धन्यवाद किया। कप्तान माइकल ने बड़े ही प्रशंशा भाव से उसी तरह इंस्पेक्टर की तरफ देखा जैसे किसी घर का सदहृदय मुखिया अपने परिवार के किसी सदस्य की बड़ी उपलब्धि पर उसकी और देखता है। इसके बाद कप्तान ने पुलिस मुख्यालय इलाहबाद से प्राप्त पदक के विषय में गवर्नर ऑफिस से जारी अधिसूचना की प्रति इंस्पेक्टर को दी तथा २० मार्च को होने वाले समारोह के विषय में मुख्यालय से प्राप्त प्रोग्राम तथा प्रोटोकॉल का विवरण भी दिया। कप्तान ने उस दिन संपन्न होने वाले समारोह के प्रोटोकॉल आदि के विषय में अपनी तरफ से निर्देश दिए। कप्तान माइकल ने हँसते हुए कहा मिस्टर ताराचंद ये केवल तुम्हारा ही सम्मान नहीं है मैं भी अपने को बेहद गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। झाँसी के पूरे पुलिस विभाग में इसका बड़ा सकारात्मक और प्रेरक सन्देश गया है। कुछ देर की चुप्पी के बाद कप्तान ने पुनः जोर से हँसते हुए कहा लेकिन लगता है ये खबर यहाँ के अपराधियों व् डकैतों को काफी बुरी लगने वाली है। इंस्पेक्टर ताराचंद ने भी हँसते हुए कहा की श्रीमान इस सब में आपके सहयोग और दिशानिर्देशों का बहुत बड़ा हाथ है। कप्तान ने फिर बताया की प्रोटोकॉल के अनुसार उस दिन समारोह में मुझे भी उपस्थित रहना होगा तथा नियमानुसार पदक प्रदान करने से पहले तुम्हारी उपलब्धियों की संक्षिप्त जानकारी भी मुझे ही देनी होगी। इस के बाद कुछ आवश्यक विचार विमर्श के बाद इंस्पेक्टर ताराचंद ने कप्तान माइकल से जाने की इजाजत मांगी।
थाने पहुँच कर इंस्पेक्टर ताराचंद ने अफसर दोयम यादव और थाने के बड़े मुंशी को २० मार्च से पहले पुलिस मुख्यालय इलाहबाद पहुँचने के लिए आवश्यक व्यवस्था करने को कहा। इसके बाद थाने में पहले से ही बैठे हुए कुछ शहरवासियों की समस्या सुनने में व्यस्त हो गए।
झाँसी शहर की कानून व्यवस्था की स्थिति काफी सुधर गयी थी। ज्यादातर अपराधियों व् उनको संरक्षण देने वालो ने चुपचाप भूमिगत हो जाने में ही अपनी खैरियत समझी। अरसे से इस क्षेत्र या आसपास के क्षेत्र में किसी डकैती या बड़े अपराध की घटना नहीं हुयी।
दो दिन बाद नगरपालिका झाँसी में भी मेयर ने एक भव्य अभिनन्दन समारोह रखा जिसमे शहर के काफी नागरिक सम्मिलित हुए। मेयर ने अपने सम्बोधन में कहा की इंस्पेक्टर ताराचंद ने साहब ने यह साबित कर दिया है की यदि एक दृढ इच्छाशक्ति वाला अधिकारी ईमानदारी से अपने फर्ज को पूरा करने की ठान ले तो उसके नतीजे चमत्कारी होते हैं। आज इस शहर के ग्रामीण अंचल में डाकुओं का आतंक लगभग खत्म हो गया है इसके साथ ही कालाबाज़ारी तथा खाद्यवस्तुओं में मिलावट करने वाले अपराधी भी जेलों में हैं।
Tuesday, February 9, 2016
10-अतीत का रोमांच
किसी भी कालखण्ड में, किसी भी देश या देश के एक भाग में, राजनीतिक, सामाजिक व् आर्थिक परिस्थितियां समय के साथ बदलती रहती हैं। पर कुछ आदर्श व् मूल्य सर्वकालिक व् शाश्वत होते हैं लेकिन कितनी भी विषम परिस्थितियों के चक्रव्यूह को भेदकर जो चरित्र अपने आदर्श व् मूल्य बनाये रखता है वही भविष्य में पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक होता है। अपने परिवार के उस अतीत का वर्तमान पर जो प्रभाव हुआ है उसका और अधिक विश्लेषण करने पर मैं चौकन्ना हो गया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा की एक व्यक्ति के लिए जीवन में काफी सजग रहने की आवश्यकता है। यदि व्यक्ति अपने जीवन में आदर्श व् मूल्यों के प्रति जागरूक व् ईमानदार है तो उसके चरित्र का जरा सा भी विचलन आने वाले कल व् पीढ़ियों के लिए नकारात्मक व् दुविधापूर्ण परिस्थितियां पैदा कर सकता है।
आज हम सब जो जहाँ हैं सब वर्तमान के शिल्पकार हैं। अपने अतीत से प्रेरणा व् ऊर्जा लेकर व् एक सीमा तक नियति द्वारा निर्धारित कर्मक्षेत्र में अपनी भूमिका निभाकर भविष्य की रचना कर रहे हैं। इस प्रकार हम सब यानी आज का वर्तमान अतीत व् भविष्य की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जीवन की अनादि व् अनंत श्रंखला में वर्तमान रुपी इस कड़ी का बहुत महत्त्व हैं। इस प्रकार अतीत को सही ढंग से समझना तथा वर्तमान में अपनी भूमिका का ईमानदारी व् सावधानी पूर्वक निर्वाह उज्जवल भविष्य के लिए अनिवार्य है। अपनी इस कर्मयात्रा में कहीं अनैतिक या भ्रष्ट पथ विचलन न हो जाये इसके लिए जीवन में आदशों व् मूल्यों के प्रति प्रबल आग्रह अति आवश्यक है।
समय या काल असीम व् अनंत है तथा निरंतर गतिमान है। हम सब को ही किसी न किसी रूप से समय की अविरल गति के साथ तालमेल बैठाना होता है। समय के इस अनंत महासागर में हम सब अपनी अपनी क्षमता व् नियति के अनुसार जीवन रूपी नौका को चला रहे हैं। हममें से बहुत से इस महासागर में बहुत दूर तक नहीं जा पाते और इस प्रकार हमारा कर्मक्षेत्र बहुत ही सीमित रह जाता है। लेकिन हममें से कुछ दृढ इरादे व् अद्भुत साहस के साथ इसकी अथाह गहराईयों को नापते हैं तथा अनमोल मोती निकालकर आने वाली पीढ़ियों को उपहार देते हैं। इस प्रकार समय चक्र चलता रहता हैं। घटित घटनाएँ सापेक्ष होती हैं लेकिन आदर्श व् मूल्य शाश्वत होते हैं।
इंस्पेक्टर ताराचंद का झाँसी का कार्यकाल ठीक ठाक चल रहा था। इस समय तक उनके खाते में अपराध उन्मूलन को लेकर कई नयी उपलब्धियां दर्ज हो गयी थी। इसकी सूचना बराबर जिला मुख्यालय व् प्रदेश पुलिस मुख्यालय तक पहुँच रहीं थी। उच्च अधिकारीयों व् शहर के अनेक गणमान्य नागरिकों द्वारा प्रेषित कई प्रशंशा पत्र भी प्राप्त हो रहे थे। थाने के अधीनस्थ स्टाफ को भी इन उपलब्धियों व् इस कार्यशैली से मजा आने लगा था। सच्चाई व् ईमानदारी से उत्पन्न वातावरण बेहद सुखद व् गौरवशाली अनुभूति पैदा करता है। स्टाफ यह अनुभव कर रहा था कि भ्रष्ट आचरण से प्राप्त रसमलाई के मुकाबले ईमानदारी से प्राप्त रोटी का स्वाद ज्यादा सुखद व् मीठा होता है। पूरा स्टाफ अपने को भयमुक्त, ऊर्जावान तथा पहले से कहीं बेहतर अनुभव कर रहा था।
यह सन १९२५ का फरवरी महीना था। चारों और बसंत की खुशनुमा शुरुवात हो चुकी थी। मौसम बेहद सुखद और ऊर्जावान था। इंस्पेक्टर ताराचंद अपने सुबह के दैनिक कार्यक्रम निबटा कर थाने में आये शहर के कुछ गणमान्य नागरिकों के साथ बैठे विचार विमर्श कर रहे थे, तथा शहर की क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर उनके विचार प्राप्त कर रहे थे। तभी थाने के मुंशी ने आकर बताया की हुजूर कप्तान साहब वायरलेस पर आपसे बात करना चाहते हैं। इंस्पेक्टर ताराचंद ने तुरंत वायरलेस पर कप्तान साहब को सुना।
पुलिस कप्तान माइकल ने कहा " बधाई, मिस्टर ताराचंद आपके लिए एक बड़ी खुशखबरी है। आज ही पुलिस मुख्यालय इलाहबाद से सन्देश प्राप्त हुआ है कि तुम्हारा भारतीय पुलिस पदक कन्फर्म हो गया है। यह पुलिस पदक तुम्हे अगले माह की २० तारीख को पुलिस मुख्यालय पर एक समारोह में गवर्नर द्वारा प्रदान किया जायेगा। तुम कल ही पुलिस मुख्यालय आकर मुझसे मिलो, इस विषय में उचित निर्देश मैं तुम्हें मिलने पर ही दूंगा।" इंस्पेक्टर ताराचंद ने पुलिस कप्तान का आभार प्रकट किया और उनको धन्यवाद दिया। यह सुनकर पास ही बैठे अफसर दोयम सब इंस्पेक्टर राजपाल यादव अति उत्साहित हो गए और कहा " श्रीमान इस अवसर को हम सब जरूर सेलेब्रेट करेंगे।" पास बैठे नागरिकों और विशेषकर झाँसी के डिप्टी मेयर ने इस सुझाव का तुरंत समर्थन किया। थोड़ी देर में ही मिठाई आदि की व्यवस्था की गयी और पूरा थाने का माहौल बेहद उल्लासपूर्ण हो गया। डिप्टी मेयर ने भी कहा "इंस्पेक्टर साहब हम भी इस मौके को नहीं चूकेंगे और नगर पालिका प्रांगण में एक अभिनन्दन समारोह का आयोजन करेंगे।" इंस्पेक्टर ताराचंद ने सबका हार्दिक धन्यवाद किया और अपने दूसरे कामों को निबटाने के लिए इजाजत चाही।
Saturday, February 6, 2016
9-प्रशंशा का बढ़ता दायरा
इसी प्रसंशा की कड़ी में १०-१२ दिन बाद मानवीय चरित्र का एक बहुत ही उत्कर्ष एवं संवेदनशील पहलु सामने आया। साहूकार देवीप्रसाद अपने दो तीन नौकरों के साथ उपहार, मिठाई एवं फल इत्यादि लेकर थाने में आये तथा इन्स्पेक्टर ताराचंद से पुलिसकर्मियों के लिए स्वीकार करने का आग्रह किया। इन्स्पेक्टर ताराचंद ने हँसते हुए देवीप्रसाद का कुशल क्षेम पूछा और उसके व् उसके परिजनों की चोटों के विषय में जानकारी ली।
इन्स्पेक्टर ने देवीप्रसाद की भावनाओं का ख्याल रखते हुए कहा " ठीक है आपकी भावनाओं का आदर करते हुए ये मिठाई आदि तुम्हारी बधाई के रूप में पुलिस कर्मियों में बाटने के लिए कह दूंगा मगर ये उपहार में स्वीकार नहीं कर सकता अतः इनको आप ले जाइए।"
देवीपसाद ने बार बार हाथ जोड़कर धन्यवाद किया और बेहद भावविह्ल होकर कहा " साहब मेरा ये जीवन आज आपकी देन है, यदि उस दिन देवदूत बनकर आप व् आपकी पुलिस टीम ने डाँकूओ से मेरी व् मेरे परिवार की रक्षा न की होती तो न ही आज मेरा ये जीवन होता और न ही मेरा कमाया धन। मुझे आज यह अहसास हो रहा है की अनेक लोगों को सताकर सूद से कमाया मेरा धन निरर्थक था और डाँकूओ से मेरी रक्षा नहीं कर सकता था।"
इन्स्पेक्टर ताराचंद बड़े गौर से उसके चेहरे के भाव पढ़ रहे थे मगर उसका आशय नहीं समझ पा रहे थे। कुछ देर की चुप्पी के बाद साहूकार देवीप्रसाद ने हाथ जोड़कर फिर से निवेदन किया "असल में इस धन पर अब मेरा कोई हक़ नहीं है और न ही कोई मोह बाकी है। मैं इस धन का बड़ा भाग मेरी व् मेरे परिवार की जीवन रक्षा करने वाले बहादुर पुलिस कर्मियों को उपहार स्वरूप देना चाहता हूँ।"
इन्स्पेक्टर ताराचंद ने कुछ अचरज भरी निगाहों से देखते हुए देवीप्रसाद को कहा " देखिये देवीप्रसाद जी हमने सिर्फ अपना फर्ज निभाया है, इसके लिए किसी किस्म के पुरस्कार लेने का कोई औचित्य नहीं है। मैं आपकी भावना की कद्र करता हूँ, लेकिन इस धन को पुरस्कार स्वरुप स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस धन का उपयोग तुम अन्य जन कल्याणकारी व् धार्मिक कार्यों के लिए कर सकते हो। जिले में एक पुलिस कल्याणकारी कोष होता है जिसका उपयोग जरुरत के अनुसार पुलिस कर्मियों की सहायता के लिए किया जाता है। मैं अपने पुलिस कप्तान मिस्टर माइकल से बात करूँगा, यदि संभव हुआ तो तुम अपने धन का कुछ अंश जिले के इस कल्याणकारी कोष को दे सकते हो।
Wednesday, February 3, 2016
8-एक बड़ी सफलता
नियत समय पर पुलिस बल एक बड़े पुलिस वाहन में रवाना हुआ। इंस्पेक्टर ताराचंद का सख्त निर्देश था की सभी हथियार लोडेड रखे जाएँ तथा प्रत्येक पुलिसकर्मी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए हरवक्त तैयार रहे। उस समय गांव को जोड़ने वाले रास्ते कच्चे व् उबड़ खाबड़ हुआ करते थे और आमतौर पर घोडा या बैलगाड़ी ही उन पर यातायात के मुख्य साधन थे। लेकिन बड़े पुलिस वाहन को इस रास्ते पर कोई विशेष परेशानी नहीं हो रही थी।
लगभग १० बजे रात पुलिस बल गांव के करीब पहुँच गया, गाँव से कुछ सौ मीटर पहले ही पुलिस वाहन को मुख्य सड़क से हटाकर रोक दिया गया। और गांव से कुछ पहले ही पुलिस बल पूरी तरह से मुस्तैद होकर पोजीशन पर बैठ गए। चारों तरफ घोर अँधेरा व् सन्नाटा था। कभी कभी सियार या किसी अन्य जंगली जानवर के बोलने की आवाज निस्तभ्धता को तोड़ देती थी। इसी बीच गांव के लगभग मध्य से किसी मकान की छत से सर्च लाइट की तेज रोशनी दिखाई दी। ये संयोग पुलिस बल के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ, इससे यह लगभग तय था की डाँकू मकान के अंदर दाखिल हो चुके हैं तथा पुलिस की उपस्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। मुखबिर की सूचना पूरी तरह सही और सटीक थी।
तय रणनीति के अनुसार पुलिस बल को कई टुकड़ियों में बांटकर बिना आवाज किये लोकेशन की तरफ बढ़ने तथा योजनानुसार घेरा बंदी करने का आदेश दिया गया। किस टुकड़ी को कब हथियारों का इस्तेमाल करना है, दूसरी टुकड़ी को किस तरह उनको कवरेज देना है इसके विषय में टीम लीडर ताराचंद को वक्त वक्त पर आवश्यक निर्देश देने थे। हर निर्देश व् उसके जवाब की कूट भाषा पहले से ही तय थी। १५-२० मिनट तक पुलिस बल बिना आवाज किये तय व्यूह रचना के अनुसार आगे बढ़ता रहा। अब तक ये निश्चित हो गया था की डाँकू घर में प्रवेश ले चुके हैं। मकान से लगभग ५०- ६० गज पहले बिना किसी आवाज के घेरा बंदी करके मोर्चा संभाल लिया गया।
तभी अचानक मकान से चिल्लाने की आवाज आई और फिर छत से सर्च लाइट का प्रकाश दिखाई दिया। तुरंत प्रकाश व् उसकी स्थिति का अनुमान करके एक टुकड़ी को फायर खोलने का संकेत दिया गया। ये स्थिति शायद डाँकूओ के अनुमान से शायद बहुत दूर रही होगी लेकिन एक दो मिनट की चुप्पी के बाद ही डाँकूओ की तरफ से पुलिस टुकड़ी की दिशा में कई फायर किये गए लेकिन वो शायद ये अनुमान नहीं लगा पाये कि पुलिस बल कई टुकड़ियों में बंटा हुआ है। चारों तरफ से हो रही फायरिंग में वो ये नहीं समझ पाये कब किधर से फायर हो रहा है। लगभग दो ढाई घंटे तक दोनों तरफ से गोलियों की बौछार चलती रही। इसके बाद डाँकूओ की तरफ से गोलियों की रफ़्तार कम हो गयी। ये बहुत अच्छा संकेत था। घेरा और तंग कर दिया गया तथा एक बजते बजते पुलिस बल ने पूरी तरह से मकान पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद का दृश्य बड़ा खौफनाक और दारुण्य था। आधे घंटे के अंदर ही पुलिस बल ने मृतक डाँकूओ को उठाने तथा घायल डाँकूओ को कब्जे में लेने के साथ ही घायल व् बेहद डरे हुए परिवारवालों के लिए आवश्यक कदम उठाये। कुल मिला कर सात डाँकू मारे गए तथा पांच गंभीर रूप से घायल हुए।
इस ऑपरेशन की समाप्ति पर गांववालों ने अपना पूरा सहयोग दिया व् थोड़ी देर में ही कई बैलगाड़ियों की व्यवस्था मृतकों व् घायलों को ले जाने के लिए कर दी गयी। पुलिस बल को बहुत कम नुक्सान पहुंचा। तीन चार पुलिस कर्मियों को छर्रे लगे जिनका उपलभ्ध साधनों से प्राथमिक उपचार करके तुरंत भेज दिया गया। अब तक के घटनाक्रम के बारे में वायरलेस के द्वारा पुलिस कप्तान माइकल को सुचना दे दी गयी। पुलिस कप्तान ने इस बड़ी सफलता के लिए इंस्पेक्टर ताराचंद व् पूरी टीम की भूरी भूरी प्रशंशा की तथा कहा
" वाह मिस्टर ताराचंद वेलडन। आप और आपकी टीम ने बेहद साहसिक कार्य किया है अगर आपको किसी किस्म की मदद की जरुरत है तो मुझे बताईये।"
इंस्पेक्टर ताराचंद ने उत्तर में कहा
" श्रीमान सब प्रबंध स्थानीय स्तर पर हो गया है। हमें बहुत कम हानि पहुंची है और ऑपरेशन ख़त्म करके हम सुबह तक पुलिस स्टेशन पहुँच जायेंगे।"
सुबह लगभग छह बजे तक पुलिस टीम वापिस थाने पहुँच गयी।
इसके बाद के चार दिन इन्स्पेटर ताराचंद ने अपनी विलक्षण प्रतिभा व् सूझ बूझ का अनूठा प्रदर्शन किया। घायल डाँकूओ से पूछताछ के बाद में पूरे गिरोह का पर्दाफाश हो गया। अगले दो दिनों में छापेमारी से गिरोह के बाकी सदस्यों को भी पकड़ लिया गया तथा उनके कब्जे से अपहरण किये गए व् फिरौती के लिए बंधक बनाये गए दो पकड़ को भी मुक्त करा लिया गया। जैसे जैसे जांच का दायरा बढ़ता गया डांकुओ से जुड़े व् उनको संरक्षण प्रदान करने वाले सफेदपोशों का भी पर्दाफाश हो गया। इस अपराध तंत्र से जुड़े कई सफेदपोश पुलिस की गिरफ्त में आ गए।
पुलिस विभाग व् इंस्पेक्टर ताराचंद के लिए ये एक बहुत बड़ी सफलता थी। इसकी बहुत सकारात्मक व् व्यापक प्रतिक्रिया हुयी। इसकी गूँज जिला मुख्यालय से लेकर संयुक्त प्रान्त के पुलिस हेड ऑफिस इलाहबाद तक पहुँच गयी।
Tuesday, February 2, 2016
7-नए दायित्व की शुरुवात
युवा अधिकारी ने इस स्थिति अपने आंकलन व् एक्शन प्लान के बारे में झांसी के तत्कालीन पुलिस कप्तान मिस्टर माइकल को अवगत कराया।
Monday, February 1, 2016
6-असह्योग आंदोलन
5-गृहस्थ जीवन में प्रवेश
Saturday, January 30, 2016
4-भविष्य की और एक कदम
प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने के बाद भी युवक अपनी यूनिट के लेखा विभाग में ही कार्यरत थे I चर्चाएं जोरो पर थी की युद्ध समाप्ति के बाद शीघ्र ही सेना मैं नियुक्त बहुत से लोगों की छटनी की जाएगी और अस्थायी पदों को समाप्त किया जायेगा I युवक ताराचंद भी इस स्थिति से अवगत थे और अपने भविष्य के प्रति सजग और जागरूक थे I अचानक एक दिन जब वो अपने दफ्तर के कार्य मैं व्यस्त थे तो यूनिट के कमांडिंग अफसर मिस्टर वाटसन का बुलावा आया I मिलने पर मिस्टर वाटसन ने बड़ी आत्मीयता से युवक ताराचंद को बताया
" मिस्टर त्यागी जैसा की आपको मालूम होगा की युद्ध समाप्ति के पश्चात कुछ अस्थायी नियुक्तियों की छटनी की जानी है उस सन्दर्भ मैं आपका सर्विस रेकॉर्ड बहुत अच्छा है I यदि आप चाहें तो आपका समायोजन सेना मैं स्थायी रूप से किया जा सकता है I यदि आप कोई दूसरा विकल्प चाहते हैं तो मुझे बताएं"
युवक ने विनम्रता पूर्वक कहा
" श्रीमान आपका व् अन्य अधिकारीयों का मेरे प्रति विशेष स्नेह रहा है I यहाँ पर कार्य करते हुए थोड़े समय मैं ही मैंने बहुत कुछ सीखा व् जाना है लेकिन मेरी इच्छा संयुक्त प्रान्त की पुलिस सेवा मैं जाने की है और इसके लिए मैं आवेदन भी कर चुका हूँ I यदि आप उचित समझें तो इस विषय मैं प्रान्त के गवर्नर की कार्यकारी परिषद को सेना मुख्यालय से संस्तुति भिजवा सकते हैं I "
मिस्टर वाटसन ने हँसते हुए कहा
" ठीक है मिस्टर त्यागी इस विषय मैं जो भी अधिकतम किया जा सकता है मैं करूँगा I "
युवक ने मिस्टर वाटसन का धन्यवाद किया और जाने की इज़ाज़त मांगी I
वाटसन ने युवक की कार्यक्षमता, सर्विस रिकॉर्ड, व्यवहार व् ईमानदारी को संज्ञान लेते हुए इस विषय मैं कुछ ज्यादा ही रूचि दिखाई और मुख्यालय कमांडिंग इन चीफ मिस्टर स्मिथ से बात की और जल्दी ही एक प्रबल संस्तुति पत्र गवर्नर की कार्यकारी परिषद के पास भेजा I इस संस्तुति को तुरंत संज्ञान लेते हुए शीघ्र ही युवक ताराचंद को दारोगा पद के लिए साक्षात्कार के लिए बुलावा भेजा गया I साक्षात्कार जैसा की उम्मीद थी सफल रहा और १९१८ के मध्य मैं युवक ताराचंद की नियुक्ति प्रदेश की पुलिस सेवा मैं दारोगा के पद पर हो गयी और उनको प्रशिक्षण के लिए मुरादाबाद प्रशिक्षण स्कूल मैं भेज दिया गया I एक वर्ष पश्चात सफलतापूर्वक प्रशिक्षण समाप्त होने पर प्रथम नियुक्ति मेरठ शहर के लाल कुर्ती थाना क्षेत्र मैं हुई I
ये खबर तार द्वारा गाँव मैं भी पहुंची और जल्दी ही आस पास के गावों मैं भी फ़ैल गयी I पूरा गांव इस नियुक्ति को लेकर बेहद गौरवान्वित था I
उत्तर प्रदेश के बहुत पिछड़े आँचल के एक ग्रामीण परिवेश मैं किसी युवक का पुलिस अधिकारी बनना गाँव के लिए बहुत बड़ी बात थी I उस समय तक आस पास के क्षेत्र मैं कोई भी युवक सरकारी पद पर नहीं पहुंचा था I यद्यपि बाद के कुछ ही वर्षो मैं कई नौजवान इस आँचल से ICS तथा न्यायिक परीक्षाओ मैं सफल हुए और क्षेत्र का नाम रोशन किया I
गांव मैं इस खबर से जश्न का माहौल था और उस वक्त ग्रामीण आँचल मैं उपलब्ध एकमात्र मनोरंजन के साधन पारम्परिक स्वांग का आयोजन किया गया I कई दिन तक दावत मनोरंजन व् खुशियों का माहौल बना रहा I
क्रमशः
Friday, January 29, 2016
3-प्रथम विश्व युद्ध
सन् 1918 आते आते प्रथम विश्व युद्ध का अंत हो गया तथा विजेता राष्ट्रों का दृष्टिकोण एवं संकुचित सोच दूसरे विश्वयुद्ध की भूमिका रखने लगा। विजेता राष्ट्र अमेरिका और इंग्लैंड आदि ने हारे हुए राष्ट्रों जर्मनी और जापान के ऊपर अपनी मनमानी अहंकारी और अपमानजनक शर्तें थोपी जिनको मजबूरी मैं हारे हुए राष्ट्रों को स्वीकार करना पड़ा। लेकिन ये अपमानजनक सन्धियां विशेषकर जापान और जर्मनी आदि देशों ने भले ही स्वीकार कर ली हों लेकिन इस अपमान की आग अंदर ही अंदर सुलगती रही। इसके कारण बाद चलकर फासीवाद व् नाजीवाद का उदय हुआ और हिटलर व् मुसोलिनी जैसे तानाशाहों ने इस अपमान का बदला लेने के लिए विश्व को दूसरे विश्वयुद्ध की आग मैं झोंक दिया।
इसी दौरान 1917 मैं विश्व के राजनीतिक पटल पर एक और बहुत बड़ी घटना हुयी। रूस मैं लेनिन के नेतृत्व मैं कम्युनिष्ट क्रांति हो गई जिसका विश्व पर व्यापक असर हुआ। भारत भी इसके असर से अछूता नहीं रहा। भारत मैं विशेषकर युवा इस क्रांति से प्रेरित व् बेहद उत्साहित हुए और उनमें देश को आजाद कराने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुयी। चंद्र शेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे महान शहीदों ने ब्रिटिश साम्रज्य को खुली चुनौती दी जिसके कारण भारत को लंबे समय तक गुलाम बना कर रखना ब्रिटिश शाशन के लिए मुश्किल हो गया। यद्यपि ये महान क्रन्तिकारी देश को पूरी तरह आजाद तो नहीं करा पाये लेकिन इन महान शहीदों ने अपना बलिदान देकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।
उधर रूस की क्रांति तथा मित्र राष्ट्रों की जीत के बाद विश्व मैं नए राजनीतिक समीकरण बनने शुरू हुए। रूस मैं सम्पूर्ण कम्युनिस्ट क्रांति के बाद उसके विरोध मैं प्रतिक्रांति का दौर शुरू हुआ। दोनों विचारधाराओं के टकराव से लंबे समय तक रूस मैं अशांति और दमन का दौर चला। लेनिन जैसा सक्षम नैतिक व् महान नेता भी इस टकराव से उत्पन्न हिंसा बुराईयों और दमन को पूरी तरह से नहीं रोक पाया। इन सब घटनाओं के रूस तथा विश्व मैं व्यापक एवं दूरगामी असर हुए और इन्ही परिस्थितयों ने स्टालिन जैसे तानाशाह को जन्म दिया। इसके बाद पूरा विश्व मौटे तौर पर साम्राज्यवादी और कम्युनिस्ट विचारधाराओं का अखाडा बन गया था। लंबे समय तक विश्व शीत युद्ध के साये मैं रहा।
उपरोक्त आवश्यक विषयांतर के पश्चात् अब फिर से इस कथानक के मूल स्वरुप पर आते हैं
क्रमशः
2-1910 का वो काल
ग्रामीण आँचल के इस संक्षिप्त तत्कालीन विवरण के बाद हम इस कथानक की शुरुवात करते हैं। इस गाँव के अनेक कुटुम्बों मैं एक कुटुंब चौधरी जौमी सिंह का था जो जाति से त्यागी और पेशे से कृषक थे। आगे चलकर ये कुटुंब चार परिवारों मैं बँट गया इनमे से एक परिवार के मुखिया चौधरी वजीर सिंह त्यागी थे जो एक बड़े कृषक और बेहद सीधे सादे इंसान थे। इनके तीन लड़के सबसे बड़े कुंदन सिंह अछपल सिंह और ताराचंद हुए। लगभग 1917 मैं इस परिवार के सबसे छोटे सुपुत्र ताराचंद गाँव के एकमात्र ऐसे लड़के थे जिन्होंने बहुत संघर्ष करके विषम परिस्थितयों मैं जिला मुख्यालय पर उपलभ्ध सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त की और इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की।
ये प्रथम विश्वयुद्ध का समय था और युद्ध अपने निर्णायक दौर मैं चल रहा था। देश के अंदर बहुत सी राजनीतिक व् सामाजिक उथल पुथल हो रही थी और गाँव भी अब इस वक्त तक इनसे अछूते नहीं थे। राष्ट्रिय राजनीतिक रंगमंच पर गांधीजी का आगमन हो चूका था तथा कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व मैं स्वतंत्रता प्राप्ति के अपने मिशन की और बढ़ चली थी। गाँव मैं भी आर्यसमाज, कांग्रेस तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं द्वारा राजनीतिक व् सामाजिक चेतना का प्रसार किया जाने लगा था।
ऐसे समय मैं ये नौजवान व् शिक्षित लड़का ताराचंद अपनी मंजिल ढूंढने का प्रयास कर रहा था और इसी प्रयास के शुरुवाती दौर मैं एक बड़े जमींदार परिवार से होने के बावजूद भी सेना मुख्यालय रुड़की के लेखा विभाग मैं नोकरी से अपने कैरियर की शुरुवात की।
1- जिंदगी झरोखों से
इस आम आदमी का जन्म सं 1945 मैं तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविन्स वर्तमान मैं उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बहुत ही छोटे से गाँव घिस्सूखेड़ा मैं हुआ लेकिन इस आत्मकथा को प्रभावित करने वाली स्थितियों को वर्णन करने के लिए लगभग 30 साल पुराने अतीत मैं झांकना जरूरी हैI ये गांव हकीकत मैं एक बड़े गाँव जड़ोदा पांडा के माजरा के रूप मैं विकसित हुआ था। लगभग 400 साल पहले कुछ परीवार पशुपालन के उद्देश्य से इस जगह को अपना अस्थायी निवास बनाया जो बाद मैं इस छोटे गाँव के रूप मैं विकसित हुआ और इस गाँव का ये रूप सामने आया लेकिन अबसे लगभग 100 वर्ष पहले ये गाँव कुछ कुछ कबिलियायी संस्कृति पर आधारित कुछ कुटुम्बों का समूह मात्र था। आमतौर पर ये कुटुंब आत्म केंद्रित अपनी अपनी पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए प्रयास तक ही सीमित थे। इनके अपने अपने स्वार्थ थे और कभी कभी उन विरोधाभासी स्वार्थों के कारण अक्सर टकराव भी होते रहते थे। गाँव के समग्र विकास के लिए कोई सामूहिक प्रयास का सोच विकसित नहीं हुआ था। इन्ही अवस्थाओं मैं हर कुटुंब अपने तक सीमित दुसरे कुटुंब के प्रति स्वाभाविक ईर्ष्या का भाव लिए अपने अपने तरीके से जीवन यापन कर रहे थे लेकिन नहीं एक बिंदु ऐसा भी था जिसमें इनकी सामूहिक भागीदारी और एकरसता प्रकट होती थी। वो था धार्मिक एवं कुछ सामाजिक क्रियाकलाप जैसे शादी ब्याह तथा दूसरी पारंपरिक रस्मों को सामूहिक रूप से निभाना निर्वहन करना
क्रमशः ©